हिंदू धर्म में श्रीकृष्ण को भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना गया है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कृष्ण का जन्म भाद्र मास की कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को मथुरा के कारागार में हुआ था।भगवान कृष्ण की जन्मदिन के उत्सव के रूप में हर साल भाद्र या भादो महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पावन त्योहार भक्त बड़े ही उत्साह से मनाते हैं सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जन्माष्टमी का त्योहार बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। इस साल जन्माष्टमी के लिए रोहिणी नक्षत्र 6 सितंबर को सुबह 9:20 बजे शुरू होगा और 7 सितंबर को सुबह 10:25 बजे समाप्त होगा। रोहिणी नक्षत्र और अष्टमी तिथि एक साथ होने के कारण श्री कृष्ण जन्माष्टमी 6 सितंबर को मनाई जाएगी। जानते हैं आखिर क्यों मनाई जाती है कृष्ण जन्माष्टमी और क्या है इससे जुड़ी व्रत कथा।
कृष्ण जन्माष्टमी का महत्व
कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार काफी महत्व रखता है। भगवान कृष्ण की कृपा दृष्टि के लिए भक्त इस दिन उपवास रखते हैं और मंदिरों में पूजा अर्चना करते हैं। भगवान कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था इसलिए कृष्ण जन्माष्टमी के समय मध्य रात्रि में मंदिरों में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है और रात्रि जागरण भी किया जाता है।
जन्मािष्टिमी व्रत कथा
स्कंद पुराण के अनुसार, मथुरा में उग्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा था। वह स्वंभाव में सीधा-साधा था, जिस कारण उसके पुत्र कंस ने ही उनका राज्य हड़प लिया और स्वणयं मथुरा का राजा बन गया। कंस की बहन थी देवकी। कंस अपनी बहन देवकी से बहुत प्रेम करता था। देवकी का विवाह वसुदेव के साथ हुआ। जब कंस बहन को छोड़ने के लिए जा रहे थे तभी रास्ते में एक आकाशवाणी हुई कि देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान उसकी (कंस) मृत्यु का कारण बनेगी। भविष्यवाणी सुनते ही कंस ने देवकी और वसुदेव को मारना चाहा। लेकिन जैसे ही वह आगे बढ़ा तभी वसुदेव ने कहा कि वह देवकी को कोई नुकसान न पहुंचाए। वह स्वुयं अपनी आठवीं संतान कंस को सौंप देगा। इसके बाद कंस ने वसुदेव और देवकी की हत्या तो नहीं की लेकिन दोनों को कारागार में डाल दिया।
कारागार में ही देवकी ने सात संतानों को जन्मो दिया। कंस ने एक-एक कर सभी को मार दिया। जब देवकी आठवीं बार गर्भवती हुई तो कंस का भय और बढ़ गया। उसने कारागार पर पहरेदारी बढ़ा दी। देवकी ने भाद्रपद माह के कृष्ण- पक्ष की अष्टेमी की मध्य रात्रि को रोहिणी नक्षत्र में कृष्ण को जन्मद दिया। भगवान विष्णुे ने वसुदेव को दर्शन दिए और कहा कि वे स्वृयं उनके पुत्र के रूप में जन्मेंण हैं। उन्होंवने वसुदेव से कहा कि वे उन्हें वृंदावन में अपने मित्र नंदबाबा के घर पर छोड़ आएं और यशोदा जी के गर्भ से जिस कन्याे का जन्म हुआ है, उसे कारागार में ले आएं।
इधर कंस को जैसे ही देवकी के आठवें संतान के बारे में मालूम हआ तो वह कारागार पहुंचा। उसने देखा कि आठवीं संतान कन्या है। लेकिन कंस को मृत्यु का भय था इसलिए उसने कन्या को जमीन पर पटक दिया। नवजात कन्या जमीन से आसमान में पहुंचकर बोली- रे मूर्ख मुझे मारने से कुछ नहीं होगा। तेरा काल तो पहले से ही वृंदावन पहुंच चुका है और वह जल्दी ही तेरा अंत करेगा। फिर कंस ने वृंदावन में जन्में नवजातों का पता लगाया। कंस ने यशोदा के लाल जोकि कृष्ण थे। उसे भी मारने के कई प्रयास किए लेकिन कृष्ण का बाल भी बांका नहीं हुआ। कंस को यह अहसास हो गया कि यह बालक ही वसुदेव और देवकी की आठवीं संतान है, जो उसकी मृत्यु करेगा। कृष्ण ने युवावस्था में ही कंस का अंत किया।