कावेरी नदी दक्षिणी भारत में गोदावरी और कृष्णा के बाद तीसरी सबसे बड़ी नदी है ,और तमिलनाडु राज्य में ये सबसे बड़ी नदी है, जिसे तमिल में ‘ पोन्नी’ के नाम से जाना जाता है। इसका उद्गम कर्नाटक मे है पश्चिमी घाट से होते हुए अंततः बंगाल की खाड़ी में गिरती है। कावेरी नदी के जल को लेकर चार राज्यों ( कर्नाटक, पुडुचेरी, केरल, तमिलनाडु) मे विवाद 19 वीं सदी से चला आ रहा है। कावेरी जल विवाद कावेरी नदी के पानी के बंटवारे को लेकर। कुछ दिनों से इस विवाद ने फिर हवा पकड़ ली है। उसी कड़ी मे नदी के जल बंटवारे के विरोध में 2 दिन पहले कर्नाटक बंद रहा। इससे 3 दिन पहले 26 सितंबर को बेंगलुरु बंद था। दरअसल, कावेरी वाटर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने कर्नाटक सरकार से 15 दिनों के लिए तमिलनाडु को 5,000 क्यूसेक (क्यूबिक फुट प्रति सेकेंड) पानी देने को कहा है। जिसका कर्नाटक के लोग खासकर किसान विरोध कर रहे हैं। कर्नाटक रक्षणा वेदिके (KRV) के प्रदेश अध्यक्ष टीए नारायण गौड़ा ने अपने खून से पत्र लिखकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कावेरी नदी जल मुद्दे पर हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है।
अपनी मांग पर दबाव डालने के लिए, तमिलनाडु ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर यह गारंटी देने में मदद मांगी कि कर्नाटक अपने जलाशय से 24,000 क्यूबिक फीट प्रति सेकंड (क्यूसेक) पानी छोड़े। जवाब में, कर्नाटक ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष तर्क दिया कि तमिलनाडु यह पहचानने में विफल रहा है कि 2023 “सामान्य जल वर्ष” के बजाय “संकटग्रस्त जल वर्ष” है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी आधिकारिक समाधान के बावजूद जारी तनाव को उजागर करते हुए चल रहे कावेरी जल विवाद में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
आइये समझते हैं विवाद की टाइमलाइन
19 वीं सदी – पानी के उपयोग को लेकर मद्रास प्रेसीडेंसी और मैसूर के बीच समझौते हुए । समझौता यह था कि कावेरी नदी पर जलाशय जैसे किसी भी निर्माण के लिए ऊपरी तटवर्ती राज्य को निचले तटवर्ती राज्य की सहमति की आवश्यकता थी ।
1974 – कर्नाटक ने तमिलनाडु की सहमति के बिना कावेरी जल को मोड़ना शुरू कर दिया , जिससे विवाद का आधुनिक चरण शुरू हो गया।
1990 – जल-बंटवारा संघर्ष को संबोधित करने के लिए कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण (सीडब्ल्यूडीटी) की स्थापना की गई थी।
1991 – वतल नागराज की अगुआई में कन्नड़ समर्थक संगठनों ने घोषणा की कि कावेरी कन्नडिगों की जननी है, इसलिए हम किसी और को पानी नहीं दे सकते। अगले ही दिन बेंगलुरु और मैसूरु में कन्नड़ भाषी समूहों ने तमिल भाषियों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। तमिल व्यापारियों, मूवी थिएटरों और यहां तक कि तमिलनाडु लाइसेंस प्लेट वाले वाहनों को भी निशाना बनाया गया। बेंगलुरु में तमिलों की पूरी बस्ती में आग लगा दी गई। भीड़ पर काबू पाने के लिए की गई पुलिस फायरिंग में 16 लोगों की मौत हो गई। इस हिंसा ने दक्षिणी कर्नाटक के तमिल भाषी लोगों में भय पैदा कर दिया। कुछ ही हफ्तों में हजारों तमिलों को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। इस घटना से कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच दुश्मनी जैसी स्थिति पैदा हो गई।
