पिछले एक डेढ़ साल से कुछ भारतीय राजनीति में इंडिया गठबंधन का गठन विपक्ष की एकता के प्रतीक के रूप में देखा गया था। लेकिन 2024 लोकसभा चुनाव में केंद्र की मोदी सरकार को सत्ता से उखाड़ फेंकने के लिए बनी इंडिया गठबंधन की गांठ चुनाव दर चुनाव खुलती जा रही है। जिस तरह से यह गठबंधन आंतरिक कलह और विचारधाराओं की खींचतान का शिकार हो रहा है, यह 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले बने ‘महागठबंधन’ की यादें ताजा कर रहा है।
2019 में बीजेपी और मोदी लहर के खिलाफ विपक्ष ने महागठबंधन बनाया था। जिसमें कांग्रेस, आरजेडी, सपा, बसपा जैसे सभी बड़े दल शामिल थे। लेकिन यह गठबंधन लंबा नहीं चल पाया। इसका कारण था पार्टियों के बीच नेतृत्व, सीट बंटवारे और व्यक्तिगत एजेंडों को लेकर मतभेद। चुनाव के नतीजों में बीजेपी को भारी बहुमत मिला, और महागठबंधन बिखर गया। आज I.N.D.I.A. ब्लॉक के साथ भी यही स्थिति दिख रही है। ममता बनर्जी की टीएमसी, केसीआर की बीआरएस, और अखिलेश यादव की सपा जैसे दल कांग्रेस के साथ सहज नहीं दिखते। महाराष्ट्र में शरद पवार की एनसीपी और शिवसेना (उद्धव गुट) में आपसी मनमुटाव सामने आ रहा है। अरविंद केजरीवाल की आप पार्टी का कांग्रेस से पुराना टकराव जगजाहिर है। यह सवाल उठ रहा है कि क्या ये सभी दल केवल मोदी सरकार के खिलाफ एकजुट हुए हैं, या उनके पास कोई ठोस रणनीति और बड़ा विज़न भी है?
2024 लोकसभा के बाद हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में विपक्षी दलों की हार हुई है। दिल्ली मे केजरीवाल ने अकेले उतरने का ऐलान कर दिया है वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने गठबंधन का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस पर सवाल खड़े करते हुए खुद लीडर बनने की इच्छा जता दी है। महागठबंधन की तरह ही I.N.D.I.A. ब्लॉक भी नेतृत्व संकट से जूझ रहा है। कांग्रेस खुद को गठबंधन का स्वाभाविक नेता मानती है, लेकिन टीएमसी, आप, और सपा जैसे दल इसे स्वीकारने के लिए तैयार नहीं हैं।
ममता पश्चिम बंगाल में कांग्रेस को अपने प्रतिद्वंद्वी के रूप में देखती हैं। AAP दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस के खिलाफ सीधी लड़ाई में है। सपा जैसे क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय एजेंडे से ज्यादा अपनी राज्य की राजनीति पर ध्यान देते हैं। इसके अलावा, विचारधारात्मक असमानता भी इस गठबंधन को कमजोर कर रही है।
वैसे इतिहास देखें तो कांग्रेस राष्ट्रीय और परिवारवादी पार्टी होने के चलते क्षेत्रीय दल या किसी भी अन्य पार्टी के नेता का नेतृत्व कभी स्वीकार नहीं करेगी। खुद कॉंग्रेस की हालत भी पतली होती जा रही है। जम्मू – कश्मीर और झारखंड में वे नई सरकार का हिस्सा तो हैं लेकिन उन्हें कोई भी बड़ा या मन मुनासिब पद नहीं दिया गया है।
कुल मिलाकर स्थिति नाज़ुक बन चुकी है। I.N.D.I.A. Block में यदि नेतृत्व और विचारधारा की खींचतान जारी रहती है, तो यह गठबंधन भी महागठबंधन की तरह ही इतिहास बनकर रह जाएगा। भारतीय राजनीति में विपक्ष के लिए यह समझना जरूरी है कि केवल गठबंधन बनाना ही काफी नहीं है, उसके टिकाऊपन और दूरदर्शिता पर काम करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। लेकिन जनता भी जानती हैं कि अलग अलग मुद्दे और समुदायों के लिए बनी ये पार्टियां एक होने का मात्र अभिनय कर सकती हैं, असल में बहुत समय तक एक नहीं रह सकती।