15 अगस्त 1947 को जब पूरा भारत स्वतंत्रता के उत्सव में शामिल था तब एक ऐसा राज्य था जो जिसकी आबोहवा मे तब भी गुलामी की दुर्गंध घुली हुई थी।
आज का दिन बेहद खास है, क्योंकि हम उस दिन को याद कर रहे हैं, जब गोवा की ज़मीन ने 450 साल की गुलामी की जंजीरों को तोड़ दिया था। 19 दिसंबर 1961 ये वो दिन है जब भारतीय सशस्त्र बलों ने गोवा को पुर्तगाली शासन से मुक्त कराया था।
दरअसल, पुर्तगाली 1510 में गोवा आए थे। वास्को डी गामा के समुद्री मार्ग की खोज के बाद, गोवा उनके लिए एक व्यापारिक केंद्र से ज़्यादा बन गया। उन्होंने स्थानीय लोगों की ज़मीनें छीन लीं, उनकी परंपराओं और संस्कृति को दबाने की कोशिश की। हिंदू मंदिर तोड़े गए, चर्च बनाए गए, और जबरन धर्मांतरण का दौर शुरू हुआ। पुर्तगाली शासन के दौरान, गोवा के लोगों पर टैक्स की मार, सांस्कृतिक असहिष्णुता और सामाजिक अन्याय का भारी बोझ पड़ा।
16वीं सदी का अंत आते – आते भारतीय इतिहास में एक और बड़ी घटना हुई। मछलीपट्टनम के समुद्री रास्ते से विदेशियों के बड़े बड़े जहाज है। कहने को तो ये व्यापारी थे कंपनी का नाम था ईस्ट इंडिया कंपनी। 1600 के दशक के दौर में साम्राज्यवाद और व्यापार की होड़ में स्पेन और पुर्तगाल का जलवा था। ब्रिटेन और फ्रांस इसमें देर से उतरे थे लेकिन तेजी से दबदबा बढ़ा रहे थे। पुर्तगाल के नाविक वास्कोडिगामा के भारत आने के बाद यूरोप में बड़ा बदलाव आया। वास्कोडिगामा अपने साथ जहाजों में भरकर भारतीय मसाले ले गया था। इसके बाद पूरे यूरोप में भारतीय मसालों की महक पसर गई। भारत की संपन्नता के चर्चों ने भी यूरोपीय साम्राज्यवादी देशों को यहां दबदबा बनाने के लिए प्रेरित किया। ब्रिटेन के लिए काम ईस्ट इंडिया कंपनी ने किया।
इस कंपनी को पहली सफलता हाथ लगी थी पुर्तगाल का एक जहाज लूटने से, जो भारत से मसाले भरकर ले जा रहा था. ईस्ट इंडिया कंपनी को उस लूट में 900 टन मसाले मिले जिसे बेच कर उन्हें उम्मीद से ज्यादा मुनाफा हुआ। फिर क्या था कंपनी ने कलकत्ता से पूरे भारत में बिजनेस की शुरुआत की और बाद में चेन्नई-मुंबई भी उसके प्रमुख व्यापारिक केंद्र बने। 1764 ई. की बक्सर की लड़ाई कंपनी के लिए निर्णायक साबित हुई। इसके बाद कंपनी ने धीरे-धीरे पूरे भारत पर अधिकार स्थापित कर लिया। उन्होंने पूरे भारत को अपना गुलाम बना लिया लेकिन ‘गोवा’ मे तब भी पुर्तगालीयों का राज था।
वैसे गोवा का स्वतंत्रता संग्राम 16वीं सदी से शुरू हुआ था। जैसे-जैसे समय बदला, गोवावासियों ने अपनी अस्मिता और सम्मान के लिए कई संघर्ष किए। 1787 में गोवा के कैथोलिक पुजारियों ने अपनी असंतोष को आवाज़ दी, लेकिन पुर्तगालियों के खिलाफ उनका विद्रोह कुचला गया। इसके बाद 1835 में ‘बर्नाडो पेरेस दा सिल्वा’ ने गोवा के सर्वोच्च प्रशासनिक पद पर कब्जा किया, लेकिन उसे यूरोपीय निवासियों ने सत्ता से हटा दिया। कई संघर्षों और विद्रोहों के बावजूद गोवा के लोग हार मानने वाले नहीं थे। गोवा के संघर्ष को सही दिशा देने वाले एक और महत्वपूर्ण व्यक्ति थे राम मनोहर लोहिया, जिनकी आवाज़ में गहरी सच्चाई थी। लोहिया ने 1946 में गोवा की स्वतंत्रता के लिए आंदोलन शुरू किया, जिसमें गोवा के कई युवा भागीदार बने। यह संघर्ष धीरे-धीरे और भी प्रबल हो गया।
