सरकार ये नहीं करतीं वो नहीं करती, ये नेता ऐसा है वैसा है…आजकल लोग ऑनलाइन इसी तरह भर – भर कर असंतोष प्रकट करते है, लेकिन जब उनके ही हाथों मे सरकार चुनने की शक्ति आयी है, तो वे घरों से भी बाहर नहीं निकलना चाहते। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के सबसे बड़े चुनाव में मतदाताओं की भागीदारी और वोटिंग में भारी कमी एक बुरी खबर है।
भारतीय चुनाव आयोग और टीवी चैनलों की तरफ से जागरूकता अभियानों के बावजूद वोटिंग पर्सेन्ट मे गिरावट आ रही है। इस बार लोग वोट करने घरों से बाहर नहीं निकल रहे हैं। इसने राजनीतिक दलों के सात ही निर्वाचन आयोग की भी चिंता बढ़ा दी है। हालांकि, एक्सपर्ट का मानना है कि मौसम के साथ ही विपक्षी दलों की कम सक्रियता भी वोटिंग प्रतिशत में कमी की एक वजह है। पक्ष और विपक्ष दोनों ही कम वोटिंग को अपने-अपने पक्ष में होने का दावा कर रहे हैं लेकिन कम वोटिंग लोकतन्त्र के पक्ष में बिल्कुल नहीं।
वोटिंग प्रतिशत की बात करें तो, इस बार भी हाल पहले चरण की वोटिंग जैसे ही थे। पहले चरण में 21 राज्यों की 102 लोकसभा सीटों पर 64 पर्सेन्ट वोट डाले गए थे। जबकि दूसरे चरण में महज 63 प्रतिशत मतदान देखने को मिला। सबसे अधिक वोट त्रिपुरा, मणिपुर, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल में पड़े।
कम मतदान सत्ताधारी पार्टी को नुकसान पहुंचाता हैं, अगर पिछले कुछ चुनावों पर गौर करें तो चार बार जब मतदान की दर कम हुई तो सत्ता परिवर्तन हुआ था और सिर्फ एक बार मतदान में गिरावट आने पर सत्ता में कोई बदलाव नहीं हुआ। इस बार कम होते इस वोटिंग प्रतिशत से इलेक्शन कमीशन के अधिकारी समेत नेता भी परेशान हैं।
वोटर को चुनाव के दिन अपने वोटिंग के अधिकार का अवश्य प्रयोग करना चाहिए। अगर कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं तो भी वोटर के पास ‘नोटा’ के रूप में विकल्प है। कम मतदान लोकतंत्र के लिए चिंताजनक है। सबसे अपील है कि अपने मताधिकार का इस्तेमाल जरूर करें।