कल यानी 13-14 फरवरी देर रात को रूस ने यूक्रेन स्थित Chernobyl न्यूक्लियर सेंटर पर ड्रोन से हमला किया है। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने हमले की पुष्टि की है। 1986 में हुए हादसे के बाद से वहां ये पहली घटना है। रूस का ये हमला सिर्फ यूक्रेन ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए भी खतरे की घंटी बजा रहा है, वो कैसे ये समझने से पहले एक बार 1986 के धमाके और उसके असर के बारे में जान लेते हैं।
घड़ी की सुइयाँ 26 अप्रैल 1986 की रात के 1:23 पर अटक गईं। उत्तर यूक्रेन के Chernobyl न्यूक्लियर पावर प्लांट के चौथे रिएक्टर में अचानक जोरदार धमाका हुआ, जिससे रेडिएशन की खतरनाक मात्रा हवा में फैल गई। देखते ही देखते संयंत्र के चारों ओर अफरा-तफरी मच गई। धुएं के गुबार में रेडियोधर्मी तत्वों का जहर घुल गया, जो अगले कई दशकों तक इंसानियत पर कहर बरपाने वाला था।
चेरनोबिल न्यूक्लियर प्लांट तत्कालीन सोवियत संघ (अब यूक्रेन) के प्रिप्याट शहर के पास स्थित था। यहाँ चार परमाणु रिएक्टर थे, जिनमें RBMK-1000 नामक सोवियत डिजाइन का इस्तेमाल किया गया था। 25 अप्रैल 1986 को, प्लांट के इंजीनियरों ने चौथे रिएक्टर पर एक सेफ्टी टेस्ट करने का फैसला किया। इस परीक्षण का मकसद यह देखना था कि अगर बिजली सप्लाई बंद हो जाए तो क्या रिएक्टर का टर्बाइन जनरेटर पर्याप्त ऊर्जा पैदा कर पाएगा।
लेकिन टेस्ट के दौरान कई गंभीर गलतियाँ हुईं। सबसे बड़ी गलती यह थी कि ऑपरेटरों ने रिएक्टर की सुरक्षा प्रणाली को बंद कर दिया और बहुत कम पॉवर पर इसे चला दिया। इससे एक अस्थिर स्थिति पैदा हो गई। अचानक, रिएक्टर की ऊर्जा अनियंत्रित हो गई और बेहद तेजी से बढ़ गई। गर्मी इतनी अधिक हो गई कि रिएक्टर का कोर पिघलने लगा और फिर एक विनाशकारी धमाका हुआ।
विस्फोट के बाद, हजारों टन रेडियोधर्मी पदार्थ वातावरण में फैल गया। इस विकिरण ने इंसानों, जानवरों और पर्यावरण को भयानक नुकसान पहुंचाया। इस हादसे के तुरंत बाद प्लांट के कर्मचारी और अग्निशमन दल बिना किसी सुरक्षा उपकरण के आग बुझाने में जुट गए, जिससे उनमें से कई को गंभीर रेडिएशन पॉइज़निंग हो गई और वे कुछ दिनों में ही दर्दनाक मौत के शिकार हो गए।
तत्कालीन सोवियत सरकार ने पहले इस आपदा को छुपाने की कोशिश की, लेकिन जब स्वीडन में न्यूक्लियर सेंसरों ने असामान्य विकिरण स्तर दर्ज किए, तब दुनिया को इस आपदा का पता चला। करीब 36 घंटे बाद, आसपास के 50,000 से अधिक लोगों को प्रिप्याट शहर से निकाला गया। हालांकि, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। हवा, पानी और जमीन सब जहरीली हो चुकी थी।
इसके बाद, 600,000 से अधिक लोगों को रेडिएशन को नियंत्रित करने के लिए भेजा गया, जिन्हें “लिक्विडेटर्स” कहा जाता है। इनमें से हजारों लोग बाद में कैंसर और अन्य विकिरण जनित बीमारियों से मर गए।
इस हादसे के बाद, सोवियत संघ ने रिएक्टर के ऊपर एक विशाल कंक्रीट सरकोफेगस (सुरक्षा कवच) बनाया, जिससे रेडिएशन को रोका जा सके। 2016 में, इसे एक नए स्टील संरचना से ढक दिया गया, जिसे “न्यू सेफ कनफाइनमेंट” कहा गया। यह अगले 100 वर्षों तक रेडिएशन को सीमित रखने के लिए बनाई गई थी।
लेकिन फरवरी 2022 में जब रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण किया, तब Chernobyl भी रूसी सेना के कब्जे में आ गया। हालांकि, कुछ हफ्तों बाद वे वहां से हट गए, लेकिन अब एक नई चुनौती सामने आई है। कल देर रात यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने दावा किया कि एक रूसी ड्रोन हमले ने Chernobyl के रेडिएशन कंटेनमेंट शेल्टर को नुकसान पहुंचाया है।
इस हमले से रेडिएशन फैलने का खतरा बढ़ गया है। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर संरक्षित ढांचा अधिक क्षतिग्रस्त होता है, तो यह हादसा फिर से विनाशकारी रूप ले सकता है।
हालांकि फ़िलहाल न्यूक्लियर प्लांट का रेडिएशन लेवल सामान्य बना हुआ है, और आग पर भी काबू पा लिया गया है। अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) ने भी इस घटना की जानकारी दी है
Chernobyl पहले ही दुनिया की सबसे बड़ी परमाणु आपदाओं में से एक रहा है, और अगर कोई और बड़ा नुकसान होता है, तो यह न केवल यूक्रेन बल्कि पूरे यूरोप और दुनिया के लिए खतरा बन सकता है।
अब सवाल उठता है—क्या रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध से दुनिया को एक और परमाणु त्रासदी का सामना करना पड़ेगा? क्या दुनिया इस खतरे को रोकने के लिए कुछ करेगी?