इतिहास में 5 फ़रवरी का दिन कई महत्वपूर्ण घटनाओं से जुड़ा है, विशेषकर महात्मा गांधी के जीवन और उनके संघर्षों से। यह दिन उनके नेतृत्व, उनके आदर्शों और उनके जीवन में आए कुछ निर्णायक मोड़ों का साक्षी रहा है। आइए जानते हैं आज के दिन और गांधी से जुड़ी हुई तीन घटनाओं के बारे में –
5 फ़रवरी 1922: चौरी-चौरा कांड और असहयोग आंदोलन का अंत
1920 के दशक में महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था। भारतीय जनमानस में स्वतंत्रता की लहर थी और ब्रिटिश शासन के खिलाफ व्यापक विरोध किया जा रहा था। लेकिन 5 फरवरी 1922 को उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के चौरी-चौरा में एक हिंसक घटना हुई, जिसने गांधीजी के आंदोलन की दिशा ही बदल दी।
इस दिन एक राष्ट्रवादी जुलूस ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ प्रदर्शन कर रहा था, जब पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज किया। इसके विरोध में प्रदर्शनकारी भड़क उठे और पुलिस थाने पर हमला कर दिया। इस उग्र भीड़ ने थाने को आग के हवाले कर दिया, जिसमें 22 पुलिसकर्मी और एक उप-निरीक्षक जलकर मृत्यु को प्राप्त हुए।
महात्मा गांधी, जो अहिंसा के कट्टर समर्थक थे, इस घटना से अत्यंत दुखी हुए। उन्होंने इस हिंसा की जिम्मेदारी ली और इसके परिणामस्वरूप असहयोग आंदोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी। यह एक बहुत बड़ा निर्णय था क्योंकि यह आंदोलन पूरे देश में ब्रिटिश शासन के खिलाफ जबरदस्त समर्थन प्राप्त कर चुका था।
गांधीजी ने इस घटना के बाद पाँच दिन का उपवास रखा और कहा कि भारत को स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए अहिंसा के मार्ग पर ही चलना होगा। चौरी-चौरा कांड भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ था क्योंकि इसने यह सिद्ध कर दिया कि हिंसा को किसी भी रूप में समर्थन नहीं दिया जा सकता।
5 फ़रवरी 1924: गांधीजी की सर्जरी और जेल से रिहाई
महात्मा गांधी को 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद ब्रिटिश सरकार ने राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर लिया था और उन्हें छह साल की सजा सुनाई गई थी। लेकिन दो साल बाद, 1924 में, उन्हें पुणे के ससून अस्पताल में अपेंडिक्स की सर्जरी करानी पड़ी। यह उनके स्वास्थ्य के लिए एक कठिन समय था।
सर्जरी सफल रही और इसके बाद गांधीजी को जेल से रिहा कर दिया गया। उनकी रिहाई के बाद भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया मोड़ आया, क्योंकि उन्होंने कांग्रेस के भीतर और बाहर हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए जोर देना शुरू किया।
5 फ़रवरी 1949: गांधीजी के हत्यारों को सुनाई गई फांसी की सजा
महात्मा गांधी की 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोडसे द्वारा हत्या कर दी गई थी। यह घटना भारतीय इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं में से एक थी। गांधीजी की हत्या के बाद उनके हत्यारों पर मुकदमा चला और 5 फरवरी 1949 को इस पर अंतिम निर्णय आया।
नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को गांधीजी की हत्या का दोषी पाया गया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। गांधीजी की हत्या के बाद पूरे भारत में शोक की लहर दौड़ गई थी, और यह उनकी अहिंसा की विचारधारा पर एक गहरा आघात था।
गांधीजी का जीवन और उनका योगदान आज भी हमें सत्य, अहिंसा और आत्मसंयम का मार्ग दिखाता है। उनका हर निर्णय, चाहे वह असहयोग आंदोलन को रोकना हो, हिंदू-मुस्लिम एकता के लिए प्रयास करना हो, या अहिंसा की राह पर अडिग रहना हो।