आज सुबह उठकर कैफे गया तो अमित त्रिवेदी का गीत ‘मधुबाला’ चल रहा था जिसके बोल हैं…”मधुबाला से भी आला दिखती मेरी नज़र से तुम को देखूं तो”… आम तौर पर कैफे में बैठा आयुष ऐसे गाने नहीं सुनता। वाह! क्या भाई आज ऐसे गाने कैसे? मैंने पूछा। अरे भैया आज वेलेंटाइन डे है ना! आयुष ने बहुत खुश होते हुये जवाब दिया। मैं अपनी चाय लेकर चेयर पर बैठ गया। जब आज का न्यूजपेपर देखा तो वहां ऐक्ट्रेस मधुबाला की तस्वीर थी। आगे पढ़ना शुरू किया तो पता लगा कि 14 फरवरी 1933 को ही उनका जन्म हुआ था। कमाल का संयोग है… मैंने मुस्कराते हुए सोचा! सोचते हुए मैंने गीत पर ध्यान दिया और जैसे इक लम्हा, ठहरा, फिर मैं खो गया…” अमित त्रिवेदी का गीत ‘मधुबाला’ जब बजता है, तो लगता है जैसे वक्त किसी खूबसूरत अतीत में लौट गया हो। वह दौर, जब सिनेमा ब्लैक एंड व्हाइट हुआ करता था, लेकिन उसमें भी एक चेहरा ऐसा हुआ जिसे रंग की जरूरत ही नहीं थी क्यूंकि वह खुद पर्दे पर अपना ‘खुदरंग’ उड़ेलने वाली थीं…ऐसी सुंदर और प्यारी अदाकारा का नाम था ‘मधुबाला’। उनका नाम लेते ही आंखों के सामने वह मुस्कान आ जाती है, जिसमें एक तरफ़ शोखी थी लेकिन उस मंद मुस्कान के पीछे एक ऐसी पीड़ा भी थी जिसे वही पढ़ पाये जो सिर्फ नजर नहीं नज़रिया पैदा कर पाये। उनकी कहानी कुछ ऐसी रही जैसे चमकते सितारे की रोशनी, जो अक्सर वक़्त से पहले डूब जाया करती है।
14 फरवरी 1933 को दिल्ली में जन्मी मधुबाला का असली नाम मुमताज़ जहान बेग़म देहलवी था। उनके पिता अयातुल्लाह खान पेशावर से दिल्ली आए थे, लेकिन जब घर की माली हालत बिगड़ने लगी, तो मुंबई का रुख किया। गरीबी ऐसी थी कि बचपन से ही मधुबाला को फिल्मों में काम करना पड़ा। महज़ 9 साल की उम्र में बसंत (1942) से उन्होंने सिल्वर स्क्रीन पर कदम रखा।
जल्द ही उनकी ख़ूबसूरती और प्रतिभा ने फिल्म इंडस्ट्री का ध्यान खींचा। 1947 में ‘नील कमल’ में बतौर लीड एक्ट्रेस नजर आईं, और फिर ‘महल'(1949) ने उन्हें रातोंरात स्टार बना दिया। “आएगा आने वाला” गाना जब गूंजा, तो दर्शकों को उनकी रहस्यमयी सुंदरता ने बांध लिया। इसके बाद बादल, तराना,संगदिल, हावड़ा ब्रिज और चलती का नाम गाड़ी जैसी फिल्मों में उनका जलवा कायम रहा। लेकिन मधुबाला को अमर करने वाला किरदार था फिल्म मुगल-ए-आज़म की अनारकली।
‘प्यार किया तो डरना क्या’ गाने में अनारकली बनी मधुबाला जब शीश महल में इश्क का इकरार कर रही थीं, तब असल ज़िंदगी में भी उनकी मोहब्बत दर्द का ही दूसरा नाम बन चुकी थी। दिलीप कुमार के साथ उनका रिश्ता परवान चढ़ा, लेकिन किस्मत ने उन्हें साथ नहीं रहने दिया। ‘मुगल-ए-आज़म’ के सेट पर अनारकली की बेड़ियां जितनी भारी थीं, उससे कहीं ज़्यादा उनके दिल का बोझ था।
पिता की सख़्त मर्ज़ी के चलते यह इश्क़ मुकम्मल न हो सका, और फिर मधुबाला की ज़िंदगी में किशोर कुमार आए। शादी तो हुई, लेकिन यह रिश्ता भी अधूरा रह गया। किशोर कुमार ने उनका इलाज करवाने की कोशिश की, पर मधुबाला की तबीयत लगातार बिगड़ती चली गई।
मधुबाला जितनी ज़िंदगी में हंसमुख दिखती थीं, उतना ही दर्द उनके भीतर था। दिल की उस समय लाइलाज बीमारी से पीड़ित होने के बावजूद उन्होंने काम जारी रखा। डॉक्टरों ने कह दिया था कि उनके पास ज़्यादा वक़्त नहीं है, लेकिन उन्होंने मौत के साए में भी मुस्कुराना नहीं छोड़ा। आख़िरी दिनों में वे पूरी तरह बिस्तर तक सीमित हो गई थीं। उनके आख़िरी शब्द थे, “मैं जीना चाहती हूं।”
36 साल की उम्र में, 23 फरवरी 1969 को, मधुबाला इस दुनिया से रुख़सत हो गईं। उनके जाने के बाद भी उनकी ख़ूबसूरती और उनके किरदार अमर हैं। उनका हर गाना, हर सीन जैसे आज भी ज़िंदा है।
मधुबाला का नाम हिंदी सिनेमा की सबसे खूबसूरत अभिनेत्रियों में लिया जाता है, लेकिन उनकी ज़िंदगी की कई अनकही कहानियां भी हैं। मधुबाला की बहन मधुर भूषण ने बताया कि उनकी मौत के बाद परिवार बेहद गरीबी में चला गया था।
आज भी जब उनकी तस्वीरें देखी जाती हैं, तो लगता है जैसे वह मुस्कान किसी और दुनिया की थी। एक ऐसी दुनिया, जहां सिर्फ मोहब्बत और खूबसूरती का राज था।
अगर सिनेमा एक कविता होती, तो मधुबाला उसका सबसे खूबसूरत मिसरा होतीं। उनकी ज़िंदगी भले ही छोटी रही, लेकिन उनकी मोहब्बत, उनकी अदाकारी, और उनकी विरासत अनंत है। वे सिर्फ एक एक्ट्रेस नहीं, बल्कि एक अहसास थीं। जो आज भी ज़िंदा है, हर धड़कन में, हर फ्रेम में, हर गीत में।