2000 – जुलाई 2000 की बात है। कन्नड़ फिल्मों के स्टार और फिल्मों के पहले महानायक डॉ. राजकुमार तिरुपति में भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन करने पहुंचे थे। वहाँ से लौटते समय वीरप्पन ने उन्हें किडनैप कर लिया। वीरप्पन पर उस समय 2000 से अधिक हाथियों और 184 लोगों को मारने का आरोप था। उसी साल 15 नवंबर को सुपरस्टार राजकुमार को रिहा कर दिया गया। वीरप्पन ने इस दौरान राजकुमार को छोड़ने के लिए कर्नाटक सरकार के सामने दो प्रमुख डिमांड रखी थी। Negotiation मे वीरप्पन ने कर्नाटक सरकार से राज्य में तमिल को एक एडिशनल भाषा के रूप में अपनाने और उन तमिल परिवारों को अच्छी-खासी क्षतिपूर्ति देने की मांग की, जिन्होंने कावेरी जल विवाद पर 1991 के दंगों में संपत्ति और अपने लोगों को खो दिया था।
2007 – सीडब्ल्यूडीटी कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और पुडुचेरी के बीच जल आवंटन को निर्दिष्ट करते हुए अपना अंतिम पुरस्कार जारी करता है। एक सामान्य वर्ष में 740 टीएमसी की कुल उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए। सीडब्ल्यूडीटी ने चार राज्यों के बीच पानी का आवंटन इस प्रकार किया: तमिलनाडु – लगभग 404 टीएमसी, कर्नाटक – लगभग 284 टीएमसी, केरल – 30 टीएमसी, और पुडुचेरी – 7 टीएमसी
2012 – कर्नाटक ने सूखे की वजह से ट्रिब्यूनल के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। इस दौरान बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन हुए। कई जाने गई।
2018 – सुप्रीम कोर्ट ने सीडब्ल्यूडीटी के फैसले को बरकरार रखा , कावेरी को राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया और कावेरी जल प्रबंधन योजना की स्थापना का आदेश दिया।
जून 2018 में, केंद्र सरकार ने ‘कावेरी जल प्रबंधन योजना’ की स्थापना की, जिसमें ‘कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण’ और ‘कावेरी जल विनियमन समिति ‘ शामिल हैं।
फ़िलहाल कैसे हो रहा है जल का आवंटन
कावेरी नदी में जल बंटवारा कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच एक मासिक कार्यक्रम द्वारा नियंत्रित होता है । एक सामान्य वर्ष में, कर्नाटक को जून से मई तक तमिलनाडु को लगभग 177 टीएमसी पानी छोड़ना पड़ता है, जिसमें जून से सितंबर तक मानसून के महीनों के दौरान लगभग 123 टीएमसी पानी शामिल होता है। दक्षिण पश्चिम मानसून के मौसम के दौरान अक्सर विवाद उत्पन्न होते हैं जब वर्षा अपेक्षा से कम होती है।
लेकिन विवाद बढ़ा क्यूंकि, कर्नाटक के जलाशय से 24,000 क्यूसेक पानी की रिहाई सुनिश्चित करने के लिए तमिलनाडु सुप्रीम कोर्ट गया । कर्नाटक ने पहले पानी छोड़ने की सहमति वाली मात्रा से इनकार कर दिया था। तमिलनाडु 15 दिनों के लिए 10,000 क्यूसेक पानी छोड़ने की वकालत करता है। कर्नाटक ने उसी 15 दिन की अवधि के लिए 8,000 क्यूसेक पानी छोड़ने का सुझाव दिया है।
कर्नाटक कोडागु सहित कावेरी जलग्रहण क्षेत्र में कम वर्षा के कारण कम प्रवाह का हवाला देता है। यह जून से अगस्त तक कोडागु में 44% वर्षा की कमी को उजागर करता है। यह तमिलनाडु के संकट-साझाकरण फार्मूले की मांग को खारिज करता है। तमिलनाडु के किसान मेट्टूर जलाशय (20 टीएमसी, दस दिनों तक चलने वाले) में कम पानी के भंडारण के कारण कर्नाटक की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहे हैं। इससे क्षेत्र में कृषि फसलों और पानी की आवश्यकताओं पर असर पड़ सकता है।
जल विवाद मे नये कानून की आवश्यकता
तमिलनाडु का कहना था कि अंग्रेजों के दौर में हुए समझौते का कर्नाटक को पालन करना चाहिए। उसे पहले जितना पानी मिलता है, मिलते रहना चाहिए। तमिलनाडु को कावेरी के पानी की ज्यादा जरूरत है। इस बीच यह विवाद चलता रहा। लेकिन चूँकि भारत पानी की बढ़ती कमी और नदियों की घटती मात्रा का सामना कर रहा है, इसलिए न्यायाधिकरणों को अपने निर्णयों को लागू करने की शक्ति देने के लिए तत्काल कानून की आवश्यकता है, जिससे अंतर-राज्य नदी जल विवादों का त्वरित और अधिक प्रभावी समाधान हो सके।