1947 मे देश की आज़ादी के बाद भी पुर्तगाल गोवा मे अपने प्रभुत्व को छोड़ने का नाम नहीं ले रहा था। हालांकि, भारत सरकार ने कई बार कूटनीतिक प्रयास किए, लेकिन सब विफल हो गए। फिर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने निर्णायक कदम उठाने का फैसला किया…मिलिट्री इंटरवेंशन।
18 दिसंबर 1961, एक ऐसी तारीख जिसने भारतीय इतिहास को बदलकर रख दिया। भारतीय सशस्त्र बलों के लिए यह मिशन एक तरह से निर्णायक था। यह 36 घंटे का ऑपरेशन था, जिसे ‘ऑपरेशन विजय’ नाम दिया गया। भारतीय नौसेना, वायु सेना और सेना ने मिलकर गोवा में पुर्तगाली शासन के खिलाफ आक्रमण किया। जब भारतीय सैनिकों ने गोवा की भूमि पर कदम रखा, तो पुर्तगाली सैनिकों का प्रतिरोध बहुत ही कमजोर था। केवल कुछ ही घंटे बाद, 19 दिसंबर को पुर्तगाली सैनिकों ने बिना किसी शर्त के आत्मसमर्पण कर दिया।
गोवा अब स्वतंत्र था, लेकिन यह मुक्ति सिर्फ सैनिकों की जीत नहीं थी, बल्कि उस माटी की आत्मा की जीत थी, जिस पर ढेरों सालों तक अत्याचार हुआ था। गोवा ने 450 साल तक पुर्तगाली शासन सहा था, और उस दिन उसकी स्वतंत्रता की लहर ने एक नए युग की शुरुआत की थी।
अब हम बात करते हैं उस महान नेता की, जिनकी धैर्य और संघर्ष ने गोवा के स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी। वह थे मोहान रानड़े। एक ऐसे सेनानी, जिन्होंने पुर्तगालियों के खिलाफ असंख्य कष्ट उठाए। रानड़े ने अपनी जान की परवाह किए बिना, गोवा के लिए संघर्ष किया। उन्होंने 1950 में गोवा में घुसकर ‘आज़ाद गोमांतक दल’ नामक संगठन की स्थापना की और पुर्तगालियों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की शुरुआत की। रानड़े को 1955 में गिरफ्तार कर लिया गया और फिर पुर्तगाली जेल में 14 सालों तक बर्बर यातनाएं दी गईं। हालांकि, गोवा की मुक्ति के बाद उन्हें 1969 में रिहा किया गया।
इस संघर्ष में सिर्फ पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं भी चुपके-चुपके अपनी भूमिका निभा रही थीं। वे सार्वजनिक संघर्षों में नहीं दिखतीं, लेकिन उनके साहस और समर्थन ने इस संघर्ष को अजेय बना दिया। उनके द्वारा दिये गए प्रोत्साहन और बलिदान को इतिहास में शायद ही कभी दर्ज किया गया हो, लेकिन उनका योगदान असीम था।
19 दिसंबर 1961 को गोवा की मुक्ति के बाद, भारतीय सरकार ने इस भूमि को भारतीय गणराज्य में शामिल कर लिया। उस दिन, गोवा में भारतीय सेना के ध्वज के साथ “जय हिंद” का नारा गूंज रहा था। आज जब हम गोवा के इस ऐतिहासिक दिन को याद करते हैं, तो हम उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को नमन करते हैं, जिनके बलिदानों और संघर्षों के कारण गोवा आज स्वतंत्र और समृद्ध है।