भारत ने कल यानी 13 मई को ईरान के साथ मिलकर एक ऐतिहासिक समझौता किया है। उस समझौते का नाम चाबहार बंदरगाह समझौता है। भारत ने ईरान के साथ मिलकर चाबहार बंदरगाह के संचालन का समझौता किया है। यह समझौता अगले 10 साल के लिए रहेगा। इस समझौते से भारत, पाकिस्तान और चीन की दखलंदाजी के बिना या सरल शब्दों में कहे तो उन्हें दरकिनार करके, अपनी भू-राजनीति का विस्तार कर सकेगा। इस समझौते से भारत मध्य-पूर्व एशिया से जुड़ पाएगा।
लेकिन इस समझौते से अमेरिका को क्या दिक्कत है और वह ईरान से संबंध जोड़ने के बाद भारत को चेतावनी क्यों जारी कर रहा है। आइये जानते है:
सबसे पहले आपको बता दे है कि, इस समझौते और 11 मई को फिलिस्तीन के पक्ष में दिए हुए भारत के वोट का क्या कनेक्शन है। आपको बता दे कि, इंदिरा गांधी के समय से ही भारत ने आधिकारिक तौर पर इजरायल-फिलिस्तीनी संघर्ष के लिए दो-राज्य समाधान का समर्थन किया है। इसका मतलब है कि, भारत मानता है कि शांतिपूर्ण समाधान में इज़राइल के साथ-साथ फ़िलिस्तीन भी स्वतंत्र रूप से शामिल है। वहीं ईरान के साथ चाबहार बंदरगाह विकास समझौते की शुरुआत अटल बिहारी वाजपेयी के समय में हुई थी।
आज के समय की बात करे तो, 11 मई को भारत ने फिलिस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में शामिल करने के हित में वोट किया था। इस वोट को भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने दो-राज्य समाधान का समर्थन का नाम दिया है। फिलिस्तीन के हित में वोट करने के दो दिन बाद ही, ईरान और भारत के बीच चाबहार बंदरगाह समझौता तय हो गया है। यानी आप यह कह सकते है कि, भारत ने सोच समझकर 11 मई को अपना वोट डाला था।
अमेरिका ने क्यों दी चेतावनी ?
अमेरिका ने भारत को प्रतिबंधों का पालन नहीं करने के लिए चेतावनी दी है। अमेरिका ने ईरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम के साथ कई अन्य कारणों के लिए प्रतिबंध लगाए हैं। चाबहार बंदरगाह सौदे से अमेरिका को यह चिंता हो गई है कि, इससे अप्रत्यक्ष रूप से ईरान की अर्थव्यवस्था को लाभ हो सकता है, जिससे अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन होगा।
क्या है अमेरिका की चेतावनी में भारत का जवाब ?
भारत ने इस चेतावनी पर तर्क देते हुआ कहा है कि, चाबहार बंदरगाह से सिर्फ अफगानिस्तान को क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और मानवीय सहायता मिलेगी। साथ ही भारत ने अमेरिका को यह भी आश्वासन दिया है कि, वह सभी प्रतिबंधों का पालन करेगा।