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Reading: दस हजार महिलाओ के प्रसव करवा चुकी हैं कथिजा
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Fourth Special

दस हजार महिलाओ के प्रसव करवा चुकी हैं कथिजा

कथिजा ने जब काम शुरू किया था, तब खुद गर्भवती थीं

Last updated: जुलाई 4, 2023 5:17 अपराह्न
By Parikshit 2 वर्ष पहले
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4 Min Read
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चैन्नई/ तमिलनाडु के स्वास्थ्य केंद्र में तीन दशक से काम करने वाली कथिजा बीबी के करियर पर किताब लिखी जा सकती है। 1990 में जब कथिजा ने काम शुरू किया था, तब खुद गर्भवती थीं और अब तक दस हजार से ज्यादा महिलाओं का सफल प्रसव करवा चुकी हैं। हाल ही में वो रिटायर हुई हैं। तमिलनाडु सरकार की तरफ से उन्हें नवाजा भी गया है। स्वास्थ्य मंत्री एमए सुब्रह्मण्यम ने कथिजा के काम के दौरान एक भी बच्चे की मौत न होने पर उन्हें राजकीय सम्मान देने की बात कही। तमिलनाडु में एक तरफ शिशु मृत्यु दर का ग्राफ नीचे आ रहा है, दूसरी तरफ कथिजा जैसे उदाहरण भी हैं, जिनकी अपने पेशे के प्रति ईमानदारी ऐसी है कि अपने लंबे करियर में दस हजार बच्चोंका जन्म करवा चुकी हैं।

बदल रहा है दौर

वो बताती हैं कि मैं सात महीने की गर्भवती थी, तब भी दूसरी महिलाओं की मदद करती थी। दो महीने की मेटरनिटी लीव ली और फिर काम पर लौट आई। तभी से लगातार काम कर रही हूं। मैंने ये नजदीक से देखा है कि लड़की का जन्म होने पर किस तरह लोगों के चेहरे मुरझा जाते थे, लेकिन अब दौर बदल रहा है। अब तो मिठाइयां बंटती हैं। मैं जानती हूं कि महिलाएं प्रसव पीड़ा से किस तरह परेशान रहती हैं। उन्हें सहज और मजबूत बनाना ही मेरा पहला काम है। कथिजा जिस स्वास्थ्य केंद्र में काम कर रही हैं, वह चेन्नई से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर विल्लूपुरम में है। उनका क्लिनिक सीजेरियन डिलेवरी के लिए मुफीद नहीं है, इसके बावजूद कथिजा मुश्किल से मुश्किल डिलेवरी भी आसानी से करवा लेती हैं। वे नर्स हैं, लेकिन उन पर डॉक्टरों से ज्यादा लोगों को भरोसा है। कम उम्र से ही व्यवस्थाओं की कमी और गरीबी में पलीं कथिजा जानती हैं कि गांव के लोगों के पास इलाज के लिए मोटा पैसा नहीं है। वह बताती हैं कि जब मैंने काम शुरू किया, तब हमारे स्वास्थ्य केंद्र में एक डॉक्टर, सात सहायक और दो नर्स थीं। शुरुआत में मैं काफी व्यस्त रहती थी, इस कारण खुद के बच्चों की भी देखभाल नहीं कर पाई। पारिवारिक कार्यक्रम में भी नहीं गई, लेकिन जो सीखा, वो आज तक सुकून देता है।

पचास से ज्यादा जुड़वां

सामान्य दिनों में कथिजा एक या दो प्रसव करवा देती हैं, लेकिन उन्हें आठ मार्च, 2000 का वह दिन याद है, जब उन्होंने दो महिलाओं को तड़पते हुए उनका नाम लेते सुना। उन दोनों की किसी तरह डिलेवरी करवाई और छह महिलाएं और रोती-बिलखती आ गईं। उस दिन मैंने करीब दस प्रसव करवा दिए थे। पचास से ज्यादा जुड़वां और दो केस तीन बच्चों के एक साथ करवा चुकी हूं। मैंने हर तरह के केस देखे हैं। कुछ पति, लड़की के जन्म लेने पर पत्नी से मिलने भी नहीं आते, तो कुछ महिलाएं तीसरी बेटी के जन्म पर रोने लग जाती हैं

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