कल देर रात ही मैं मशहूर हास्य व्यंग्य कवि ‘सुरेंद्र शर्मा’ का इंटरव्यू देख रहा था। उन्होंने बताया कि एक समय था जब कवि सम्मेलनों मे न के बराबर पैसा मिला करता था। लाल किले पर भी एक कवि सम्मेलन होता था जिसमें साहित्य के बड़े बड़े धुरंधर कवि आया करते थे। सभी कवियों को 100 रुपये का मेहनताना दिया जाता था। लेकिन एक ऐसे कवि थे मात्र जिन्हें सबसे अधिक 200 रुपये दिए जाते थे और बार बार एक ही कविता सुनने की फर्माइश होती थी। कवि का नाम था ‘हरिवंश राय बच्चन’ और वो कविता थी ‘मधुशाला’।
हरिवंश राय बच्चन का नाम भारतीय साहित्य में एक ऐसे कवि के रूप में लिया जाता है जिन्होंने हिंदी कविता को एक नया आयाम दिया। उनकी लेखनी केवल शब्दों का संयोग नहीं थी, बल्कि उनकी आत्मा का विस्तार थी।
उनका जन्म 27 नवंबर 1907 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद(अब प्रयागराज) में हुआ था। उनका असली नाम हरिवंश राय श्रीवास्तव था, लेकिन उन्होंने “बच्चन” उपनाम को अपनाया, जो बाद में उनकी पहचान बन गया। बच्चन का बचपन साधारण ग्रामीण परिवेश में बीता, लेकिन शिक्षा के प्रति उनके परिवार का झुकाव हमेशा रहा।
उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी साहित्य में एम.ए. किया और इसके बाद कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त की। वे कैंब्रिज विश्वविद्यालय से पी.एच.डी. करने वाले पहले भारतीयों में से एक थे।
हरिवंश राय बच्चन की कविता यात्रा 1930 के दशक में शुरू हुई। यह वह समय था जब भारत स्वतंत्रता संग्राम से गुजर रहा था और हिंदी कविता सामाजिक और राजनीतिक बदलावों से प्रभावित हो रही थी। लेकिन बच्चन की कविता इन सब से अलग थी। उनकी कविताओं में व्यक्ति के आंतरिक जीवन, उसकी भावनाओं और संघर्षों का चित्रण था।
उनकी कविता-यात्रा बचपन से ही शुरू हो गई थी और स्कूली दिनों से तुकबंदियाँ करने लगे थे। 1933 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में हुए कवि-सम्मेलन में उनके द्वारा ‘मधुशाला’ के पाठ को श्रोताओं ने ख़ूब पसंद किया और धीरे-धीरे उनकी मंचीय ख्याति इतनी बढ़ गई कि प्रेमचंद ने भी एक बार कहा कि मद्रास में भी यदि कोई किसी हिंदी कवि का नाम जानता है तो वह बच्चन का नाम है।
उनका प्रथम विवाह श्यामा से 1927 में हुआ। 1936 में पैसे के अभाव में क्षयरोग के अधूरे इलाज के कारण श्यामा की मृत्यु हो गई। उनका दूसरा विवाह 1942 में तेजी सूरी से हुआ।
उनका पहला काव्य-संग्रह ‘तेरा हार’ 1932 में प्रकाशित हुआ। 1935 में प्रकाशित उनका दूसरा संग्रह ‘मधुशाला’ उनकी स्थायी लोकप्रियता और प्रसिद्धि का कारण बना। यह केवल एक काव्य संग्रह नहीं था, बल्कि यह जीवन के प्रति उनके दृष्टिकोण का प्रतीक था। “मधुशाला” ने शराब, मयखाना और जीवन के बिंबों के माध्यम से गहरे दार्शनिक प्रश्न उठाए। इसकी पंक्तियाँ आज भी लोगों की ज़ुबान पर रहती हैं।
“मधुशाला जाने के लिए दिल में होनी चाहिए आग,
हर साकी के पास नहीं, हर मयखाने में नहीं मिलती मधुशाला।”
हरिवंश राय बच्चन ने लगभग 30 से अधिक काव्य संग्रह लिखे। उनकी प्रमुख रचनाओं में “मधुबाला”, “निशा निमंत्रण”, “एकांत संगीत”, “सतरंगिनी”, और “अकेला” शामिल हैं। उन्होंने आत्मकथा लिखने में भी महारत हासिल की। उनकी आत्मकथा चार भागों में प्रकाशित हुई जिनके शीर्षक हैं – क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक। इन आत्मकथाओं में उनके जीवन, संघर्ष, और साहित्यिक यात्रा का अद्भुत चित्रण मिलता है।
