शायद मैं तब तीसरी क्लास मे था। सुबह सुबह आंखों को मसलते हुए अनमने ढंग से खड़ा हुआ था। माँ मुझे स्कूल भेजने से पहले मेरे बाल बना रही थी। बगल के कमरे मे बब्बा (दादाजी) टीवी पर पुराने गाने बजा रहे थे, गाना था “मेरी देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती, मेरी देश की धरती।” उस दिन स्कूल मे क्या हुआ ये बिल्कुल याद नही लेकिन ये गाना जेहन मे रह गया। समय बीता, पापा घर मे फिल्म ‘उपकार’ देख रहे थे। फिल्म मे फिर वही गाना आया। पापा फ़िल्मों के बड़े शौकीन थे इतने शौकीन की स्कूल से ज्यादा सिनेमा हॉल मे पकड़ाए जाते थे। जितनी फ़िल्में उन्होंने देखी उससे ज्यादा कहानियां भी है उनके पास, शायद मेरा भी फ़िल्मों और उनसे जुड़े किस्सों की ओर रुझान वहीं से आया। पापा ये कौन सा हीरो है? मैंने पूछा। भारत कुमार! असली नाम मनोज कुमार है। पापा ने बताया। खैर सालों साल मुझे दिलीप कुमार और मनोज कुमार मे कौन, कौन हैं ये बड़ा द्वंद रहा। वो द्वंद फिर फिल्म ‘क्रांति’ के बाद जाकर खत्म हुआ। फिल्म ‘उपकार’ मे मनोज कुमार ने एक ऐसे किसान की भूमिका निभाई थी जो पहले खेतों में हल थामता है और वक्त आने पर हाथों में बंदूक लिए सरहद पर जा डटता है। फिल्म बेहतरीन है, और भारतीय इतिहास के लिए अहम भी। खैर मेरा आज ये किस्सा सुनाने की खास वजह है। आज 2 अक्टूबर है। 2 अक्टूबर यानी गांधी जी की जयंती। लेकिन आज का दिन एक और वजह से ख़ास है।
दरअसल 2 अक्टूबर, 1904 को मुगल-सराय, उत्तर प्रदेश में एक और बच्चे का जन्म हुआ नाम था ‘लाल बहादुर’! परिवार मे सब उन्हें नन्हें कहकर बुलाते थे। काशी से पढाई करी और नाम के आगे शास्त्री भी जुड़ गया। भारत के दूसरे प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री, हालांकि अक्सर जवाहरलाल नेहरू, महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी जैसे अपने प्रमुख समकालीनों की परछाइयों से प्रभावित रहे, लेकिन उन्होंने अपने जीवन मे कि गई मेहनत,दृढ़ निश्चय और सेवा भाव के बलबूते भारत देश पर एक अमिट छाप छोड़ी। शास्त्री जी की कहानी समकालीन भारत के लिए जीवन के सबक का खजाना पेश करती है।कक्षा दूसरी की एक किताब से लेकर अब तक उन पर काफी कुछ कहा लिखा जा चुका इसीलिए मैं उन पहलुओं के बारे मे बात नही करूंगा ब्लकि एक ऐसे पहलू को टटोलने की कोशिश करूंगा जिसके बारे मे बहुत कहा सुना नही गया है। विषय है शास्त्री जी और भारतीय सिनेमा।
कितनी दिलचस्प बात है कि जहां महात्मा गांधी सिनेमा को एक बुराई समझ उससे दूर रहे, वहीं शास्त्री जी ने सिनेमा के महत्व व प्रभाव को समझा। और उसे भी देशवासियों को संदेश देने का ज़रिया बनाया। दरअसल ‘जवाहरलाल नेहरू के आकस्मिक निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री को प्रधानमंत्री बनाया गया। 1962 में भारत और चीन के युद्ध के बाद देश की आर्थिक व्यवस्था बहुत कमज़ोर हो चुकी थी। देश मे भुखमरी और अकाल के कठिन दौर से गुजर रहा था। 1965 में दशहरे के दिन दिल्ली में रामलीला मैदान पर आयोजन हुआ जिसमें शास्त्री जी ने पहली बार ‘जय जवान जय किसान’ का नारा दिया था। साथ ही शास्त्री जी ने जनता से सप्ताह में एक दिन व्रत रखने की अपील की और यही नहीं उन्होंने खुद भी व्रत रखना शुरू कर दिया था। उनका यह नारा जवान और किसान के श्रम को दर्शाने के लिये था।
लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। शास्त्री जी का मानना था कि सिर्फ नारे लगाने से कुछ नहीं होगा और जिस तरह से आम लोगों में सिनेमा की लोकप्रियता व स्वीकार्यता है, वैसे में यदि कोई फिल्म इस बारे में बात करेगी, तो लोग उसे गहराई से समझ पायेंगे। फिर क्या था शास्त्री जी ने लेखक, निर्माता, निर्देशक व अभिनेता ‘मनोज कुमार’ को बुला कर अपने नारे ‘जय जवान जय किसान’ पर फिल्म बनाने की प्रेरणा खुद दी। शास्त्री जी के नारे ‘जय जवान जय किसान’ पर आधारित फिल्म का नाम था ‘उपकार’। ‘उपकार’ ही वह पहली फिल्म थी, जिसने मनोज कुमार को पर्दे पर ‘भारत कुमार’ की छवि दी। इस फिल्म में गुलशन बावरा के लिखे गीत ‘मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती ने किसानो के लिये एक प्रेरणा का काम किया।
इसके बाद साल 1970 में मनोज कुमार की ही फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ में इंदीवर के लिखे गीत ‘दुल्हन चली…’ में भी शास्त्री जी का जिक्र ‘चाचा जिसके नेहरू-शास्त्री, डरें न दुश्मन कैसे…’ के साथ आता है।
लाल बहादुर शास्त्री को सिनेमा की श्रद्धांजलि
वैसे साल 1967 में एस सुखदेव ने फिल्म प्रभाग के लिए 27 मिनट की एक डाक्यूमेंट्री ‘होमेज टू लाल बहादुर शास्त्री’ बनायी थी। उसके बाद ‘प्रधानमंत्री’ नाम की एक टीवी डॉक्यू सीरीज़ में उन पर भी एक एपिसोड था। मशहूर फ़िल्म निर्माता शेखर कपूर द्वारा प्रस्तुत किया गया यह राजनीति पर आधारित वास्तविक कार्यक्रम भारतीय इतिहास पर प्रकाश डालता है।
एक बड़ा काम शास्त्री जी पर तब हुआ, जब दूरदर्शन पर कई साल पहले ‘धरती का लाल’ नाम से शंकर सुहेल निर्देशित एक धारावाहिक आया, जिसमें उनके पूरे जीवन को विस्तार से दिखाया गया।
साल 2015 मे “जय जवान जय किसान’ नाम की एक और फिल्म आयी जो लाल बहादुर शास्त्री के गौरवशाली जीवन के बारे में एक यात्रा है। फिल्म की शुरुआत आजादी से पहले देश में हुई विभिन्न स्वतंत्रता लड़ाइयों से होती है। एक समय जब दो समूहों (गरम दल और नरम दल) ने अलग-अलग विचारधाराओं के साथ अंग्रेजों के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा था। यह गांधी जी के नेतृत्व में था कि नरम दल ने अंग्रेजों से लोहा लिया और स्वतंत्रता की ओर शांतिपूर्ण मार्च का नेतृत्व किया। लाल बहादुर शास्त्री इस समूह के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे और भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में उनकी बहुत बड़ी भूमिका है।
फिर 2019 में विवेक अग्निहोत्री द्वारा ‘द ताशकंद फाइल्स’ फिल्म रिलीज हुयी। ताशकंद का नाम आते ही कई लोगों को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की याद आ जाती है। इसी शहर में शास्त्री ने अंतिम सांस ली थी। वे समझौते पर हस्ताक्षर करने गए थे और उसके कुछ घंटों बाद 11 जनवरी 1966 को उनकी मृत्यु हो गई थी। उनकी मृत्यु ने कई सवाल खड़े किए थे, जिनके ठोस जवाब आज तक नहीं मिले हैं। क्या दिल का दौरा पड़ने से शास्त्री की स्वाभाविक मृत्यु हुई थी या उन्हें षड्यंत्रपूर्वक मार दिया गया था? इन सवालों को फिल्म ‘द ताशकंद फाइल्स’ में उठा कर जनता के सामने रखने की कोशिश की गई है। ‘द ताशकंद फाइल्स’ सिनेमा द्वारा शास्त्री जी पर किया गया कोई भी आखिरी काम था लेकिन अभी भी शास्त्री जी पर काफी कुछ कहा सुना जाना बाकी है। लाल बहादुर शास्त्री जयंती पर आप सबको हार्दिक शुभकामनाएं।