हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी मनाई जाती है। देवउठनी एकादशी 24 एकादशियों में से सबसे महत्वपूर्ण एकादशी है। इस एकादशी के दिन को शास्त्रों में सबसे शुभ दिन माना जाता है। देवउठनी एकादशी का हिंदू धर्म में बड़ा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। यह दिन पूरी तरह से भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। इस साल देवउठनी एकादशी दो दिनों की है यानि 22 और 23 नवंबर की है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली देवउठनी एकादशी मां लक्ष्मी और श्रीहरि विष्णु को प्रसन्न करने के लिए श्रेष्ठ दिन माना जाता है, इसके प्रभाव से बड़े से बड़ा पाप भी क्षण मात्र में ही नष्ट हो जाता है।
क्यों मनाई जाती है देवउठनी एकादशी
क्यों मनाई जाती है देवउठनी एकादशी तो आपको बता दे कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार महीने बाद निंद्रा से जागते हैं। और कहा गया है कि भगवान विष्णु जिन चार महीने निंद्रा में होते है उस समय में विवाह आदि मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। भगवान विष्णु अपनी निंद्रा से चार महीने बाद देवउठनी एकादशी पर जागते है, इसलिए देवोत्थान एकादशी पर जागने के बाद शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू होते हैं।
क्या है देवउठनी एकादशी का मुहूर्त
आपको बता दे की इस साल देवउठनी एकादशी एक दिन कि नहीं बल्कि दो दिन की है,जो 22 नवंबर बुधवार को सुबह 11:03 बजे से शुरू होगी और दूसरे दिन 23 नवंबर गुरुवार को रात्रि 09:01 बजे समाप्त होंगी।
आइए जानते है देवउठनी एकादशी पूजा कि विधि
- देवउठनी एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद भगवान विष्णु जी की पूजा करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- श्री हरि विष्णु की प्रतिमा के समक्ष उनके जागने का आह्वान करें।
- शाम में पूजा स्थल पर घी के 11 दीये देवी-देवताओं के समक्ष जलाएं।
- यदि संभव हो पाए तो गन्ने का मंडप बनाकर बीच में विष्णु जी की मूर्ति रखें।
- भगवान हरि को गन्ना, सिंघाड़ा, लड्डू, जैसे मौसमी फल अर्पित करें।
- एकादशी की रात एक घी का दीपक जलाएं।
देवउठनी एकादशी के दिन यह चीजे ना करे भूलकर भी
- देवउठनी एकादशी के दिन चावल का सेवन करने से बचना चाहिए। इस दिन चावल खाने से व्यक्ति रेंगने वाले जीव की योनी में जन्म लेता है। इसलिए चावल का सेवन करने से बचें।
- व्रत रखने के दौरान कोशिश करें कि किसी भी व्यक्ति के लिए अपने मन में कोई द्वेष भावना न रखें और बड़े-बुजुर्गों की हमेशा सेवा करें।
- देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह और शालीग्राम विवाह भी होता है। ऐसे में तुलसी की पत्तियां तोड़ने से बचना चाहिए।
- इस दिन लड़ाई-झगड़ा करने से बचना चाहिए। वरना घर में कभी माता लक्ष्मी का आगमन नहीं होता है।