माइकल स्वेन… कभी अमेरिकी सेना में अधिकारी हुआ करते थे। लडक़े की मौत ने इतना मायूस कर दिया था कि खुदकुशी करने वाले थे। एक रोज दोस्त सत्संग में ले गया। वहां मोक्ष और शांति के पाठ ने नया रास्ता सुझा दिया। साल 2000 में पत्नी के साथ भारत आए। प्रयागराज के आश्रम में दो हफ्ते बिताए। ऐसी लगन लगी कि संन्यास का फैसला कर लिया। पत्नी को वापस लौट जाने को कहा… खुद बाबा हो गए। साथी संतों ने मोक्षपुरी नाम रख दिया।
2016 में जब उज्जैन कुंभ में आए, तो संकल्प लिया कि जब तक जिंदा हैं, हर कुंभ में स्नान करेंगे।
अमेरिका में खोल रहे आश्रम
अमेरिका भी आना-जाना है। न्यूजर्सी में आश्रम खोल रहे हैं। भारतीय दर्शन और योग का प्रचार-प्रसार करेंगे। अमेरिकी मैगजीन को इंटरव्यू में कहा था कि हर इंसान को सही समय पर भारतीय संस्कृति और संन्यास में रम जाना चाहिए। वहीं के साधु-महात्माओं में ताकत है, जो आखिरी मंजिल तक पहुंचा सकें। और किसी धर्म में न ये सीख है और न ही कोई व्यवस्था बताई गई है। प्रयागराज कुंभ में पहुंचे बाबा मोक्षपुरी कहते हैं कि अमेरिकी सेना में नौकरी के वक्त घमंडी हुआ करता था। किसी को माफ करने में भरोसा नहीं था। भारत आया तो पता चला कि बिना क्षमा के तो भक्ति संभव ही नहीं है। पत्नी और परिवार मुझे आज तक वापस बुलाते हैं, लेकिन मैं अब जूना अखाड़ा का हो गया हूं। बीते 24 साल से सफर में हूं। आखिरी सांस यहीं लूंगा। सनातन धर्म को चुन लेना तो आसान है, लेकिन इसका पालन करना कड़ी परीक्षा है। अगर लगन नहीं है… किसी वाहवाही या दिखावे के चक्कर में आए हैं, तो ज्यादा दिन नहीं चलेंगे।
भारत के मीडिया से नाराज
भारतीय मीडिया से निराश हूं। एक सवाल वो बार-बार पूछते हैं। तमाशाई खबरों पर ज्यादा ध्यान देते हैं। प्रिंट मीडिया तो फिर भी ठीक है, यू-ट्यूब और इंस्टाग्राम वाले तो हंसी-ठिठौली ही करते रहते हैं। कुंभ और इसकी परंपरा के बारे में आम लोगों को बताएं, वो तो अच्छा है, लेकिन लाइक और व्यू के चक्कर में बाबा-संतों से मजाक अच्छी बात नहीं है।