हरिवंश राय बच्चन का निजी जीवन भी उनकी कविताओं की तरह ही उतार-चढ़ाव से भरा रहा। उनकी पहली पत्नी श्यामा का 1936 में निधन हो गया, जो उनके जीवन का सबसे कठिन समय था। इसके बाद उन्होंने तेजी बच्चन से विवाह किया, जो उनके जीवन का नया अध्याय साबित हुआ। तेजी बच्चन ने न केवल उनके जीवन को संभाला, बल्कि उनकी साहित्यिक यात्रा में भी प्रेरणा दी।
कौन बनेगा करोड़पति के दौरान ही बिग बी ने अपने माता-पिता की लव स्टोरी का भी जिक्र किया था। माता-पिता की पहली मुलाकात का जिक्र करते हुए बिग बी ने कहा था- ‘बरेली में बाबूजी के एक दोस्त रहते थे, उन्होंने बाबूजी को मिलने के लिए बुलाया। बाबूजी उनसे मिलने गए। डिनर के दौरान बाबूजी के दोस्त ने उनसे कविता सुनाने का अनुरोध किया। लेकिन, इससे पहले कि मेरे पिता कविता सुनाना शुरू करते उनके दोस्त ने अपनी पत्नी से मेरी मां (तेजी बच्चन) को बुलाने को कहा। वहीं बाबूजी की हमारी माताजी के साथ पहली मुलाकात हुई थी। मां के आने के बाद बाबूजी ने ‘क्या करूं संवेदना लेकर तुम्हारी’ कविता सुनाना शुरू किया और मां ये कविता सुनकर रो पड़ीं। पिताजी के दोस्त ने मां और पिताजी को कमरे में अकेला छोड़ दिया और खुद बाहर चले गए।’ कविता जारी रही।
मैं दुखी जब-जब हुआ
संवेदना तुमने दिखाई,
मैं कृतज्ञ हुआ हमेशा,
रीति दोनो ने निभाई,
किन्तु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी;
क्या करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?
क्या करूँ?
‘पिताजी के दोस्त थोड़ी देर बाद एक माला लेकर माला लेकर आए और उनसे कहा कि इसे उसे पहना दो। बस उसी दिन पिताजी ने तय कर लिया था कि अब वह अपनी आगे की जिंदगी हमारी माताजी के साथ बिताएंगे।’ हरिवंश राय बच्चन ने 1941 में तेजी बच्चन से शादी की थी। इस शादी से दोनों के दो बच्चे हुए, जिनका नाम अमिताभ और अजिताभ बच्चन रखा।
हरिवंश राय बच्चन ने हिंदी साहित्य को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। वे अपने समय में साहित्य अकादमी पुरस्कार और पद्म भूषण से सम्मानित किए गए। उन्होंने न केवल कविताएँ लिखीं, बल्कि अंग्रेज़ी और अन्य भाषाओं के साहित्य का हिंदी में अनुवाद भी किया। शेक्सपियर के “मैकबेथ” और “ऑथेलो” के उनके अनुवाद अद्वितीय माने जाते हैं।
बच्चन का साहित्य केवल प्रेम और वेदना तक सीमित नहीं था। उन्होंने जीवन, मृत्यु, आत्मा, और मानवता जैसे विषयों पर भी लिखा। उनकी कविताओं में एक गहरी दार्शनिकता थी, जो पाठक को सोचने पर मजबूर करती है।
उनकी कविताएँ आज भी जीवित हैं। उनके पुत्र अमिताभ बच्चन ने उनकी विरासत को संजो कर रखा है और कई बार उनके काव्य का जिक्र करते हैं। बच्चन की कविताएँ आज भी उसी ऊर्जा और प्रेरणा के साथ पढ़ी जाती हैं, जैसे वे लिखी गई थीं।
उनका निधन 18 जनवरी 2003 को हुआ, लेकिन उनकी रचनाएँ आज भी हमारे बीच जीवित हैं। उन्होंने जो विरासत छोड़ी, वह हिंदी साहित्य के लिए एक अनमोल खजाना है।’जो बीत गई सो बात गई’…यह पंक्ति केवल एक कविता नहीं, बल्कि उनके जीवन का सार है।