मर्दों की तरह महिलाओं में भी नशा अब आम है। कोई मजबूरी में तो कोई शौकिया तौर पर शराब, सिगरेट की लत को गले लगा रही है। पटना की इंजीनियर संजना बताती है कि पढ़ाई के दौरान एक रिलेशनशिप के दौरान ब्रेकअप हुआ। छोटी-छोटी बातों पर रोने लगी, तो दोस्तों के साथ मिल कर गांजा और शराब पीने लग गई। लत कैसे लगी, पता ही नहीं चला। इसके पहले मैंने कभी शराब नहीं पी थी। ना ही गांजा चखा था। घरवालों से नजरें बचाने लगी। महीनों तक ऐसा चला। न खाने-पीने का खयाल, न नौकरी का। माता-पिता और दोस्तों ने समझाया। काउंसिलिंग के बाद इलाज शुरू हुआ। फिर किसी तरह नशे से बाहर आ पाई। अब पुणे में नौकरी कर रही हूं।
सैकड़ो कहानियां
पटना में एंटी एडिक्शन सेंटर चलाने वाली डॉ. प्रतिभा कहती हैं कि संजना अकेली नहीं है, जो नशे की लत में अपनी जिंदगी बर्बाद करने निकली थी। इसके जैसी और भी सैकड़ों हैं। कई बार उन्हें लगता है कि जिंदगी उनके कंट्रोल में है। जो करेंगे, सध जाएगा, लेकिन कब यह बात बिगड़ जाती है, पता नहीं लगता। ऐसे मामलों में परिवार का साथ सबसे जरूरी होता है।
लंदन की प्रोफेसर का दावा
किंग्स कॉलेज, लंदन में प्रोफेसर शैली मार्बल का दावा है कि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं इस लत में जल्दी पड़ जाती हैं। 25 की उम्र में मैं खुद इसकी शिकार हुई थी। भारत सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय ने जो आंकड़े जारी किए हैं, वो बताते हैं कि 2018 में 18 से 75 की उम्र के कुल पंद्रह करोड़ लोग शराब की लत में थे। इसके अलावा दूसरी लत के शिकार भी थे। सरकारी आंकड़ा महिलाओं के नंबर अलग नहीं बताता। पटना की मशहूर मनोचिकित्सक डॉ. वृंदा सिंह का मानना है कि किसी भी तरह की लत को लेकर महिलाएं जागरूक नहीं हैं। उनकी तो झिझक ही अब तक नहीं टूटी। लत सिर्फ शराब, सिगरेट और गांजे की ही नहीं होती, सोशल मीडिया का बढ़ता इस्तेमाल भी लत का ही एक रूप है। अभी मैं इस तरह की महिलाओं की काउंसिलिंग कर रही हूं, जो घर में हर वक्त सफाई की लत से परेशान हैं। जैसे कि उनके घर में कोई मेहमान आया, तो उसके जाते ही सफाई में जुट जाती हैं। कई महिलाओं को तो उनके पति मेरे पास इलाज के लिए लाए। पटना, रांची, रायपुर, वाराणसी जैसे टीयर-टू शहरों में लत की शिकायत लेकर आने वाले लगातार बढ़ रहे हैं, जबकि दिल्ली, मुंबई, लखनऊ, पुणे जैसे बड़े शहरों में लोग आसानी से इस बारे में बात कर लेते हैं।
मुंबई में महिलाओं का रिहेब सेंटर चलाने वाली डॉ. आशा लिमये ने बताया कि महानगरों में छोटे शहरों के मुकाबले महिलाएं ज्यादा जागरूक हैं। वो अपनी दिक्कत को खुल कर बता देती हैं। इस कारण जल्दी इलाज हो जाता है।
छोटे शहरों में ज्यादा केस
रांची सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ साइकेट्री के ड्रग एडिक्शन सेंटर के डॉ. रोशन वी. खनंडे कहते हैं कि लत के शिकार युवाओं की संख्या मेट्रो के मुकाबले छोटे शहरों में ज्यादा है। महिलाओं की तादाद अलग से निकालना तो मुश्किल है, लेकिन ये दावा है कि ज्यादातर 18 से 28 साल की लड़कियां हैं। इन्हें शराब, गांजा, ड्रग्स, व्हाइटनर, नाइट्रावेट जैसे नशे की लत है।