नेपाल में समय-समय पर राजशाही की वापसी और हिंदू राष्ट्र की मांग उठती रहती है। एक बार फिर यह मांग उठ रही है। राजशाही की मांग कर रहे सैकड़ों प्रदर्शनकारी काठमांडू की सड़कों पर उतरे है। प्रदर्शनकारी प्रतिबंधित क्षेत्र में घुसे और बैरिकेड्स भी तोड़ दिए। इस दौरान उनकी पुलिस से झड़प हो गई।
प्रदर्शनकारियों को पीछे हटाने के लिए पुलिस ने लाठी, आसूं गैस के गोले और वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया। किसी भी प्रदर्शनकारी को गंभीर चोट नहीं आई है। ज्ञानेंद्र के प्रमुख समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी या नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी की ओर से प्रदर्शन का आह्वान किया गया था। इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने, ‘राजशाही वापस लाओ, गणतंत्र को खत्म करो’ के नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों की भीड़ ने कहा कि, ‘हम अपने राजा और देश को जान से भी ज्यादा प्यार करते हैं।’
हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग
प्रदर्शनकारियों ने नेपाल को एक बार फिर हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग की है। 2007 के अंतरिम संविधान में नेपाल को एक धर्म निरपेक्ष राज्य घोषित किया गया था। 2006 में कई हफ्तों तक सड़क पर विरोध प्रदर्शन के कारण ज्ञानेंद्र को अपना सत्तावादी शासन छोड़कर सत्ता वापस संसद को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ा था। दो साल बाद संसद ने पुरानी राजशाही को खत्म करने के लिए मतदान किया था। तब से ज्ञानेंद्र बिना किसी शक्ति या सरकारी संरक्षण के एक सामान्य नागरिक के रूप में रह रहे हैं।
राजा की वापसी क्यों चाहते हैं लोग?
पूर्व राजा ज्ञानेंद्र के पास अभी भी कुछ समर्थन है, लेकिन सत्ता में वापसी की संभावना कम है। राजशाही के समर्थक देश के प्रमुख राजनीतिक दलों पर भ्रष्टाचार और विफल शासन का आरोप लगाते रहे हैं। उनका कहना है कि, लोग राजनेताओं से खुश नहीं हैं। राजशाही खत्म होने के बाद नेपाल में 13 सरकारें बन चुकी हैं। यह सरकारें भारत और चीन के बीच फंसी हुई हैं। कुछ सप्ताह पहले ही नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड ने नेपाली कांग्रेस के साथ गठबंधन तोड़ लिया था। उन्होंने केपी शर्मा ओली के नेतृत्व वाले कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (UML) के साथ मिलकर नई सरकार बनाई, जिसका समर्थन चीन कर रहा है।
2006 में खत्म हुई थी राजशाही
2006 में, नेपाल ने सदियों पुरानी संवैधानिक राजशाही को समाप्त कर दिया था। इसके बाद राजा ज्ञानेंद्र ने सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया और आपातकाल लगाकर सभी नेताओं को नज़रबंद कर दिया था। उस दौरान आंदोलन भी चला था, जिसे “पीपुल्स मूवमेंट” भी कहा जाता है। सरकार द्वारा प्रदर्शनकारियों के खिलाफ की गई कार्यवाही में दर्जनों लोग मारे गए थे। कई हफ्तों के हिंसक विरोध प्रदर्शन और बढ़ते अंतरराष्ट्रीय दबाव के बाद, ज्ञानेंद्र ने हार मान ली थी। नए लोकतंत्र की शुरुआत को लोकतंत्र के रूप में रेखांकित किया गया है। राजशाही खत्म होने के 18 साल के भीतर ही राइट विनर फिर से सड़क पर उतरकर इसकी मांग कर रहे हैं।