ओडिशा। जगन्नाथ मंदिर ओडिशा के पुरी शहर में स्थित है। पूरे साल भगवान की पूजा जगन्नाथ मंदिर में ही होती है लेकिन आषाढ़ माह में तीन किलोमीटर की रथ यात्रा निकाली जाती है। इस साल भगवान जगन्नाथ की 146वीं रथयात्रा है। यह वार्षिक रथ उत्सव है, जो भगवान जगन्नाथ, ब्रह्मांड के भगवान और भगवान कृष्ण के एक रूप को समर्पित है। पारंपरिक ओडिया कैलेंडर के अनुसार, यह शुक्ल पक्ष के दूसरे दिन मनाया जाता है और हिंदुओं के बीच विशेष रूप से राज्य में भक्तों के बीच इसका विशेष महत्व है। हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा बड़ी धूमधाम से निकलते है। इस यात्रा में देश-विदेश से लोग शामिल होने के लिए आते है। भक्तो के बीच इस यात्रा को लेकर अलग ही उत्साह और उल्लास देखने को मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इसकी शुरुआत 5,000 साल पहले हुई थी जब पुरी के जगन्नाथ मंदिर में भगवान कृष्ण की छवि स्थापित की गई थी। वार्षिक रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ की मंदिर से उनकी मौसी के निवास गुंडिचा तक की यात्रा की याद दिलाती है।
क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा?
भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई थी। तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े थे। इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और वांह नौ दिन ठहरे थे, तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है। नारद पुराण और ब्रह्म पुराण में भी इसका जिक्र किया गया है। मान्यताओं के मुताबिक, मौसी के घर पर भाई-बहन के साथ भगवान खूब पकवान खाते हैं और फिर वह बीमार पड़ जाते हैं। उसके बाद उनका इलाज किया जाता है और फिर स्वस्थ होने के बाद ही लोगों को दर्शन देते हैं।
जगन्नाथ मंदिर के कुछ रहस्य
किसी भी वस्तु, इंसान, पशु, पक्षी, पेड़-पौधे की परछाई बनती है। लेकिन आपको यह जानकर हैरानी होगी कि, जगन्नाथ मंदिर के शिखर की छाया दिखाई नहीं देती है। जगन्नाथ मंदिर करीब चार लाख वर्ग फीट एरिया में है और इसकी ऊंचाई 214 फीट है। लेकिन इसकी परछाई ना बनने का कारण आज भी रहस्य बना हुआ है। एक और भी रहस्य है यंहा मंदिर का झंडा हमेशा हवा की दिशा के विपरीत लहराता है। हवा का रुख जिस दिशा में होता है झंडा उसकी विपरीत दिशा में लहराता है।
रथ यात्रा में सबसे पीछे रहेता है भगवान जगन्नाथ का रथ
परम्परा के चलते सबसे पहले भगवान बलभद्र का रथ रवाना होता है। यह तकरीबन 45 फीट ऊंचा और लाल और हरे रंग से सजा होता है। इसमें 14 पहिए लगे होते हैं और इसका नाम ‘तालध्वज’ है। इसके पीछे ‘देवदलन’ नाम का करीब 44 फीट ऊंचा लाल और काले रंग का सुभद्रा का रथ होता है। इसमें 12 चक्के होते हैं। आखिरी में भगवान जगन्नाथ का रथ रहेगा। इसका नाम ‘नंदीघोष’ है, जो कि पीले रंग का लगभग 45 फीट ऊंचा होता है। इनके रथ में 16 पहिए होते हैं। इसे सजाने में लगभग 1100 मीटर कपड़ा लगता है और काफी टाइम से सजावट शुरू कर दी जाती है।
अहमदाबाद में देश की दूसरी सबसे बड़ी जगन्नाथ रथ यात्रा निकलती है
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा मंगलवार को कई राज्यों में निकाली जा रही है। ओडिशा के पुरी में निकलने वाली रथयात्रा के बाद देश की दूसरी सबसे बड़ी रथयात्रा अहमदाबाद के जमालपुर स्थित भगवान जगन्नाथ मंदिर में निकली जाती है। गृहमंत्री अमित शाह ने सुबह जमालपुर जगन्नाथ मंदिर में परिवार समेत मंगला आरती की है। अहमदाबाद में रथयात्रा सुबह 7 बजे शुरू हो गई। मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल पाहिंद विधि कर रथ यात्रा की शुरुआत की। इससे पहले सुबह 4.30 बजे भगवान को तैयार किया गया। 6.30 बजे भगवान की तीनों मूर्तियों को रथ में विराजमान किया गया है।
मणिपुर में पिछले 2 साल से नहीं निकली गई रथ यात्रा
मणिपुर में जारी जातीय हिंसा की वजह से वार्षिक रथ यात्रा के उत्सव को टाल दिया गया है। राज्य में जातीय हिंसा में अब तक 100 से अधिक लोगों की जान चली गई है और हजारों लोग घायल हो गए है। और कुछ ऐसा ही पिछले साल भी हुआ था की कोविड के चलते रथयात्रा नहीं निकली गई थी।