साल 1998 मे आज ही की तारीख को पूरे विश्व के संगीत को एक अद्भुत इंसान मिला, जो कव्वाली के माध्यम से शांति और प्रेम का संदेश फैलाने वाले सबसे प्रतिभाशाली कलाकारों में से एक था। कलाकार का नाम है, उस्ताद नुसरत फतेह अली खान। अपनी कलात्मकता के अलावा, उन्होंने हिंदू, सिख और मुस्लिम समुदायों के बीच की बाधाओं को तोड़ दिया। और यह सब उन्होंने मधुर व्यवहार और सरल विनम्रता धारण करते हुए किया। नुसरत फ़तेह अली खान को पाकिस्तान और भारत के अलावा पूरे विश्व मे भी ख्याति मिली, और उन्हें शहंशाह-ए-कव्वाली या “राजाओं के राजा” के रूप में जाना जाता था। उनकी मृत्यु के दशकों बाद, सोशल मीडिया अभी भी नुसरत के संगीत को पसंद करता है।
लेकिन इस आसाधारण प्रतिभा को असाधारण कहलाने के पीछे जितने किस्से उनमे सबसे उपर एक किस्सा जो आपको हैरान कर देगा, लेकिन वो जानने से पहले शुरू से शुरू करते हैं।
फ़तेह अली खान का जन्म 1901 में ब्रिटिश कब्जे वाले भारत में उस समय हुआ था जब साम्राज्य चीन और दक्षिण अफ्रीका में शामिल था। इस चुनौतीपूर्ण समय में भी, फतेह अली खान को उनके पिता (मौला बख्श खान) ने कव्वाली और शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित किया। वह जल्द ही सितार और पश्चिमी वायलिन बजाने वाले एक कुशल गायक और बहुमुखी वाद्यवादक बन गए। दावा किया जाता है कि अपने समय में फतेह अली खान काफी मशहूर थे।
नुसरत के पिता, उस्ताद फतेह अली खान और उनके दो चाचा, उस्ताद मुबारिक अली खान और उस्ताद सलामत अली खान, प्रसिद्ध कव्वाल थे, जो शास्त्रीय रूप में गाते थे। नुसरत ने 10 साल की उम्र से पहले ही संगीत के प्रति रुझान और गायन के लिए एक विशेष योग्यता प्रदर्शित करना शुरू कर दिया था, फ़तेह अली खान ऐसे व्यवसायों की सामाजिक स्थिति के कारण चाहते थे कि उनका बेटा डॉक्टर या इंजीनियर बने। इस इच्छा के बावजूद कि उनके बेटों पर कव्वाल के तनावपूर्ण जीवन का बोझ न पड़े, फिर भी नुसरत और उनके भाइयों को उनके पिता द्वारा प्रशिक्षित किया गया था।
लेकिन 1964 मे फतेह अली की मृत्यु हो गई। फतेह खान को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एक विशेष कार्यक्रम रखा गया और उस कार्यक्रम मे जो हुआ उसने सभी को हैरान कर दिया। 15 साल के नुसरत का ये पहला सार्वजनिक कार्यक्रम था। नुसरत ने वहाँ अपनी जो गायन की जो क्षमता साबित की वो अद्भुत थी। पिता के अंतिम संस्कार में शानदार प्रदर्शन ने दर्शकों और वरिष्ठ संगीतकारों को आश्चर्यचकित कर दिया जो उन्होंने अभी देखा था। यही वह क्षण था जब दूसरों को यह विश्वास होने लगा कि नुसरत अपने पैतृक संगीत वंश को आगे बढ़ा सकते हैं।
इस प्रदर्शन के बाद उन्होंने अपने चाचाओं के साथ गाना जारी रखा, और विश्व मे एक बड़ा नाम बन गये। उन्होंने 40 से अधिक देशों में प्रदर्शन किया। उन्होंने कई हॉलीवुड और हिंदी फ़िल्मों मे गीत गाये है। 2016 में एलए वीकली द्वारा खान साहब को सर्वकालिक चौथा सबसे महान गायक बताया गया था। नुसरत फ़तेह अली खान के पास एक बेहतरीन गायन आवाज़ थी, जिसमें उनकी आवाज़ पर दबाव डाले बिना लंबे समय तक प्रदर्शन करने का अतिरिक्त गुण था।
अगस्त 1997 में, खान ने लीवर और किडनी की समस्याओं के इलाज के लिए लंदन की यात्रा की, उन्हें हवाई अड्डे से लंदन के क्रॉमवेल अस्पताल ले जाया गया। 16 अगस्त को 48 वर्ष की आयु में क्रॉमवेल अस्पताल में अचानक हृदय गति रुकने से उनकी मृत्यु हो गई।
एआर रहमान के साथ उनकी रिकॉर्डिंग उनके असामयिक निधन से पहले उनकी अंतिम रिकॉर्डिंग थी। नुसरत के निधन के 3 साल बाद (2000 में) बॉलीवुड में शिल्पा शेट्टी और अक्षय कुमार की फिल्म धड़कन रिलीज हुई। फिल्म का सबसे प्रसिद्ध ट्रैक दूल्हे का सेहरा था, जिसे नुसरत ने गाया था और फिल्म में वरिष्ठ अभिनेता कादर खान ने अभिनय किया था।
नुसरत साहब का अधिकतर काम शायद समय के अखिर तक भी रहेगा। नुसरत साहब ने अपना जीवन बड़े सादे लेकिन अद्भुत तरीके से जीया और वह अपनी पारिवारिक विरासत को प्रदर्शित करने के लिए दुनिया भर में कव्वाली संगीत फैलाने में सफल रहे, जो हमेशा जीवित रहेगी। खान साहब की संगीत विरासत को अब उनके भतीजे राहत फ़तेह अली खान और रिज़वान-मुअज़्ज़म आगे बढ़ा रहे हैं।