चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के संघर्ष की कहानी
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाय चंद्र जून के संघर्ष की कहानी सामने आई है। उनके पिता भी चीफ जस्टिस ऑफ सुप्रीम कोर्ट रहे हैं। डीवाय चंद्रचूड़, पिता के इतने बड़े पद पर होने के बावजूद खर्चा चलाने के लिए ऑल इंडिया रेडियो पर आरजे थे। बस में सफर कर कॉलेज जाते थे।
वायवी चंद्रचूड़ 1978 से लेकर 1985 तक चीफ जस्टिस रहे। इसी दौरान धनंजय दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई कर रहे थे। अपने सरकारी बंगले से सेंट स्टीफेंस कॉलेज जाने के लिए वो किसी कार या विशेष वाहन का इस्तेमाल करने के बजाय डीटीसी बस से जाते थे। चंद्रचूड़ का परिवार संगीत बहुत पसंद करता है। डीवाय के माता-पिता, दोनों शास्त्रीय संगीत की गहराई को समझते थे। पिता संगीत सिखाते थे और मां ऑल इंडिया रेडियो में गाती थीं। डीवाय के पास हिंदुस्तान की महान गायक किशोरी अमोनकर का ऑटोग्राफ है, जिसे वह अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी पूंजी बताते हैं। संगीत के प्रति परिवार के इस प्रेम को आगे बढ़ाते हुए डीवाय ने आकाशवाणी में एक कार्यक्रम शुरू किया। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के और भी कई कार्यक्रम होस्ट किए, जिसमें ‘प्ले इट कूल,’डेट विद यू,और ‘संडे रिक्वेस्ट, को लोगों ने पसंद भी किया। डीयू से एलएलबी करने के बाद डीवाय आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका चले गए। वहां हॉर्वर्ड लॉ स्कूल से मास्टर की डिग्री हासिल की। 1986 में वहीं से ज्यूडिशियल साइंस में डॉक्टरेट हासिल करने के बाद भारत लौटे और वकालत शुरू की। 1998 में भारत के एडिशनल सॉलिसिटर जनरल बन गए। तब तक भी उनकी जिंदगी बहुत सामान्य थी। साल 2000 में बांबे हाइकोर्ट के स्थायी जज बने। 31 अक्टूबर 2013 को उन्हें इलाहाबाद हाइकोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया। इतने पदों पर रहने के बावजूद 2013 तक वो अपने पिता की 1966 मॉडल एंबेसेडर कार ही चलाते थे। कॉलेज के दिनों में कई एनजीओ के साथ भी डीवाय चंद्रचूड़ ने काम किया। उनकी प्राथमिकता रही है कि आम लोगों को उनके हक का न्याय मिल सके