हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री मे कई बार कुछ ऐसी फिल्मों की निर्माण हुआ है, जिन्होंने इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करवा लिया है। इसी में से एक फिल्म है मंथन जो इन दिनों कांस फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जा रही है। ये एकमात्र भारतीय मूवी है जो इस साल कान्स के क्लासिक सेक्शन में दिखाने के लिए चुनी गई है। स्क्रीनिंग के बाद दर्शकों ने फिल्म को स्टैंडिंग ओवेशन दिया है। फिल्म में लीजेंड्री एक्टर नसीरुद्दीन शाह अहम किरदार में थे। स्क्रीनिंग के बाद उन्होंने कहा है कि ये भारतीय सिनेमा के लिए एक गौरव का पल है। जब मंथन की बात होती है तो याद आते लाखों किसान जिन्होंने इस फिल्म को बनवाने मे सहयोग किया था। दरअसल फ़िल्मों को बनाने मे फाइनेंसर और प्रोड्यूसर्स की भी बड़ी भूमिका होती है। वहीं हैं जो फ़िल्मों मे पैसे लगाते हैं। लेकिन मंथन के साथ ऐसा नहीं था। इस फिल्म को बनाने के लिए गुजरात के मिल्क प्रोड्यूसर कम्युनिटी के 5 लाख किसानों ने 2-2 रुपए दिए, जब जाकर यह फिल्म बनी। इस फिल्म की रिलीज के बाद ये किसान ट्रकों में भरकर फिल्म देखने पहुंचे थे।
श्वेत क्रांति के संघर्ष की झलक दिखती मंथन !
श्याम बेनेगल की मंथन फिल्म देश की मशहूर दुग्ध क्रांति पर बेस्ड है, जो देश में कभी वर्गीज कुरियन ने शुरू की थी इसमे श्वेत क्रांति के संघर्ष की झलक भी दिखती है। वर्गीस कुरियन ने 33 साल की उम्र में गुजरात के खेड़ा जिले के एक गांव में पहली बार दुग्ध उत्पादन की कॉर्पोरेटिव सोसाइटी बनाई थी, जो बाद में आनंद में अमूल कॉर्पोरेटिव सोसाइटी की बुनियाद बनी।
1976 में इमर्जेंसी के दौरान रिलीज हुई ‘मंथन’ में किसानों और पशुपालकों के संघर्ष को बड़े ही मार्मिक अंदाज में फिल्मी पर्दे पर उतारा गया था।
फिल्म मे कई बेहद शानदार ऐक्टर्स ने किया था काम
इस फिल्म ने साल 1977 में बेस्ट फिल्म और बेस्ट स्क्रीनप्ले के लिए नेशनल अवॉर्ड भी जीता था। इसमें कई सारे दिग्गज सितारों ने काम किया था। स्मिता पाटिल ने गांव की महिलाओं को रिप्रेजेंट किया था। स्मिता के अलावा इसमें नसीरुद्दीन शाह, गिरीश कर्नाड, कुलभूषण खरबंदा, मोहन अगासे, अनंद नाग और अमरीश पुरी भी हैं।
स्क्रीनिंग के बाद नसीरुद्दीन शाह ने फिल्म मंथन की टीम को याद करते हुए कहा है कि उनमें से कई लोग अब नहीं रहे, जिन्होंने मिल-जुलकर इस फिल्म को इस मुकाम पर पहुंचाया है। फिल्म के मुख्य कलाकारों में गिरीश कर्नाड, स्मिता पाटिल, अमरीश पुरी अब इस दुनिया में नहीं हैं। फिल्म की पटकथा लिखने वाले विजय तेंदुलकर और संवाद लिखने वाले कैफी आजमी भी इस दुनिया में अब नहीं हैं। इस अवसर पर बीमारी की वजह से श्याम बेनेगल नहीं आ सके।
अब, लगभग आधी सदी बाद, 77वें कान फिल्म महोत्सव में फिल्म हेरिटेज फाउंडेशन द्वारा रीजेनरेटेड प्रिंट के माध्यम से ये फिल्म एक बार फिर से रिलीज़ की जा रही है। जिसे देख कर लोग एक तरह से फिल्म मेकर्स और कलाकारों का रिण चुका सकते हैं।