केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की गतिविधियों में शामिल होन पर लगे बैन को हटा दिया है। 1966 में तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने यह बैन लगाया था। 58 साल बाद केंद्र सरकार ने इसे रद्द किया है। 30 नवबंर 1966, 25 जुलाई 1970 और 28 अक्टूबर 1980 के विवादित कार्यालय ज्ञापनों से RSS का उल्लेख हटा दिया जाए। आखिर अब हम जानेंगे कि तत्कालीन इंदिरा गांधी सरकार ने 1966 में ऐसा क्या आदेश दिया था, जिसकी वजह से सरकारी कर्मचारियों के संघ में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
1966 में RSS पर लगा था प्रतिबंध
भारतीय जनता पार्टी आईटी सेल के चीफ अमित मालवीय ने कहा कि, यह बैन इसलिए लगाया गया था क्योंकि 7 नवंबर 1966 को संसद में बड़े पैमाने पर गौ हत्या पर विरोध प्रदर्शन हुआ था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने काफी लोगों की भीड़ जुटा ली थी और पुलिस की फायरिंग में बहुत सारे लोगों की जान चली गई थी। इसलिए 30 नवंबर 1966 को RSS और जनसंघ के प्रभावशाली असर को देखते हुए इंदिरा गांधी ने सरकारी कर्मचारियों पर RSS के किसी भी तरह के कार्यक्रम में जाने पर बैन लगा दी थी।
58 साल बाद हटा प्रतिबंध
मध्यप्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ सहित विभिन्न राज्य सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के RSS से जुड़े होने पर प्रतिबंध को पहले ही हटा चुकी हैं। लेकिन 30 नवंबर 1966 में केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के RSS की गतिविधियों में शामिल होने पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने इंदिरा गांधी के शासन के दौरान लगाए गए प्रतिबंध को 9 जुलाई 2024 को एक आदेश के अनुसार हटा दिया है।
पहली बार 1948 पर लगा था प्रतिबंध
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा कि, 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसके बाद अच्छे आचरण के आश्वासन पर प्रतिबंध को हटा दिया गया था। लेकिन इसके बाद भी RSS ने नागपुर में तिरंगा नहीं फहराया। फिर 1966 में, RSS की गतिविधियों में भाग लेने वाले सरकारी कर्मचारियों पर प्रतिबंध लगाया गया था और यह सही निर्णय भी था। यह 1966 में बैन लगाने के लिए जारी किया गया आधिकारिक आदेश था।
क्या सरकार के इस कदम के पीछे कोई बड़ी वजह है? यह RSS द्वारा सरदार पटेल को दी गई उस माफ़ीनामा और आश्वासन का भी उल्लंघन है जिसमें उन्होंने RSS को संविधान के अनुरूप, बिना किसी राजनीतिक एजेंडे के एक सामाजिक संस्था के रूप में काम करने का वादा किया था। विपक्ष को लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए आगे भी संघर्ष करते ही रहना होगा।