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Reading: वही दिन, वही दास्तां : भारत-पाक के बीच ‘लाहौर समझौता’ और अटल जी का ऐतिहासिक भाषण!
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Fourth Special

वही दिन, वही दास्तां : भारत-पाक के बीच ‘लाहौर समझौता’ और अटल जी का ऐतिहासिक भाषण!

इस ऐतिहासिक मौके पर अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण ने पूरे पाकिस्तान को मुग्ध कर दिया था।

Last updated: फ़रवरी 21, 2025 1:00 अपराह्न
By Rajneesh 3 महीना पहले
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4 Min Read
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21 फरवरी का दिन भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस दिन, 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच ‘लाहौर समझौता’ हुआ था, जिसने दोनों देशों के बीच शांति और सहयोग की एक नई आशा जगाई थी। यह समझौता उस समय के भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच संपन्न हुआ था। इस ऐतिहासिक मौके पर अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण ने पूरे पाकिस्तान को मुग्ध कर दिया था।

कारगिल युद्ध से ठीक कुछ महीने पहले, 21 फरवरी 1999 को भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिल्ली से लाहौर तक बस यात्रा की थी। इसे ‘दिल्ली-लाहौर बस सेवा’ के रूप में जाना जाता है। इस यात्रा का उद्देश्य दोनों देशों के बीच शांति बहाल करना और विश्वास बहाली के प्रयासों को मजबूत करना था।

लाहौर पहुंचने पर वाजपेयी और नवाज शरीफ के बीच ‘लाहौर घोषणा पत्र’ पर हस्ताक्षर किए गए। इस समझौते के मुख्य बिंदु इस प्रकार थे:

1. परमाणु हथियारों की जिम्मेदारी – दोनों देशों ने इस बात पर सहमति जताई कि वे अपने परमाणु कार्यक्रमों को लेकर पारदर्शिता बनाएंगे और किसी भी परिस्थिति में इसका गलत इस्तेमाल नहीं करेंगे।

2. सीमा विवादों को शांतिपूर्ण हल – दोनों देशों ने यह स्वीकार किया कि सभी विवादों को बातचीत और कूटनीति के माध्यम से सुलझाया जाएगा।

    3. व्यापार और सांस्कृतिक संबंधों को बढ़ावा – दोनों देशों ने आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग को मजबूत करने की बात की।

    4. विश्वास बहाली के उपाय – दोनों पक्षों ने सहमति जताई कि वे सेना और नागरिकों के बीच विश्वास बहाली के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे।

    लाहौर समझौते के दौरान वाजपेयी ने एक भावनात्मक और शक्तिशाली भाषण दिया, जिसने न केवल भारतीयों बल्कि पाकिस्तानियों को भी प्रभावित किया। उनके भाषण में शांति, सद्भाव और सहयोग की भावना स्पष्ट झलक रही थी। उन्होंने कहा था – “हम अपने भविष्य को अतीत की बेड़ियों से मुक्त करना चाहते हैं। हम बंदूकों की नहीं, बंधुत्व की भाषा बोलना चाहते हैं। हम जंग नहीं, अमन चाहते हैं।”

    इस भाषण ने पाकिस्तान की जनता और वहां की मीडिया में एक सकारात्मक प्रभाव डाला। कई लोगों ने वाजपेयी की इस पहल को सराहा और भारत-पाकिस्तान संबंधों को एक नई दिशा देने की उम्मीद जताई।

    हालांकि, लाहौर समझौते के कुछ ही महीनों बाद पाकिस्तान की सेना ने कारगिल में घुसपैठ कर दी, जिससे भारत-पाकिस्तान के संबंधों में फिर से तनाव बढ़ गया। इसके बाद 2001 में आगरा शिखर सम्मेलन भी विफल रहा और 2002 में संसद हमले के कारण दोनों देशों के बीच युद्ध जैसी स्थिति बन गई।

    इसके बावजूद, लाहौर समझौता इतिहास में एक ऐसा प्रयास था, जब भारत और पाकिस्तान ने गंभीरता से शांति की दिशा में कदम बढ़ाया। अटल बिहारी वाजपेयी के प्रयासों ने यह संदेश दिया कि मतभेदों के बावजूद संवाद और कूटनीति से समाधान संभव है।

    आज, जब भारत और पाकिस्तान के संबंध कई उतार-चढ़ाव से गुजर चुके हैं, तब भी लाहौर समझौता यह याद दिलाता है कि शांति और सहयोग की संभावना हमेशा बनी रहती है। अटल बिहारी वाजपेयी के शब्द और उनका दृष्टिकोण आज भी प्रासंगिक हैं, और यह हमें सिखाता है कि अतीत की गलतियों से सीखकर बेहतर भविष्य की ओर बढ़ना ही समझदारी है।

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    TAGGED: 1999, atal bihari vajpayee, diplomacy, india, india pakistan, kargil war, lahore agreement, pakistan, peace, thefourth, thefourthindia
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