नये वर्ष का आगमन हो चुका है और नये बजट की तैयारियां भी ज़ोरो पर है। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 01 फरवरी 2025 को बजट 2025-26 प्रस्तुत करेंगी जिसमें नौकरीपेशा तथा स्टार्टअप कंपनियों के लिए कई महत्वपूर्ण घोषणाएं भी हो सकती है। साथ ही लम्बे समय से मुद्रास्फीति भी एक चुनौती बनी हुई है, जिस पर ध्यान देना आवश्यक है। बजट से पूर्व होने वाली पारंपरिक हलवा सेरेमनी भी हो चुकी है।
कृषि क्षेत्र में सकारात्मक कदम
देश का अन्नदाता किसान मौसम की मार और महंगाई जैसी चुनौतियों का सामना कर रहा है। उम्मीद है कि इस बजट में किसान सम्मान निधि, ऋण और महंगाई जैसे मुद्दों पर बड़ी घोषणाएं हो। यदि कृषि क्षेत्र में पर्याप्त फंडिंग हो तो ये केवल किसानों को नहीं बल्कि पूरी अर्थव्यवस्था को लाभ मिलेगा। एक ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, सरकार कृषि क्षेत्र के बजट आवंटन को 15% बढ़ाकर 1.75 लाख करोड़ रुपए कर सकती है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में फंडिंग बढ़ने की संभावना
सरकार हेल्थ सेक्टर में फंडिंग को बढ़ाने जा रही है। पिछले साल सरकार ने इस क्षेत्र में 90,958 करोड़ रुपए खर्च किए थे, इस साल यह आंकड़ा 100,000 करोड़ रुपए तक पहुंचने वाला है। सरकार कोविड महामारी के बाद दूरदराज के इलाकों में स्वास्थ्य सुविधाओं को और बेहतर करना चाहती है। सरकार मेडिकल उपकरणों और डायग्नोस्टिक पर जीएसटी का रेट घटा सकती है जिससे अस्पतालों को भी हेल्थकेयर सेवाओं की कीमत घटाने में मदद मिलेगी।
रक्षा क्षेत्र में उन्नति की ओर
इस बार के बजट में डिफेंस सेक्टर को भी अपार उम्मीदें है। विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार आत्मनिर्भर भारत और आधुनिक तकनीकों को बढ़ाने की ओर ध्यान देगी। पिछले वर्ष इस क्षेत्र को लगभग 75 बिलियन डॉलर्स आवंटित किए गए थे, जो किसी भी मंत्रालय को मिलने वाला सबसे बड़ा बजट था। इस बार भी भारत के इस महत्वपूर्ण सेक्टर में स्वदेशी उद्योग, पीपीपी के लिए ज़्यादा मौके मिलने की संभावना है।
परिवहन क्षेत्र में प्रमुख मांगें
परिवहन क्षेत्र में AITMC ने सरकार ने अनुरोध किया है कि सड़क परिवहन को विशेष खंड के रूप में मान्यता दे। साथ ही, इस समय अलग अलग राज्यों में डीजल की कीमतें अलग अलग जिन्हें जीएसटी के दायरे में लाने की मांग हो रही है। ताकि रनिंग कॉस्ट कम हो और लॉजिस्टिक्स क्षेत्र को बढ़ावा मिले।
आवश्यक वस्तुएं जैसे टिक, टायर और स्पेयर पार्ट्स पर भी जीएसटी रेट्स को कम करने की मांग है, ताकि छोटे ट्रांसपोटर्स को कम वित्तीय समस्याओं का सामना करना पड़े और यात्रियों का परिचालन अधिक सुचारू रूप से चले।