राजनीति में आए दिन पार्टियों के नेताओं द्वारा विपक्षी पार्टी और नेताओं पर इल्जामों के तीर चलाना आम बात है। हर दिन कोई न कोई नेता किसी न किसी पार्टी के खिलाफ बयानबाजी करता ही है। इसमें बहुत बार ऐसा भी होता है कि उनके खिलाफ अपने बयान के लिए शिकायत भी दर्ज हो जाती है। पर क्या आप ने कभी सुना है कि देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ ही जनता ने भड़काऊ भाषण के लिए शिकायत दर्ज की हो? अगर नहीं तो सुन लीजिए क्योंकि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ हजारों नागरिकों ने भारत चुनाव आयोग (ECI) से शिकायत दर्ज की है।
पहले पत्र
22 अप्रैल को 2,200 से अधिक नागरिकों ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा है। उन्होंने यह पत्र भाजपा के स्टार प्रचारक और प्रधान मंत्री नरेंद्र के भड़काऊ भाषण के खिलाफ लिखा है। पत्र में उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ मोदी की नफरत भरी टिप्पणियों पर कार्रवाई शुरू करने के लिए लिखा है। दरअसल, मोदी ने प्रचार के दौरान मुसलमानों पर इशारा करते हुए कहा था कि वे “घुसपैठिये” (बांग्लादेशी रोहिंग्या मुस्लमान) थे और यदि कांग्रेस वापस चुनी गया तो उनका भाषण सुनने वालों के “मंगलसूत्र” और “ज़मीन” छीन लीं जाएगी।
नागरिकों ने उस भाषण को खतरनाक और भारत के मुसलमानों पर सीधा हमला बताया है और यह भी कहा है कि भारत के संविधान का सम्मान करने वाले लाखों नागरिकों की भावनाओं को ठेस पहुंची है। उनका कहना है कि, वोट मांगने के लिए इस तरह का भाषण लोकतंत्र के नाम पर दुनिया में भारत की छवि को गंभीर रूप से कमजोर करता है। नागरिकों ने अपने पत्र में चुनाव आयोग की चुप्पी के प्रति अपनी नाराज़गी भी जताई है।
दूसरा पत्र
17,400 से अधिक लोगों ने मोदी के खिलाफ एक और पत्र लिखा है। इस पत्र का नाम “संविधान बचाओ नागरिक अभियान” दिया गया है। इस पत्र में मोदी पर आरोप लगाया गया है कि, उन्होंने आदर्श आचार संहिता और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का घोर उल्लंघन किया है। उन्होंने सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने के साथ-साथ मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं में नफरत को भड़काने और बढ़ाने की भी कोशिश की है। उनका कहना है कि, मोदी झूठ का सहारा ले रहे हैं क्योंकि कांग्रेस के घोषणापत्र में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा है कि मुसलमान हिंदू महिलाओं के सोने के बारे में जानकारी इखट्टा करके उसे मुसलमानों के बीच वितरित करेगी। इस पत्र में नागरिकों ने चुनाव आयोग से पहले के तरह ही मोदी के अभियान पर भी उल्लंघन करने के लिए प्रतिबंध लगाने की मांग की है।
दोनों ही पत्रों में चुनाव आयोग की और से अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। चुनाव आयोग ने नरेंद्र मोदी को अभी तक उनके भड़काऊ भाषण के लिए कुछ कहा भी नहीं है। इससे जनता के मन में सवाल उठ रहा है कि, चुनाव आयोग को कोई भी कार्रवाई करते हुए इस बार इतना समय क्यों लग रहा है?
ये तो हो गई ECI को सौंपे गए शिकायत पत्र और कार्यवाही ना करने की, लेकिन ये भी बात सत्य है कि, कॉंग्रेस ने अपने मैनीफेस्टो मे जाति जनगणना की बात कही है। उसी बिंदु पर प्रकाश डालते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि ” मैनीफेस्टो मे हमने जो पहला क्रांतिकारी काम करना है वो है, जातिगत जनगणना, इससे सबकी गिनती हो जायेगी। इससे सबको पता लग जाएगा कि, किसकी कितनी आबादी। इसके बाद इकनॉमिक सर्वे होगा, फाइनेंस सर्वे होगा, हिंदुस्तान की सब संस्थाओं का सर्वे होगा। सबको पता लग जाएगा कि हिंदुस्तान के धन मे किसकी कितनी भागीदारी है।” इसके बाद राहुल गांधी ने दूसरे भाषण मे उसी धन के पुनर्वितरण की बात भी कही है। सरल शब्दों मे इसे समझे तो इसका मतलब है कि, अगर आपने 10 रुपये कमाये हैं,तो आप उसे अपने मोहल्ले मे एक – एक रुपये करके 9 लोगों मे बांट दें और खुद के पास एक रुपये रखें। पीएम मोदी ने इस बात को पूर्व पीएम मनमोहन सिंह के द्वारा दी गई स्पीच से जोड़ कर समझाने की कोशिश की है। जिसमें मनमोहन सिंह ने संसाधनों पर पहला हक माइनॉरिटी खासकर मुसलामानों के होने की बात कही थी।
पीएम मोदी पर कार्यवाही ना होने की क्या वजह हो सकती है?
जहां तक बात ECI के अब तक कारवाई ना करने की है, उसका एक प्रमुख कारण हो सकता है, लॉ कमिशन की 267वीं रिपोर्ट में हेट स्पीच की परिभाषा। इस परिभाषा मे मुख्य रूप से नस्ल, जातीयता, लिंग, यौन, धार्मिक विश्वास आदि के खिलाफ घृणा को उकसाने के रूप में देखा गया है। पीएम की स्पीच मे मुसलमानों के लिए घृणा को उकसाने नहीं बल्कि मनमोहन द्वारा दिए गए स्टेटमेंट और कॉंग्रेस के मैनीफेस्टो मे इंगित बिंदु को समझाने के लिए चुनिंदा बातों का सहारा लिया गया है। शायद एक यही वजह हो सकती है, जिसके कारण चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की।