भारत की सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम महिलाओं के लिए एक बड़ा फैसला लिया है। अब मुस्लिम महिलाएं भी अपने पति के खिलाफ CRPC की धारा 125 के तहत भरण-पोषण के लिए याचिका दायर कर सकती हैं। कोर्ट के इस फैसले से उन मुस्लिम महिलाओं को राहत मिलेगी जिनका तलाक हो चुका है या पति से अलग रहने को मजबूर हैं। साथ ही कार्ट ने कहा कि, भरण-पोषण दान नहीं बल्कि विवाहित महिलाओं का अधिकार है और यह सभी विवाहित महिलाओं पर लागू होता है, चाहे वे किसी भी धर्म की हों। साथ ही इस फैसले ने 39 साल पुराने शाहबानो केस की यादों को ताजा कर दी है।
कौन है शाहबानो ?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद शाहबानो ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सराहना की है। आपको बता दे कि, शाहबानो उत्तराखंड राज्य महिला आयोग की उपाध्यक्ष हैं और वह तीन तलाक पीड़िता भी रह चुकी हैं। शाहबानो ने तीन तलाक को लेकर साल 2016 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हुए याचिक दायर की थी। ये उनका संघर्ष ही था, जिसके चलते सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में उनके पक्ष में फैसला सुनाया था। इसके बाद देश में साल 2018 में तीन तलाक को लेकर कानून बना और इस तरह से तलाक देने वालों पर मुकदमा दर्ज करके जेल भेजने का प्रावधान बनाया गया।
तेलंगाना हाईकोर्ट के फैसले को दी गई थी चुनौती
दरअसल, यह पूरा मामला अब्दुल समद नाम के व्यक्ति से जुड़ा हुआ है। बीते दिनों तेलंगाना हाईकोर्ट ने अब्दुल समद को अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता देने का निर्देश दिया था। इस आदेश के विरोध में अब्दुल समद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। अब्दुल ने अपनी याचिका में कहा कि, उनकी पत्नी CRPC की धारा 125 के अंतर्गत उनसे गुजारा भत्ता मांगने की हकदार नहीं है। अब्दुल समद का कहना था कि, महिला को ,मुस्लिम महिला अधिनियम, 1986 अधिनियम के अनुरूप ही चलना होगा। ऐसे में कोर्ट के सामने सबसे बड़ा सवाल यह था कि, मुस्लिम महिला अधिनियम या CRPC की धारा 125 किसे प्राथमिकता दे, लेकिन आखिर में कोर्ट ने मुस्लिम महिला के पक्ष में फैसला सुनाया। इस संबंध में जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह ने फैसला सुनाया था।
क्या है CRPS की धारा 125?
CRPS की धारा 125 में महिलाओं, बच्चों और माता-पिता को मिलने वाले गुजारा भत्ता का प्रावधान किया गया है। नए कानून में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) में ये प्रावधान धारा 144 में किया गया है। ये धारा कहती है कि, कोई भी पुरुष अलग होने की स्थिति में अपनी पत्नी, बच्चे और माता-पिता को गुजारा भत्ता देने से इनकार नहीं कर सकता। यह धारा साफ करती है कि पत्नी, बच्चे और माता-पिता अगर अपना खर्चा नहीं उठा सकते तो पुरुष को उन्हें हर महीने गुजारा भत्ता देना होगा और यह गुजारा भत्ता मजिस्ट्रेट तय करेंगे। अगर पति भरण-पोषण देने से इनकार करता है तो उसे हर महीने के हिसाब से सजा होगी। यानी जिस महीने वह भरण-पोषण नहीं देगा, उसे 1 महीने की जेल होगी। ऐसा तब तक करना होगा, जब तक कि उस व्यक्ति की बीवी तलाक लेकर दूसरी शादी न कर ले।
क्या है मुस्लिम महिलाओं और गुजारा भत्ता को लेकर नियम ?
बता दें कि मुस्लिम महिलाओं को गुजारा भत्ता नहीं मिल पाता है। अगर गुजारा भत्ता मिलता भी है तो सिर्फ “इद्दत” तक जो की एक इस्लामिक परंपरा है, जिसके अनुसार, अगर किसी महिला को उसके पति ने तलाक दे दिया है तो, वो महिला “इद्दत” की अवधि तक शादी नहीं कर सकती और उस अवधि तक उसे गुजारा भत्ता भी दिया जाता है और “इद्दत” की अवधि सिर्फ तीन महीने तक हीं रहती है। “इद्दत” की अवधि के दौरान तलाकशुदा महिला के दोबारा शादी करने पर पाबंदी होती है। अगर किसी गर्भवती महिला का तलाक होता हैं या वो विधवा होती है तो बच्चे के जन्म के साथ ही “इद्दत” की अवधि खत्म हो जाती है। बता दें कि,किन स्थितियों में पत्नी को नहीं मिलेगा गुजारा भत्ता। अगर पत्नी ने तलाक देने के बाद किसी दूसरे व्यक्ति से शादी कर ली हो इस दौरान उसे गुजारा भत्ता नहीं मिलेगा। अगर पत्नी ने बिना किसी कारण के अपने पति के साथ रहने से मना कर दीया हो या पति-पत्नी आपसी सहमति से अलग रह रहे है तो इस दौरान महिला को गुजारा भत्ता नहीं दिया जाएगा।
वैसे यह फैसला सिर्फ मुस्लिम महिलाओं पर ही लागू नहीं होगा बल्की हर धर्म की महिलाओं पर लागू होगा। हालंकि अब देखना यह होगा की क्या?इस फैसले के बाद हमारे देश में बढ़ रहे तीन तलाक के मामलो में कमी होती है या नहीं। क्योंकि कई लोग शादी के बाद कहीं और अफेयर करके अपनी पत्नी को तलाक दे देते हैं और आज के समय में तलाक सामान्य बात हो गई है।