“मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।”… हरियाणा के चरखी दादरी जिले के छोटे से गांव का एक परिवार इस कविता की जीती जागती मिसाल है। चार महिलाओं के कंधों पर खड़े ‘सांगवान परिवार’ साहस की एक ऐसी कहानी को गढ़ रहा है, जिसे एक वाक्य में समेटा नहीं जा सकता। यह कहानी है एक परिवार की, जो पीढ़ी दर पीढ़ी अपने साहस, मेहनत और दृढ़ निश्चय से समाज की हर रूढ़ि को तोड़ रहा है।
रामबाई, जिन्हें लोग प्यार से ‘उड़ानपरी’ कहते हैं, 108 साल की उम्र में भी प्रेरणा की मिसाल हैं। खेलों में उन्होंने जिस ऊर्जा और प्रतिबद्धता का प्रदर्शन किया, वह हर किसी को चौंका देती है। रामबाई ने 200 से अधिक मेडल जीते और अपने गांव को गर्व से भर दिया। उम्र को कभी अपने रास्ते में आने नहीं दिया। उनकी जिंदगी का हर पल यह साबित करता है कि जज्बा और मेहनत उम्र के बंधनों को तोड़ सकती है।
रामबाई का प्रभाव उनके परिवार पर भी पड़ा। जब उनकी पोती ज़ीनिथ गहलावत ने उन्हें बताया कि वह पायलट बनने का सपना देख रही है, तो उनकी मुस्कान ने पूरी कहानी बयां कर दी।
22 साल की ज़ीनिथ, जो अब पायलट बनने के सपने को साकार करने वाली हैं, अपनी माँ और दादी से सीखी हिम्मत और लगन को आसमान की ऊंचाइयों तक ले जा रही हैं। उनका कहना है, “जब मैंने नानी को 2023 में बताया कि मैं पायलट बनूंगी, तो उनकी मुस्कान ने मुझे बहुत ताकत दी।”
ज़ीनिथ, आज पूरे गांव के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं। उन्होंने न सिर्फ अपने परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाया है, बल्कि हरियाणा की महिलाओं के लिए एक नई दिशा भी दिखाई है। एक ऐसे राज्य में, जहां लड़कियों के सपनों को अक्सर दबा दिया जाता है, ज़ीनिथ ने साबित कर दिया कि अगर सपने सच्चे हों, तो आकाश भी छोटा पड़ जाता है।
ज़ीनिथ की माँ, 42 वर्षीय शर्मिला संगवान, खुद एक मिसाल हैं। एक डीटीसी बस ड्राइवर के रूप में उन्होंने बड़े वाहनों को संभालते हुए अपनी बेटी को सिखाया कि जीवन में बड़े लक्ष्य कैसे हासिल किए जाते हैं।
ज़ीनिथ का कहना है,”जब मैंने मां से बड़े वाहनों को चलाना सीखा, तो मुझे लगा कि मैं कुछ भी कर सकती हूं। अब वही आत्मविश्वास मुझे प्लेन उड़ाने में मदद करता है।”
संगवान परिवार की इस गाथा में 64 साल की संत्रा देवी भी बहुत अहम हैं। 2021 में, जब उन्होंने पहली बार दौड़ लगाई, तो उन्हें अहसास हुआ कि उनका शरीर और मन अब भी उन्हें सपने देखने और उन्हें पूरा करने की अनुमति देता है। कुछ ही समय में, वह खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने लगीं और मेडल पर मेडल जीतने लगीं। उन्होंने कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं दौड़ सकती हूं। लेकिन जब पहली बार दौड़ी, तो लगा कि यह मेरे अंदर हमेशा से छिपा हुआ था। अब मैं खुद को और दूसरों को यह दिखाने के लिए दौड़ती हूं कि कोई भी कुछ भी कर सकता है।”
इस परिवार की घर की दीवारें और अलमारियां मेडल और प्रमाणपत्रों से सजी हुई हैं। संगवान परिवार की इस कहानी ने झोझू कलां को एक नई पहचान दी है। गांव के लोग गर्व से बताते हैं कि यह परिवार हमारे गांव की शान है। हरियाणा के लिए यह कहानी केवल खेलों या पेशे में उत्कृष्टता की नहीं, बल्कि महिलाओं के अधिकार और सम्मान की कहानी है। यह परिवार चार पीढ़ियों से न सिर्फ सपनों को जी रहा है, बल्कि समाज को एक नई सोच दे रहा है।