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Religion

अयोध्या के सूर्यवंशी क्षत्रिय वंश में हुआ था श्रीराम जी का जन्म!

17 अप्रैल को मनाया जाएगा रामनवमी का पर्व।

Last updated: अप्रैल 16, 2024 6:10 अपराह्न
By Divya 1 वर्ष पहले
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3 Min Read
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17 अप्रैल यानि कल रामनवमी का पर्व है। हिन्दू पंचांग के अनुसार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन रामनवमी का त्योहार मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार इसी दिन भगवान श्रीराम का जन्म हुआ था, इसलिए इस दिन को रामजन्मोत्सव के रूप में भी मनाते है। हर वर्ष इसी तिथि पर पूरे देश में राम नवमी बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाई जाती है। इस साल राम नवमी का पर्व कुछ खास इसलिए भी है, क्योंकि सदियों से इंतज़ार कर रहे अयोध्या में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। इस साल अयोध्या में भी रामलला की विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी।

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र मास की नवमी तिथि होने के कारण रामनवमी का पर्व 17 अप्रैल को मनाया जाएगा। साथ ही इस दिन यानि 17 अप्रैल को पूरे दिन रवि योग भी रहने वाला है।

राम नवमी का त्योहार चैत्र नवरात्रि के आखरी दिन होता है। इस दिन नौ दिनों तक मां दुर्गा की पूजा-उपासना करने के बाद उनकी विदाई की जाती है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार राम नवमी पर बहुत ही दुर्लभ संयोग बन रहा है। ऐसा माना जा रहा है कि, जो संयोग त्रेता युग में प्रभु राम के जन्म के समय बना था वैसा ही संयोग इस बार भी बन रहा है।

क्या है राम नवमी का इतिहास ?

अगर राम नवमी के इतिहास की बात करे तो, मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म त्रेता युग के चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन अयोध्या के सूर्यवंशी क्षत्रिय वंश में हुआ था। शास्त्रों के अनुसार राजा दशरथ की 3 पत्नियां थीं और तीनों की ही कोई संतान नहीं थी। संतान का सुख प्राप्त न कर पाने की वजह से राजा और उनकी रानियों के पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं था। राजा दशरथ को संतान प्राप्ति हो इसलिए महर्षि ऋषि श्रंगी द्वारा यज्ञ करवाया गया था। जिसके बाद यज्ञ के फलस्वरुप राजा दशरथ की तीनों पत्नियां गर्भवती हो गई थीं, उन्हीं में से रानी कौशल्या ने श्री राम को जन्म दिया था।

भगवान राम को विष्णु का अवतार माना जाता है। धरती पर असुरों का संहार करने के लिए भगवान विष्णु ने त्रेतायुग में श्रीराम के रूप में मानव अवतार लिया था। भगवान राम को मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में कई कष्ट सहते हुए भी मर्यादित जीवन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण दिया है। उन्होंने विपरीत परिस्थियों में भी अपने आदर्शों को नहीं त्यागा और मर्यादा में रहते हुए जीवन व्यतीत किया। इसलिए उन्हें उत्तम पुरुष का स्थान भी दिया गया है।

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