भारत में, मिडल क्लास और अपर मिडल क्लास परिवारों में आम तौर पर आज भी यह चलन है कि माता-पिता अपने बच्चों को अकैडमिक रूप से सक्सेश प्राप्त करने के लिए प्रेरित करते हैं। हालांकि सूरत पहले से थोड़ी बदली है लेकिन अभी भी तस्वीर काफी बदलनी बाकी है। काफी बार कयी खिलाड़ी या आर्टिस्ट इस लिये पिछड़ जाते है क्यूंकि उन्हें घरवालों से उतना समर्थन नही मिल पाता जितना मिलना चाहिए। लेकिन भारत बेटी की सिफ़त कौर समरा को ऐसे माता-पिता का सौभाग्य मिला जो उसे शूटिंग रेंज में रिकॉर्ड तोड़ते देखना चाहते थे और अंततः उनकी बेटी ने उनका और पूरे भारत का नाम बुलंदियों मे पहुँचा दिया है। एशियन गेम्स मे दो मेडल जिसमें एक गोल्ड भी शामिल है जीत कर शिफ़्त ने इतिहास बना दिया है। जीत के बाद अब उनकी कहानी भी सामने आई है जो बेहद दिलचस्प और प्रेरणादायक है।
भाई ने निशानेबाजी से परिचित कराया, शिक्षक के कहने पर शुरू किया अभ्यास
सिफत कौर के पिता किसान हैं। मगर उनके परिवार मे चार से पांच चचेरे भाई-बहन डॉक्टर हैं। इसी लिए उनका भी पहले रुझान डॉक्टर बनने का था लेकिन किस्मत को कुछ और मनजूर था। आपको याद होगा कि कैसे भारतीय क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी को उनके एक टीचर ने कितना सपोर्ट किया था। कुछ उसी तरह सिफ़त कौर ने अपने शिक्षक के कहने पर स्कूल में शूटिंग का अभ्यास करना शुरू कर दिया और प्रतियोगिताओं में भाग लेना शुरू कर दिया। राज्य स्तर और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिताओं उत्कृष्ट प्रदर्शन के बाद सिफत कौर को अंतरराष्ट्रीय खेलों के लिए चुना गया और वहां भी उन्होंने देश का नाम रोशन करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सिफ्ट कौर ने 469.6 अंक के स्कोर के साथ पदक जीता, सिफ़त ने न केवल चार्ट में शीर्ष स्थान हासिल कर स्वर्ण पदक हासिल किया, बल्कि विश्व रिकॉर्ड, एशियाई रिकॉर्ड और एशियाई खेलों का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया।
शूटिंग की ओर अपने झुकाव के बारे मे वे बताती है कि- ” मेरे चचेरे भाई ने मुझे निशानेबाजी से परिचित कराया। मेरा पहला स्टेट प्रोग्राम अच्छा रहा और मेरे सभी रिश्तेदारों ने मेरे माता-पिता से कहा कि मुझे शूटिंग जाना चाहिए । सौभाग्य से, यह काम कर गया और मैं अब एक निशानेबाज हूँ।”
जब Stethoscope छोड़ थामी राइफल
भारत की 23 वर्षीय निशानेबाज सिफ़त कौर समरा ने निशानेबाजी में अपना करियर बनाने के लिए अपना एमबीबीएस कोर्स छोड़ने का फैसला किया। उनका ये निर्णय बहुत जोखिम भरा था लेकिन उन्होंने रिस्क लिया और अंततः जब उन्होंने एशियाई खेलों में महिलाओं की 50 मीटर 3पी स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीता। उनका ये डिसिजन सार्थक साबित हो गया। समरा अपनी पढ़ाई और शूटिंग के बीच संघर्ष कर रही थी, विभिन्न टूर्नामेंटों में भाग लेने की वजह से सिफत को देश-विदेश की यात्रा करनी पड़ती थी। इसका असर उनके कॉलेज उपस्थिति पर पड़ा। बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ने पिछले वर्ष एमबीबीएस प्रथम वर्ष की परीक्षा में सिफत को बैठने नहीं दिया। इसके बाद उन्होंने पढ़ाई ही छोड़ दी और खेल को चुना। अंततः उसने अपने शूटिंग करियर पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि उनके माता-पिता चिकित्सा के बजाय शूटिंग को आगे बढ़ाने के उनके फैसले के समर्थक थे।
जीत के बाद क्या उन्होंने ये कहा
मेडल जितने के बाद सिफ़त कौर ने कही ये बातें। उन्होंने कहा – “मैं मेडल विजेता बनने से बहुत खुश हूं। फाइनल में शूटिंग के दौरान मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ। मैं अपनी तकनीक पर ध्यान केंद्रित कर रही थी और यह उन दिनों में से एक था जब मेरी मेहनत रंग लायी और किस्मत का साथ भी मिला।” मैं उन चीजों पर ध्यान केंद्रित कर रहा था जो मेरे हाथ में थीं, इसलिए यह मेरे लिए बहुत अच्छा रहा।”