26 नवंबर 1949 को भारत की संविधान सभा ने देश के संविधान को अपनाया था। हालांकि, यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ, लेकिन इस दिन को “संविधान दिवस” के रूप में याद किया जाता है। इसे “राष्ट्रीय कानून दिवस” के नाम से भी जाना जाता था। 2015 में, डॉ. भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती पर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे संविधान दिवस के रूप में घोषित किया था। इस वर्ष संविधान को अपनाए जाने के 75 वर्ष पूरे हो गए हैं।
भारत का संविधान दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। इसे बनाने में लगभग 2 साल, 11 महीने और 18 दिन लगे। संविधान सभा के 299 सदस्यों ने अपने विचारों और अनुभवों से इसे तैयार किया। इसे अंतिम रूप मिलने से पहले भारतीय संविधान के पहले ड्राफ्ट में करीब 2000 संशोधन किए गए थे। डॉ. भीमराव अंबेडकर, जिन्हें “संविधान का निर्माता” कहा जाता है, ने ड्राफ्टिंग कमेटी के अध्यक्ष के रूप में इसमें प्रमुख भूमिका निभाई। हालांकि भारत मे बहुत लोगों के मन मे आज भी यह धारणा है कि डॉ. अंबेडकर ने अकेले ही संविधान लिखा। लेकिन सच यह है कि यह सामूहिक प्रयास था। हालांकि, उनके मार्गदर्शन और बौद्धिक दृष्टिकोण ने संविधान को विशिष्टता दी।
भारतीय संविधान को कई देशों के संविधानों से प्रेरणा मिली है। जैसे: ब्रिटेन की संसदीय प्रणाली,अमेरिका के मौलिक अधिकार और न्यायपालिका की स्वतंत्रता,आयरलैंड के राज्य के नीति निर्देशक तत्व, फ्रांस, जापान, रूस और कनाडा की संघीय प्रणाली ।
संविधान तैयार करने में उस समय लगभग 64 लाख रुपये खर्च हुए थे। यह राशि उस दौर में अत्यधिक मानी जाती थी। हमारा संविधान मशीन पर नहीं, बल्कि हाथ से लिखा गया। इसे प्रेम बिहारी नारायण रायजादा नामक कैलिग्राफर ने अपनी हस्तलिपि में तैयार किया। इसे देवनागरी और अंग्रेजी दोनों में लिखा गया था। संविधान के अंग्रेजी संस्करण में कुल 117,369 शब्द हैं। यह दर्शाता है कि संविधान कितना विशाल है।
संविधान सभा में 15 महिलाएँ थीं, जिनमें सरोजिनी नायडू, दुर्गाबाई देशमुख, हंसा मेहता, और अन्य ने सक्रिय भूमिका निभाई। यह भारत में महिलाओं की बढ़ती जागरूकता और अधिकारों की दिशा में एक बड़ा कदम था।
संविधान दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को संविधान के महत्व, इसके सिद्धांतों और नागरिकों के अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति जागरूक करना है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि संविधान न केवल एक दस्तावेज है, बल्कि देश की आत्मा और मूलभूत संरचना है।
भारतीय संविधान अब तक 100 से अधिक बार संशोधित हो चुका है। इसका सबसे चर्चित संशोधन 1976 का 42वां संशोधन था, जिसे आपातकाल के दौरान लागू किया गया। इसे “मिनी संविधान” भी कहा जाता है।
अक्सर यह चर्चा होती है कि नागरिक अपने अधिकारों पर अधिक ध्यान देते हैं, लेकिन कर्तव्यों की अनदेखी करते हैं। संविधान दिवस इस असंतुलन को सुधारने का भी एक माध्यम है।
समय-समय पर भारतीय न्यायपालिका ने संविधान के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। “केशवानंद भारती केस” (1973) इसका सबसे बड़ा उदाहरण है, जिसने संविधान के “मूल ढांचे” की अवधारणा को स्थापित किया।
आज के समय में युवा पीढ़ी को संविधान की मूल भावना को समझने की जरूरत है। इसे केवल एक कानूनी दस्तावेज मानने के बजाय, इसे भारत के भविष्य का मार्गदर्शक माना जाना चाहिए।
संविधान दिवस न केवल हमारे महान संविधान निर्माताओं को श्रद्धांजलि देने का अवसर है, बल्कि हमारे लोकतंत्र को मजबूत बनाने और इसके सिद्धांतों को आत्मसात करने का भी समय है।