जयपुर। राजस्थान में करणपुर विधानसभा के गांव में रहने वाले मजदूर तीतर सिंह भी चुनाव लड़ रहे हैं। पंच, सरपंच से लेकर लोकसभा तक उन्होंने हर चुनाव लड़ा है, लेकिन ये अलग बात है कि जिन हकों की लड़ाई के लिए वह सत्तर के दशक में चुनाव मैदान में उतरे थे, वह उन्हें आज तक नहीं मिले। दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले तीतर सिंह लगभग बीस चुनाव लड़ चुके हैं, लेकिन हर बार एकतरफा हारते रहे हैं। हार तय है तो चुनाव क्यों लड़ते हैं? पूछने पर तीतर सिंह ने बुलंद आवाज में कहा- क्यों न लड़ें। सरकार जमीन दे, सहूलियतें दें। ‘हक दी लड़ाई है ये चुनाव।’ यह बुजुर्ग एक बार फिर उसी जज्बे, जोश और मिशन के साथ विधानसभा चुनाव के लिए तैयार हैं। चुनाव लडऩा तीतर सिंह के लिए लोकप्रियता हासिल करने या रिकॉर्ड बनाने का जरिया नहीं है, बल्कि अपने हक को हासिल करने का हथियार है, जिसकी धार समय और उम्र बीतने के बावजूद कुंद नहीं पड़ी है। राजस्थान के करणपुर विधानसभा क्षेत्र के एक छोटे से गांव ’25 एफ’ में रहने वाले तीतर सिंह पर चुनाव लडऩे का जुनून सत्तर के दशक में तब सवार हुआ, जब वह जवान थे और उन जैसे अनेक लोग नहरी इलाकों में जमीन आवंटन से वंचित रह गए थे। तीतर सिंह ने बताया कि वह अब तक लोकसभा के दस, विधानसभा के दस, जिला परिषद डायरेक्टर के चार, सरपंच के चार व वार्ड मेंबर के चार चुनाव लड़ चुके हैं।
पोतों तक की शादी हो चुकी
हलफनामे के मुताबिक इस समय उनकी उम्र 78 साल है। तीतर सिंह ने बताया कि उनकी तीन बेटियां व दो बेटे हैं। पोतों तक की शादी हो चुकी है। उनके पास जमा पूंजी के नाम पर 2500 रुपए की नकदी है। बाकी न कोई जमीन, न जायदाद, न गाड़ी-घोड़े। उन्होंने बताया कि इस उम्र में भी वह आम दिनों में सरकार की रोजगार गारंटी योजना ‘मनरेगा’ में दिहाड़ी मजदूरी करते हैं या जमींदारों के यहां काश्तकारी, लेकिन चुनाव आते ही उनकी भूमिका बदल जाती है। वह उम्मीदवार होते हैं, प्रचार करते हैं, वोट मांगते हैं और बदलाव का वादा करते हैं। पिछले कई दशक से ऐसा ही हो रहा है। निर्वाचन विभाग के अनुसार तीतर सिंह को 2008 के विधानसभा चुनाव में 938, 2013 के विधानसभा चुनाव में 427, 2018 के विधानसभा चुनाव में 653 वोट मिले। उनका गांव श्रीगंगानगर जिले की करणपुर तहसील में है, जहां से वह निर्दलीय उम्मीदवार हैं। टूटी-फूटी हिंदी और मिली-जुली पंजाबी बोलने वाले तीतर सिंह ने बताया कि उनको व पत्नी गुलाब कौर को सरकार से वृद्धावस्था पेंशन मिलती है, जिससे उनका गुजारा हो जाता है। बाकी चुनाव में वह कोई खर्च करते नहीं हैं। चुनाव लडऩे को लेकर कभी किसी प्रकार के सामाजिक विरोध का सामना नहीं करना पड़ा, इस सवाल पर तीतर सिंह ने कहा- ‘एहो जई ते कोई गल्ल नई। लोक्की उल्टे माड़ी भोत मदद जरूर कर देंदे सी।’ (ऐसी तो कोई बात नहीं। लोग उलटे थोड़ी-बहुत मदद ही कर देते हैं।
पंचरवाला लड़ रहा मुख्यमंत्री के सामने चुनाव
हैदराबाद। तेलंगाना विधानसभा चुनाव में ‘इलेक्शन-किंग’ ने भी पर्चा भर दिया है। पदम्मराजन ने गजवेल निर्वाचन क्षेत्र में निर्दलीय अपना नामांकन दाखिल किया है। यहीं से मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव भी विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं। ‘इलेक्शन-किंग’ के नाम से मशहूर पदम्मराजन ने कहा कि तमिलनाडु, कर्नाटक, यूपी और दिल्ली जैसे राज्यों में स्थानीय निकायों से लेकर राष्ट्रपति तक के चुनावों में यह उनका 237वां नामांकन है। टायर मरम्मत की दुकान चलाने वाले पदम्मराजन ने कहा कि उन्होंने 1988 के विधानसभा चुनाव में तमिलनाडु के मेट्टूर निर्वाचन क्षेत्र में नामांकन दाखिल करना शुरू किया। तब से उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्रियों अटल विहारी वाजपेयी और पीवी नरसिंहराव के खिलाफ भी चुनाव लड़ा है। खुद को होम्योपैथिक डॉक्टर बताने वाले पदम्मराजन ने कहा कि उन्होंने चुनाव लडऩे के अपने जुनून से कई रिकॉर्ड बनाए और अपने जुनून के लिए उन्होंने लगभग एक करोड़ रुपए खर्च किए। उन्होंने 2019 के आम चुनाव में केरल के वायनाड से कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ भी चुनाव लड़ा था। 2011 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में मेट्टूर निर्वाचन क्षेत्र में उन्हें 6273 वोट मिले थे, जबकि कुछ पंचायत चुनावों में उन्हें शून्य वोट मिले थे। चार नवंबर को दायर पदम्मराजन के हलफनामे के मुताबिक न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार के किसी सदस्य ने कभी आयकर रिटर्न दाखिल किया और 1 लाख10 हजार रुपए की चल संपत्ति घोषित की। इसमें एक मोपेड और एक लाख रुपए की वार्षिक आय शामिल है। हलफनामे में कहा गया है कि उन्होंने आठवीं तक पढ़ाई की है और अन्नामल्ली ओपन यूनिवर्सिटी से एमए (इतिहास) कर रहे हैं।