दिल्ली में गणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाया गया। शानदार झांकियां प्रस्तुत की गई, जिनके माध्यम से देश की विविधता व शौर्य का प्रदर्शन किया गया। इनमें उत्तर प्रदेश को प्रथम, वहीं गुजरात को दूसरा स्थान प्राप्त हुआ। साथ ही कल प्रसिद्ध “Beating the Retreat” समारोह का आयोजन भी हुआ, जिसके समापन के साथ चार दिवसीय कार्यक्रम का भी समापन हुआ। इसमें हमारे महान देश की तीनों सेनाओं व CAPF ने 30 धुनें बजाकर सभी का मन मोह लिया। लेकिन कभी कभी यह जानने की भी जिज्ञासा भी उत्पन्न होती है कि इसके पीछे का इतिहास क्या है। तो चलिए, समय की यात्रा करते है और समझते है इस परम्परा की पूरी कहानी।
तकरीबन 300 साल पुरानी परम्परा!
इस समारोह की शुरुआत का संबंध राजा महाराजाओं के समय से है, जब सूर्यास्त हो जाने के बाद दोनों पक्षों की सेनाएं युद्ध समाप्ति का संकेत कर, अपने अपने शिविरों में लौट जाती थी। वहीं इसकी जड़े 17वीं शताब्दी में मानी जाती है, जब फिलिप द्वितीय का शासन था। उस दौरान, शाम के समय सैनिकों के लिए धुनें बजाई जाती थी। धीरे धीरे यह परंपरा दुनियाभर के देशों में फैल गई, जैसे ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, न्यूज़ीलैंड और कनाडा।
भारत में इसकी शुरूआत
मान्यता है कि भारत में इसकी शुरूआत 1952 में हुई, जब ब्रिटेन की साम्राज्ञी एलिजाबेथ द्वितीय अपने पति प्रिंस फिलिप के साथ राजकीय यात्रा पर आई थी। उस दौरान मेजर जीए रॉबर्ट्स ने सेनाओं के बैंड्स के माध्यम से देश को एक अनूठी परम्परा से अवगत कराया।
भाग लेने वाली सेनाएं
हाल के समय में, थल सेना, नौसेना व वायुसेना के साथ साथ केंद्रीय पुलिस बल भी इस समारोह में शामिल होता है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महामहिम राष्ट्रपति होते है, जिनके सामने धुन बजाई जाती है व बैंड द्वारा मार्च किया जाता है। आखिर में, बैंड मास्टर राष्ट्रपति से बैंड वापस ले जाने की अनुमति मांगते है और शाम को छह बजे ध्वज उतारने व राष्ट्रगान के माध्यम से इसका समापन होता है।
संरचना एवं विशेष धुनें
इस कार्यक्रम की शुरुआत में सैन्य ध्वनियां बजाई जाती है, जो वीर सैनिकों द्वारा किए गए बलिदानों एवं सामरिक कार्यों को दर्शाती है। इनमें जैसलमेर रिट्रीट, सैन्य मार्च आदि प्रमुख होते है। बाद में “संस ऑफ द ब्रेव” के माध्यम से उन सैनिकों को श्रद्धा सुमन अर्पित किया जाता है, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। नौसेना के योगदानों को स्वीकारोक्त करने हेतु विशेष रूप से “नौसेना मार्च” को शामिल किया जाता है। गांधीजी की प्रिय धुन “अबाइड बाय मी” भी 2021 तक बजाई जाती थी जिसे बाद में प्रसिद्ध”ऐ मेरे वतन के लोगों” से बदल दिया गया। अंत में तिरंगा उतारते समय, “रिट्रीट” बजाकर समापन किया जाता है।
निष्कर्ष
यह समारोह हमारे देश की सैन्य परम्परा का एक अटूट हिस्सा है, साथ ही हमारे वीर सैनिकों के बलिदान प्रेरणादायक कहानियों को भी जीवित रखता है। भारत के हर बहादुर सपूत को शत शत नमन।