पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के सपनों की नालंदा यूनिवर्सिटी अब साकार रूप ले रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कल 19 जून को बिहार के राजगीर में नालंदा यूनिवर्सिटी के नए परिसर का उद्घाटन कर दिया है। कैंपस के उद्घाटन के लिए आयोजित किए गए कार्यक्रम में विदेश मंत्री एस जयशंकर समेत 17 अन्य देशों के राजदूत भी शामिल हुए थे। हालांकि इसका विस्तार प्रचीन यूनिवर्सिटी से काफ़ी कहीं अधिक है क्योंकि बिहार सरकार की तरफ से इसके निर्माण के लिए 455 एकड़ जमीन उपलब्ध करवाई गई है।
1,749 करोड़ रुपए की लागत से बना नया कैंपस
नालंदा यूनिवर्सिटी का नया कैंपस नालंदा के प्राचीन खंडहरों के करीब ही है। नालंदा यूनिवर्सिटी एक समय में दुनिया का शिक्षा का केंद्र हुआ करता था। यहां दुनिया भर के स्टूडेंट पढ़ते थे। तकरीबन 800 सालों तक इन प्राचीन यूनिवर्सिटी ने ना जाने कितने छात्रों को शिक्षा दी है। लेकिन आक्रमणकारियों ने इसे तबाह कर दिया था। हालांकि अब 815 सालों के लंबे इंतजार के बाद यह फिर से अपने पुराने स्वरूप में लौट रहा है। नया कैंपस 1,749 करोड़ रुपए की लागत से बना है। 1,749 करोड़ रुपए की लागत से बने इस नए कैंपस में 2 अकैडमिक ब्लॉक हैं। इनमें 40 क्लासरूम हैं। यहां लगभग 1900 छात्रों के बैठने की व्यवस्था है। नए कैंपस में 550 छात्रों के रहने के लिए एक छात्रावास भी है। इसके अलावा कैंपस में एक अंतरराष्ट्रीय केंद्र, 2000 लोगों की क्षमता वाला एक एम्फीथिएटर, एक फैकल्टी क्लब और एक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स जैसी कई अन्य सुविधाएं भी हैं।
क्या है नालंदा यूनिवर्सिटी का इतिहास?
नालंदा यूनिवर्सिटी प्राचीन भारत में उच्च शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण और विख्यात केंद्र था। इसकी स्थापना गुप्त काल के दौरान 5वीं सदी में कुमारगुप्त प्रथम ने 450 ई. में की थी। लेकिन सन् 1193 में बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद इसे तबाह कर दिया गया था। आक्रमण के दौरान यहां पर काफ़ी भयंकर आग लगा दी गई थी। उस समय नालंदा यूनिवर्सिटी पुस्तकालय में इतनी किताबें थीं कि कई सप्ताह तक आग नहीं बुझ पाई थी। साथ ही यहां काम करने वाले कई धर्माचार्य और बौद्ध भिक्षुओं को भी मार डाला गया था। आपको बता दे कि, मॉडर्न वर्ल्ड को इसके बारे में 19वीं शताब्दी के दौरान पता चला था। कई सदी तक ये यूनिवर्सिटी जमीन में ही दबा हुआ था। उसके बाद 1812 में बिहार के लोगों को बौद्धिक मूर्तियां मिली थीं, जिसके बाद कई विदेशी इतिहासकारों ने इस पर आगे अध्ययन किया था।
किन-किन लोगों ने की नालंदा यूनिवर्सिटी से अपनी पढ़ाई
बता दें कि, नालंदा यूनिवर्सिटी कभी ज्ञान विज्ञान का अद्वितीय केंद्र था। साथ ही मानव सभ्यता संस्कृति धर्म और दर्शन के इतिहास में नालंदा का योगदान अविस्मरणीय हैं। प्राचीन काल में नालंदा अपने ज्ञान, दर्शन, साहित्य, चिंतन और विश्व बंधुत्व के सार्वभौमिक भाव के लिए विश्वविख्यात था। इसमें 2000 शिक्षकों के साथ 10000 छात्रों के अध्ययन और अध्यापन की सुविधा थी। यहां देश-विदेश से लोग विद्या अध्ययन करने आते थे। इस विश्वविद्यालय में धर्म, दर्शन, व्याकरण, तर्कशास्त्र, औषधी, शास्त्र, वेद विषयों की पढ़ाई की जाती थी। तक्षशिला विक्रमशिला इसके समकालीन शिक्षा केंद्र थे। इस विश्वविद्यालय में महान शिक्षकों में नागार्जुन, बुद्धपालिता, शांतरक्षिता और आर्यदेव का नाम शामिल है। वहीं अगर यहां पढ़ने वालों की बात करें तो यहां कई देशों से लोग पढ़ने आते थे। साथ ही चीन के प्रसिद्ध यात्री और विद्वान ह्वेन सांग, फाह्यान और इत्सिंग भी यहां से पढ़े है। ह्वेन सांग, नालंदा के आचार्य शीलभद्र के शिष्य थे। ह्वेन सांग ने 6 साल तक नालंदा यूनिवर्सिटी में रहकर कानून की पढ़ाई की थी।