भारत के सुरक्षा के लिहाज से देखा जाए तो बीता साल उथल-पुथल भरा रहा। चीन के साथ रिश्तों में तनाव तो कम हुआ,लेकिन जम्मू-कश्मीर, मणिपुर और बांग्लादेश से सटे इलाक़ों में हिंसक घटनाएं और दखल बढ़ा है। एक तरफ जहां बांग्लादेश में तख्तापलट और बांग्लादेश – पाकिस्तान के करीब आने से भारत की चिंता बढ़ी हैं वहीं वैश्विक स्तर पर यूक्रेन-रूस, इस्राइल-हमास-हिजबुल्लाह, डॉनल्ड ट्रंप की जीत, असद के पतन से कमजोर पड़े ईरान से कई तरह के समीकरण बदले हैं जो भारत के लिए भी खास अहमियत रखते हैं।
भारत जैसे विशाल और विविधता-भरे देश के लिए सुरक्षा केवल एक प्राथमिकता नहीं, बल्कि अस्तित्व की आवश्यकता है। देश की सीमाएं जहां पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों से घिरी हैं, वहीं आंतरिक चुनौतियां भी आतंकवाद, उग्रवाद और साइबर सुरक्षा जैसे नए खतरों का सामना कर रही हैं। ऐसे में 2025 में भारत को अपने रक्षा ढांचे में व्यापक सुधारों की सख्त जरूरत है। समझना जरूरी है कि ये सुधार क्यों जरूरी हैं और इसमें कौन-कौन से पहलू शामिल होने चाहिए।
भारत की सीमाएं पाकिस्तान और चीन जैसे देशों से लगती हैं, जिनसे देश को हमेशा खतरा रहता है। 2020 में गलवान घाटी की झड़प और अरुणाचल प्रदेश में घुसपैठ चीन की नीयत को साफ दिखाती है। चीन अपनी सैन्य क्षमताओं को लगातार बढ़ा रहा है, जैसे हाइपरसोनिक मिसाइलों का विकास और आधुनिक युद्धपोतों का निर्माण। हालांकि, फ़िलहाल दोनों देशों के बीच मनमुटाव कम हुआ है लेकिन फिर भी भारत को चीन का दोगलेपन से भरा इतिहास भुलाना नहीं चाहिए।
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने कश्मीर से लेकर देश के अन्य हिस्सों तक नुकसान पहुंचाया है। पुलवामा जैसे हमले इसका स्पष्ट उदाहरण हैं। अब बांग्लादेश के साथ मिलकर वह दोनों तरफ से भारत को नुकशान पहुंचा सकता है।
भारत का रक्षा ढांचा अभी भी 20वीं सदी के कुछ मॉडल्स पर आधारित है। भारतीय सेना, वायु सेना और नौसेना के पास उपकरणों का आधुनिकीकरण धीमी गति से हो रहा है। उदाहरण के लिए, भारत में अभी भी पुराने मिग-21 विमानों का इस्तेमाल हो रहा है। रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता के बावजूद, भारत अभी भी अपने 70% रक्षा उपकरण आयात करता है।
भारत को बजट और प्रबंधन में सुधार की आवश्यकता भी है। भारत अपने जीडीपी का केवल 2.5% रक्षा पर खर्च करता है, जो कि चीन 3.6% और अमेरिका 3.5% की तुलना में काफी कम है। रक्षा अनुसंधान और विकास में भी निवेश काफी कम है, जिससे स्वदेशी तकनीक विकसित करने में देरी हो रही है।
हमे याद रखना होगा कि 21वीं सदी में युद्ध केवल सीमाओं पर नहीं लड़ा जाएगा। भारत पर साइबर हमलों की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं। 2023 में, सरकारी वेबसाइट्स और संस्थानों पर कई साइबर अटैक हुए। इसके अलावा अंतरिक्ष में सुरक्षा सुनिश्चित करना अब देशों की प्राथमिकता बन गई है। चीन और अमेरिका स्पेस डोमिनेंस की दौड़ में आगे हैं, जबकि भारत इस क्षेत्र में पीछे है। हमे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ड्रोन टेक्नोलॉजी और सैटेलाइट सिस्टम्स को रक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाना होगा। ‘मेक इन इंडिया’ के तहत रक्षा उपकरणों के उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिए। आधुनिक युद्ध के लिए सैनिकों को नई तकनीकों और रणनीतियों में प्रशिक्षित करना होगा और साइबर और स्पेस खतरों से निपटने के लिए अलग से डेडिकेटेड कमांड स्थापित करनी होगी।
रक्षा सुधार केवल घरेलू सुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की स्थिति को मजबूत करने के लिए भी आवश्यक हैं। हमे अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ मिलकर सुरक्षा समझौतों को और प्रभावी बनाना चाहिए।
नए साल में भारत के लिए रक्षा सुधार एक आवश्यकता है, न कि विकल्प। सीमाओं पर बढ़ते खतरों, आंतरिक चुनौतियों और तकनीकी युद्धों के युग में, देश को अपनी सुरक्षा प्रणाली को नए सिरे से मजबूत करना होगा। क्यूंकि अब समय आ गया है कि भारत रक्षा क्षेत्र में भी वही प्रगति करे, जो उसने आर्थिक और तकनीकी क्षेत्रों में की है।