साल 2011 – 12 की बात होगी नवोदय विधालय की लाइब्रेरी मे पहली बार ‘आधे अधूरे’ नाटक को रखे हुए देखा। किताब का टाइटल कुछ अजीब लगा तो मैंने मेरी पसंदीदा मैग्जीन ‘क्रिकेट सम्राट’ को नजरअंदाज कर उसे उठा लिया। आधे अधूरे को समझ पाने की उस उम्र मे मेरी समझ कितनी थी ये मैं ठीक ठीक नहीं बता सकता लेकिन जो समझ आया उसे आधा अधूरा कहना ठीक होगा। नाटक के लेखक का नाम मोहन राकेश था। मैंने उस नाम पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। क्यूँ नहीं इसका जवाब मेरे पास नहीं है। लेकिन समय गुजरने के बाद इस नाम से मेरा बार बार सामना होता रहा। आषाढ़ का एक दिन से लेकर, अंधेरे बंद कमरे से होते हुए मैं आख़िरी चट्टान तक चढ़ाई कर गया। मुझे पता भी नहीं लगा कि मैंने जिस नाम को बचपन मे नजरअंदाज किया था कब मैं उसी के विषमय जाल मे फंसता चला गया। लोग उनकी लिखाई को यथार्थ के सबसे करीब कहेंगे लेकिन उस उम्र के बच्चे को यथार्थ से तनिक भी लेना देना नहीं था। उसके लिए ‘विस्मय का मायाजाल’ शब्द ही ठीक टाइटल है, इसीलिए भी क्यूंकि ये कुछ कुछ नागराज, ध्रुव और दोगा की कॉमिक्स के जैसा भी सुनाई पड़ता था। कुछ समय बाद कुछ वजहों से किताबे और कॉमिक्स से ना चाहते हुए भी दूरी बन गई। लेकिन कुछ ही समय पहले इंस्टाग्राम मे मोहन राकेश की डायरी का एक छोटा सा अंश किसी ने भेज दिया। एक वो पल था कि उसके बाद कोई किताबों को पसंद करने वाला व्यक्ती जितना इंतज़ार कर सकता था मैंने उससे घण्टे दो घण्टे ज्यादा ही कर लिया होगा। मोहन राकेश को मैंने उनके नाटकों से नहीं जाना। लेकिन उनकी डायरी से मिलकर मुझे लगा, यही वह व्यक्ति है जो मुझे, मुझसे मिलवा सकता है। मेरा यह अनुभव अभी तक सिर्फ मुझतक सीमित था। लेकिन अब नहीं।
जब मैंने पहली बार ‘मोहन राकेश की डायरी’ पढ़ना शुरू किया, तो मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं एक नए सफर पर निकल पड़ा हूँ। यह किताब एक लेखक की निजी अनुभूतियों और विचारों की झलक देती है, जो उसे अधिक मानवीय और संवेदनशील बनाती है। मोहन राकेश के विचारों की गहराई और उनके अनुभवों का विस्तार मुझे बहुत प्रभावित करता है।
मोहन राकेश ने अपने लेखन में आधुनिक परिवेश से जुड़कर अपनी रचनाओं को हिंदी साहित्य में एक उचित स्थान दिया। अपने प्रतिभा भरे लेखन से उन्होंने हिंदी नाटक को नवीन दिशा दी। आप यह भी मान सकती हैं कि मोहन राकेश के लेखन को हिंदी नाटकों में भारतेंदु हरिशचंद्र और जयशंकर प्रसाद के बाद ऊंचा स्थान मिलता है। यही वजह रही है कि साहित्य के क्षेत्र में समकालीन लोग राकेश को महानायक कह कर पुकारते थे। मोहन राकेश की लेखन भाषा सरल और गंभीर मानी जाती रही है।
पहले पन्ने से ही उनकी डायरी ने मुझे बांध लिया। उनके लेखन में जो सच्चाई और सरलता है, वह मेरे दिल को छू गई। उन्होंने अपनी जिंदगी के छोटे-बड़े अनुभवों को इतनी सहजता से बयान किया है कि मैं उनके साथ हर एक घटना को महसूस कर सकता था। चाहे वह उनकी लेखनी की प्रक्रिया हो, उनके व्यक्तिगत संघर्ष हों, या समाज के प्रति उनके दृष्टिकोण, हर पहलू में उनकी गहरी संवेदनशीलता झलकती है।
किताब का एक अंश विशेष रूप से मुझे याद है, जहाँ मोहन राकेश ने अपनी एक यात्रा का वर्णन किया है। उन्होंने उस यात्रा में लोगों से मिलने वाले अनुभवों और उन पर पड़ने वाले प्रभावों को बहुत ही मार्मिक तरीके से लिखा है। उनकी भाषा में एक खास आकर्षण है, जो पाठक को बांधे रखती है और उसे सोचने पर मजबूर करती है।
‘मोहन राकेश की डायरी’ पढ़ते हुए मुझे यह एहसास हुआ कि एक लेखक की जिंदगी में कितने उतार-चढ़ाव होते हैं और कैसे वे अपने अनुभवों को शब्दों के माध्यम से अमर बना देते हैं। इस किताब ने मुझे सिर्फ मोहन राकेश के व्यक्तित्व को ही नहीं, बल्कि लेखन की कला को भी एक नए दृष्टिकोण से समझने का मौका दिया।
अंत में, ‘मोहन राकेश की डायरी’ ने मुझे गहराई से सोचने और जीवन को एक नई दृष्टि से देखने की प्रेरणा दी। यह किताब उन सभी के लिए एक अनमोल धरोहर है, जो जीवन के वास्तविक अनुभवों और साहित्य की गहराइयों को समझना चाहते हैं।