बांग्लादेश और म्यांमार में जो लगातार हिंसा बढ़ रही है वो चिंताजनक हैं, क्योंकि बांग्लादेश में अभी हिंसा थमी भी नहीं थी कि, वहीं दूसरी ओर अब म्यांमार में भी हिंसा जैसे हालात पैदा हो रहे हैं। जिसके चलते म्यांमार के कई रोहिंग्या मुसलमान सीमा पार करके बांग्लादेश भागने की फिराक में हैं। इन दोनों देशों में हिंसा को रोकने के लिए, हमें स्थानीय समुदायों की जरूरतों को समझने और उनके साथ मिलकर काम करने की आवश्यकता है। बीते शनिवार को म्यांमार से भाग रहे रोहिंग्या मुसलमानों को ड्रोन से निशाना बनाया गया है। इस ड्रोन अटैक में 200 से अधिक लोगों मारे गए है। यह हमला म्यांमार के पश्चिमी रखाइन राज्य में बांग्लादेश की सीमा के पास हुआ है। नदी के किनारे नाव का इंतजार कर रहे रोहिंग्या लोगों के ऊपर बम गिराए गए। जिसके कारण लोगों को अपने बचाव में सीधे नदी में कूदना पड़ा। इस हादसे का वीडियो सोशल मीडिया पर काफ़ी तेजी से वायरल हो रहा है। जिसमें नदी के किनारे सड़क पर कीचड़ में सने दर्जनों व्यस्कों और बच्चों के शव पड़े दिखाई दे रहे हैं।
दुनिया में रोहिंग्या मुसलमान ऐसा अल्पसंख्यक समुदाय है जिस पर, सबसे ज़्यादा ज़ुल्म हो रहे है। अब आप सभी के मन में एक सवाल जरूर आ रहा होगा कि, आख़िर रोहिंग्या मुसलमान समुदाय कौन हैं? इस समुदाय से म्यांमार को क्या दिक्क़त है और ये म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश क्यों जा रहे हैं? आख़िर इन्हें अब तक म्यांमार की नागरिकता क्यों नहीं मिली? तो आईए जानते इस आर्टिकल की मदद से आख़िर क्या वजह है जिसकी वजह से उन्हें म्यांमार की नागरिकता नहीं दी जा रही है?
कौन हैं रोहिंग्या मुस्लिम ?
रोहिंग्या मुसलमान और म्यांमार के बौद्ध समुदाय के बीच साल 1948 से विवाद चल रहा है जो, म्यांमार के आजाद होने के बाद शुरु है। ये वो दौर था जब म्यांमार में ब्रिटिश का शासन था। 1826 में जब पहला एंग्लो-बर्मा युद्ध खत्म हुआ तो उसके बाद म्यांमार पर ब्रिटिश राज कायम हो गया। इस दौरान ब्रिटिश शासकों ने बांग्लादेश से मजदूरों को म्यांमार लाना शुरू किया था। इस तरह म्यांमार में पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से आने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई। बांग्लादेश से जाकर म्यांमार में बसे ये वही लोग थे जिन्हें आज रोहिंग्या मुसलमानों के तौर पर जाना जाता है। रोहिंग्या की संख्या बढ़ती देख म्यांमार के जनरल विन की सरकार ने 1982 में बर्मा का राष्ट्रीय कानून लागू कर दिया था। इस कानून के तहत वहां रोहिंग्या मुसलमानों की नागरिकता खत्म कर दी गई। तब से ये रोहिंग्या मुस्लिम देश में अपने वजूद की लड़ाई लड़ रहे हैं। देखा जाए तो, रोहिंग्या समुदाय की स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब है और इसे हल करने के लिए, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और म्यांमार सरकार की ओर से कदम उठाने की बहुत आवश्यकता है। जिससे रोहिंग्या मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा की जा सके।
अराकान आर्मी को हमले के लिए ठहराया जा रहा है जिम्मेदार
म्यांमार की सैन्य सरकार ने भी इस हमले के पीछे रखाइन राज्य के सैन्य प्रभुत्व रखने वाले जातीय समूह की अराकान आर्मी को बताया है। हालांकि, अराकान आर्मी रोहिंग्या पर हुए हमले में शामिल होने से इंकार कर रही है। हमले में बचे दो लोगों ने समाचार एजेंसी को हमले की जानकारी दी है। उन्होंने कहा कि, इलाके में हो रही भीषण लड़ाई से बचने के लिए रोहिंग्या मुसलमान ‘नफ नदी’ को पार कर बांग्लादेश जाने की कोशिश कर रहे थे।
म्यांमार में 2021 से चल रहा है युद्ध
देखा जाए तो, म्यांमार में ‘आंग सान सू की’ की सरकार हटाए जाने के बाद से लोकतंत्र समर्थक गुरिल्लाओं और जातीय सशस्त्र बलों ने देश के सैन्य शासकों के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है। म्यांमार में 2021 से जारी युद्ध के कारण देश में यात्रा पर कड़े प्रतिबंध लगे हुए हैं। इस युद्ध के कारण देश में हिंसा और अस्थिरता का माहौल है, जिससे आम नागरिक प्रभावित हो रहे हैं। इस स्थिति में रोहिंग्या मुसलमानों की स्थिति और भी खराब गई है। वे पहले से ही नागरिकता और मानवाधिकारों से दूर हैं और युद्ध के कारण उन्हें और भी अधिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जैसे कि, सुरक्षा खाद्य और चिकित्सा सेवाओं में कमी आदि।
म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों को क्यों नहीं दी गई नागरिकता ?
म्यांमार की सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को नागरिकता देने से इनकार कर दिया है, जिससे वे देश में अवैध अप्रवासी बन के रह गए हैं। म्यांमार सरकार उन्हें बांग्लादेश से आए अवैध अप्रवासी मानती है, न की म्यांमार के नागरिक। साथ ही रोहिंग्या समुदाय को कई अधिकारों से दूर किया गया है जैसे कि, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाएं और किसी अन्य जगहों पर आने जानें का भी अधिकार नहीं है। इसके अलावा म्यांमार की सेना ने रोहिंग्या समुदाय के खिलाफ कई बार हिंसक कार्रवाई भी की है, जिसमें हत्याएं, बलात्कार और घरों को जलाना शामिल हैं। अगस्त 2017 में सेना ने एक बड़े पैमाने पर अभियान चलाया था। जिसमें हजारों रोहिंग्या मारे गए और लाखों लोग बांग्लादेश भाग गए थे। उसी के बाद से यह घटना अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा नरसंहार के रूप में मानी जाती है।