उत्तराखंड के नैनीताल में कई जगह ऐसी रामलीला होती है, जिसमें हिंदू-मुसलमान दोनों किरदार निभाते हैं। कुछ मुस्लिम कलाकार तो ऐसे हैं, जिन्हें किरदार निभाते हुए 40 बरस तक हो चुके हैं। तल्लीताल रामलीला समिति के अध्यक्ष रवींद्र पांडे बताते हैं, 126 साल से मंचन जारी है। अनवर रजा तीन दशक से नैनीताल की अलग-अलग रामलीलाओं में हिस्सा लेते आ रहे हैं। कहते हैं इंसान के दिल में, उसके रोम-रोम में राम भी हैं और रहीम भी है। मैं कभी शत्रुघ्न, तो कभी केवट और कभी विश्वामित्र बनता हूं। 1995 से रामलीला के मंचन से जुड़ा था और मैंने सबसे पहले शिवजी के रूप में अभिनय किया था। मैं पांचों वक्त की नमाज पढ़ता हूं और रोज़ भी रखता हूं, मगर मेरी जो आज पहचान बनी है, वो रामलीला से ही बनी है।
15 साल से अलग-अलग किरदार
अनवर फख्र से कहते हैं, मेरा परिवार हो या फिर मेरा समाज, वो भी मुझे रामलीला के मंच पर जाने से नहीं रोकते। आदर्श रामलीला समिति मुझे मेरे परिवार की ही तरह लगती है। 15 साल से अलग-अलग किरदार निभा रहे जावेद हुसैन बताते हैं- यूं तो बचपन में, मैं घरवालों के साथ रामलीला देखा करता था। तब रामलीला में वानरों को देख कर मैं अपने मन में यह सोचता था कि क्या कभी मैं भी वानर का किरदार कर पाऊंगा। पांच साल के थे, तब उन्हें रामलीला में एक वानर का रोल करने के लिए मिला। तब से आज लगातार 15 साल से रामलीला के साथ जुड़े हुए हैं।मैं अलग-अलग रामलीलाओं में नए-नए कैरेक्टर करता रहता हूं। इसके अलावा कलाकारों का मेकअप और ड्रेसअप से लेकर काफी चीजों पर भी काम करना जानता हूं। रामलीला ने हमें एक जुड़ाव दिया है अपने जन समुदाय से मिलने और उनसे जुडऩे का और उनके साथ प्रेम और सौहाद्र्र से रहने का।
वो गंगा-जमुनी तहजीब
जावेद हुसैन ने बताया, कुमाऊं की रामलीला को कुछ खास बातें अलग बनाती हैं, इसलिए यहां की रामलीला दूर-दूर तक मशहूर है। जावेद ने ताडक़ा के डायलाग (मैं तो ताडक़ा तड़-तड़ तड़ाक करती हूं, मैं तो सौ-सौ पुरुषों का आहार करती हूं) को गायन शैली में कहते हुए बताया कि दूसरी सबसे खास बात यह है कि यहां गायन शैली में रामलीलाओं का मंचन होता है। मैं एक मुसलमान हूं, लेकिन हमारी जो परंपरा है, वो गंगा-जमुनी तहजीब वाली है और वो परंपरा यहां बरकरार है। ऐसा आज तक नहीं हुआ कि हम कहीं रामलीला मंचन के लिए गये हों और हमें सम्मान ना मिला हो। वो कहते हैं, लोग हमें गले लगा कर यह कहते हैं कि वाह, आपके किरदार में मजा आ गया और यही वजह है कि हमें भी रामलीला के दौरान किरदार में डूब कर किरदार निभाने का मजा आता है। सईब अहमद के बिना नैनीताल की तल्लीताल रामलीला समिति अधूरी सी लगती है। सईब राम से लेकर दशानन रावण तक सभी पात्रों का मेकअप कर उन्हें किरदार के रूप में तैयार करते हैं।