“If a man loves dog, he is a good man. And if a dog loves man, he is a good man”… यह लाइनें भले ही किसी वेबसीरीज मे कही गई हों लेकिन इंसानियत और संवेदनशीलता के परिदृश्य मे इसके मायने बहुत गहरें हैं। दुर्भाग्यवश आज पहला दिन हैं जब भारत के असल मायनों मे अनमोल रतन पद्मविभूषण श्री ‘रतन नवल टाटा’ जी भौतिक रूप मे हमारे बीच उपस्थिति नहीं हैं। उनका भौतिक रूप मे ना होना तमाम भारत वर्ष को एक गहरे शून्य मे धकेल गया है। हालांकि उनकी सीख, सलाह और साधारणा वाली विरासत हमेशा भारत के लिए अद्भुत उदाहरण बनी रहेगी। रतन टाटा का नाम आते ही एक सफल उद्योगपति और परोपकारी व्यक्ति का चेहरा सामने आता है, जिन्होंने टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया। परंतु, उनके व्यक्तित्व का एक पहलू जो बहुत ही कम लोगों को मालूम है, वो है उनका जानवरों, विशेषकर कुत्तों के प्रति असीम प्रेम और स्नेह। यह संस्मरण उनकी संवेदनशीलता वाले पहलू की कहानी है।
रतन टाटा का जानवरों के प्रति प्यार बचपन से ही था। वह हमेशा से ही कुत्तों के प्रति एक खास जुड़ाव महसूस करते थे। उन्हें जानवरों की मासूमियत और उनके बिना शर्त प्यार से गहरा लगाव था। शायद यही कारण है कि उन्होंने अपनी जिंदगी में कई बार कुत्तों को अपनाया और उनकी देखभाल की। उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर एक तस्वीर साझा की थी जिसमें उन्होंने भाई जिम्मी और एक डॉग के साथ तस्वीर पोस्ट करते हुए लिखा था “Those were the happy days. Nothing came between us.”
रत्न और उनके डॉग्स के बीच बाद मे भी कोई नहीं आया। रतन टाटा ने मुंबई और गोवा में अपने कार्यालय में भी कुत्तों के लिए खास इंतज़ाम किए थे। बॉम्बे हाउस, जो कि टाटा समूह का मुख्यालय है, वहां उन्होंने खासतौर पर आवारा कुत्तों के लिए एक आश्रय स्थल बनवाया। बॉम्बे हाउस के आसपास कई कुत्ते रहते थे, जिन्हें रतन टाटा ने खुद गोद लिया। उन्होंने सुनिश्चित किया कि इन कुत्तों के खाने-पीने, चिकित्सा, और रहने की सुविधा हमेशा बनी रहे। 2017 में बॉम्बे हाउस का नवीनीकरण हुआ, तो उसके बाद भी कुत्तों के लिए विशेष व्यवस्था की गई। यह सिर्फ एक छोटा सा संकेत था कि रतन टाटा किस हद तक जानवरों के लिए अपने दिल में जगह रखते थे।
रतन अपने दोनों पसंदीदा डॉग्स, टीटो (जर्मन शेफर्ड) और टैंगो (गोल्डन रिट्रीवर) के साथ रहते थे। उनकी सादगी तब झलकी जब उन्होंने अपने पालतू कुत्तों की मौत के बारे में बात की और बताया कि इसका उन पर कितना गहरा असर पड़ा। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “मेरा कुत्तों के प्रति प्यार हमेशा मजबूत रहेगा और जब तक मैं जीवित हूं, यह प्यार बना रहेगा।”उन्होंने आगे कहा, “हर बार जब मेरे पालतू जानवरों में से एक की मौत होती है, तो मैं उस दुख से गुजरता हूं, जिसे शब्दों में नहीं लिखा जा सकता। फिर मैं तय करता हूं कि मैं इस प्रकार की विदाई को फिर से नहीं सह सकता। और फिर भी, दो-तीन साल बाद, मेरा घर बहुत खाली और बहुत शांत हो जाता है, जिससे मैं उनके बिना नहीं रह सकता, इसलिए एक और कुत्ता मेरी स्नेह और ध्यान का पात्र बन जाता है, ठीक पिछले वाले की तरह। ”
एक बार भारतीय बिजनेसमैन और एक्टर सुहेल सेठ ने रतन टाटा से जुड़ा एक किस्सा बताया था। उन्होंने बताया था कि साल 2018 में यूके के किंग प्रिंस चार्ल्स (चार्ल्स III) ने उद्योगपति रतन टाटा को उनके परोपकार से जुड़े कार्यों के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से सम्मानित करने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया था। ये कार्यक्रम 6 फरवरी, 2018 को बकिंघम पैलेस में होना था। खास बात ये है कि इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए रतन टाटा ने पहले अपनी सहमति भी दे दी थी, लेकिन आखिरी समय में उन्होंने इस कार्यक्रम में शामिल होने से मना कर दिया। उसका कारण ये था कि उस दौरान उनके पालतू डॉग की तबीयत खराब हो गई थी और उन्होंने अपने इस प्यारे दोस्त के साथ रहने के लिए यूके जाने से मना कर दिया। इस किस्से को याद करते हुए सुहेल सेठ ने बताया था कि वे भी इस कार्यक्रम के लिए लंदन गए थे और कार्यक्रम से 2-3 दिन पहले लंदन पहुंचे थे। लेकिन, जैसे ही वे लंदन पहुंचे तो वह खुद रतन टाटा से 11 मिस्ड कॉल देखकर हैरान रह गए। जब उन्होंने रतन टाटा को फोन किया तो टाटा चेयरमैन ने उन्हें बताया, ‘टैंगो और टीटो (उनके डॉग) में से एक की तबीयत खराब हो गई और मैं उसे छोड़कर नहीं आ सकता।’
इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए सुहेल सेठ ने भी रतन टाटा को मनाने की काफी कोशिश कीं, लेकिन फिर भी उन्होंने अपना मन नहीं बदला और वो कार्यक्रम में शामिल होने नहीं पहुंचे. इस बारे में जब प्रिंस चार्ल्स को रतन टाटा के नहीं आने के बारे में पता चला तो उन्होंने भी रतन टाटा के आदर्श और प्राथमिकताओं की काफी सराहना की।
86 साल की उम्र में अंतिम सांस लेने वाले रतन टाटा का दिल आखिरी समय तक कुत्तों के लिए धड़कता रहा। उनका कुत्तों के प्रति विशेष लगाव हमें यह याद दिलाता है कि एक सच्चा दिल वही है जो बिना शर्त प्यार कर सके, चाहे सामने कोई भी हो। उनके कार्य, उनकी संवेदनशीलता और उनकी जीवनशैली हमें यह सिखाती है कि दया और करुणा का विस्तार केवल इंसानों तक सीमित नहीं होना चाहिए।