मध्यप्रदेश के ग्वालियर संभाग में चंबल में एक युग में बागियों का आतंक-राज चलता था। मान सिंह से लेकर फूलन देवी तक अलग-अलग कारण से चंबल घाटी में उतरे और पुलिस से लेकर पैरा मिलेट्री फोर्स की नाक में दम कर दिया। रमेश सिकरवार चंबल घाटी के आखिरी डाकू थे, जिन्होंने 80 के दशक में सरेंडर कर दिया था। मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के कहने पर 27 अक्टूबर, 1984 को 32 सदस्यों समेत सरेंडर किया था। दस साल जेल की सजा काट कर नई जिंदगी की शुरुआत की थी। उनके साथ 32 बागियों ने भी सरेंडर किया था। सभी ने दस साल कैद की सजा भुगत कर नया जीवन शुरू किया। सबसे पहले सरेंडर की शुरुआत राष्ट्र-संत आचार्य विनोबा भावे और गांधीवादी सुब्बाराव ने करवाई थी। उनकी कोशिश से 654 डकैतों ने सरेंडर किया था।
बीस साल चला सरेंडर का सिलसिला
डकैतों के सरेंडर का सिलसिला 1960 से 1980 तक चलता रहा और डकैतों के आतंक से चंबल घाटी मुक्त हुई। सैकड़ों डकैतों ने सरेंडर कर आम नागरिक की तरह जीवन शुरू किया। राजनीति में फेल बागी कई बागी सरेंडर करने के बाद राजनीतिक अखाड़े में उतरे, लेकिन सफल नहीं हो सके। एक बागी मलखान सिंह (80) हाल ही में भाजपा छोड़ कर कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। मुरैना, गुना सहित चंबल के कई गांवों में मलखान सिंह का आज भी असर है। रमेश सिकरवार आज भी चंबल घाटी के गांवों में रॉबिनहुड की तरह देखे जाते हैं।
तूती बोलती थी साठ के दशक में
साठ के दशक में म.प्र. के उत्तरी भाग में चंबल नदी के किनारे खतरनाक डकैतों का साम्राज्य होता था। बटेश्वर, धौलपुर और राजस्थान तक डकैतों की तूती बोलती थी। किसी का दम नहीं होता था कि डकैतों की बात नहीं माने। 1960 से 1976 तक 654 डकैतों ने सरेंडर किया था। मुरैना जिले के जौरा गांव में गांधीवादी सुब्बाराव ने सरेंडर करने वाले डकैतों की जेल की सजा पूरी होने पर गांधी सेवाश्रम में सेवा कार्य करने के लिए प्रेरित किया। कई डकैतों ने गांधीवाद की राह पकड़ ली। खूंखार बागी मोहर सिंह ने 90 के दशक में भाजपा में शामिल होकर राजनीति की शुरुआत की थी। वे मेहगांव नपा अध्यक्ष रहे। डकैत प्रेम सिंह कांग्रेस के टिकट पर सतना से विधायक रहे। 2013 में उनका निधन हो गया।
खतरनाक सिकरवार
खतरनाक माने जाने वाले रमेश सिकरवार पर तीन लाख रुपए का इनाम था। उनके साथियों पर 50-50 हजार रुपए इनाम था। सगे चाचा के साथ जमीन के झगड़े को लेकर सिकरवार ने बगावत की थी। रमेश सिकरवार ने मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की पहल पर सरेंडर किया था। मलखान सिंह से लेकर सिकरवार तक कई डकैत राजनीति में सफल नहीं हुए। सिकरवार ने नरेंद्र सिंह तोमर के कहने पर भाजपा ज्वाइन की थी। 2008 में उन्होंने समाजवादी पार्टी के टिकट पर विजयपुर से चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ सोलह हजार वोट ही मिले। सिकरवार ने कई आदिवासियों की जमीनें साहूकारों के कब्जे में जाने से बचाई थीं। वे आज भी उसका गुणगान करते हैं।