साल 2007, केसर पर्वत की 25 एकड़ ज़मीन, बिल्कुल पथरीली और बंजर, यहां तक कि घास भी नहीं। लेकिन एक रिटायर्ड शख्स ने अपने दृढ़ संकल्प और जुनून से यहां की तस्वीर ही बदल डाली। होलकर साइंस कॉलेज के पूर्व प्राध्यापक डॉ. शंकर लाल गर्ग ने स्कूल कॉलेज खोलने के इरादे से यह भूमि खरीदी थी। लेकिन जब बात नहीं बनी, तो पौधे लगाना शुरू कर दिया। गांव वालों ने चेताया भी कि यहां आज तक एक पेड़ भी नहीं उगा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। प्रारंभ में पीपल, नींबू , नीम आदि लगाना शुरू किए। धीरे धीरे संख्या बढ़ने लगी। आज यहां कुल 40,000 पौधे लगे हैं। डॉ. गर्ग का लक्ष्य है 50,000 पौधे लगाना।
इस तरह उगाया केसर
केसर पर्वत का नाम ही इसलिए पड़ा, क्योंकि यहां कश्मीर में उगाए जाने वाला केसर भी मिलता है। शुरू में कश्मीर से बीज मंगवाए गए तथा पहले वर्ष में कुल पांच फूलों को उगाने में कामयाबी मिली।
अगले वर्षों से, पौधों को फ्रीज में रखा ठंडा पानी ही दिया गया। केसर की खेती के लिए विशेष छायादार स्थिति बनाई गई। दिन में करीब 18 डिग्री, तो रात में 5 डिग्री तापमान मेंटेन किया गया। इन पौधों में फ्रीज के पानी का स्प्रे भी किया जाता था ताकि अच्छे परिणाम मिले।
बहुत मुश्किलों का किया सामना
प्रारंभ में ज़मीन पथरीली होने के कारण, बहुत परेशानियों का सामना करना पड़ा। सबसे पहले तो, ज़मीन पर गड्ढे खोदने से लेकर पानी पहुंचाना तक नामुमकिन था। 3-4 बार बोरिंग तथा कुआं खोदने के बाद भी पानी प्राप्त नहीं हो सका। कोई और उपाय न मिलता देख, पानी खरीदने का निर्णय लिया गया तथा इकठ्ठा करने के लिए तालाब का निर्माण किया गया। बाद में ड्रिप इरिगेशन के ज़रिए, पौधों तक पानी पहुंचाया गया।
इस पहाड़ी की हरियाली में किसी भी प्रकार की खाद का कोई भी योगदान नहीं है। बारिश के दौरान पानी में नाइट्रोजन सल्फर होता है जो साल भर के लिए पर्याप्त होता है। वर्तमान में इस पहाड़ी पर अनार, मौसंबी, संतरा, सेब, ऑलिव, अनानास, रामफल, ऑस्ट्रेलिया का एवोकाडो, थाईलैंड का जैक फ्रूट और कई अन्य फल उग रहे है। इस तरह के कार्य ने ये साबित कर दिया कि एक इंदौरी के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।