इतिहास की गलियों में कुछ तारीख़ें ऐसी होती हैं जो अपने भीतर कई कहानियाँ समेटे होती हैं। 15 फरवरी ऐसी ही एक तारीख़ है, जब दुनिया ने एक महान वैज्ञानिक, गैलीलियो गैलीली को साल 1564 में जन्म लेते देखा और सदियों बाद उसी दिन मिर्ज़ा ग़ालिब (1869) ने इस दुनिया को अलविदा कहा। वैसे तो विज्ञान और शायरी दो बहुत अलग संसार, मगर इन दो अज़ीम शख़्सियतों के बीच एक और गहरा रिश्ता था।
गैलीलियो गैलीली को आधुनिक विज्ञान का जनक कहा जाता है। उन्होंने दूरबीन से अंतरिक्ष को देखा और उस समय की धार्मिक मान्यताओं को चुनौती दी। जब पूरी दुनिया यह मानती थी कि पृथ्वी ब्रह्मांड का केंद्र है, गैलीलियो ने साहसपूर्वक कहा कि सूर्य केंद्र में है और पृथ्वी उसके चारों ओर घूमती है। यह विचार इतना क्रांतिकारी था कि चर्च ने उन्हें दोषी ठहराया, मगर सच्चाई को दफ़नाया नहीं जा सका।
उधर, मिर्ज़ा ग़ालिब उर्दू और फ़ारसी शायरी की दुनिया में एक ऐसी क्रांति ला रहे थे, जो जज़्बात की गहराइयों को छूती थी। उन्होंने ग़ज़लों को महज़ इश्क़-मोहब्बत की सीमा से निकालकर ज़िंदगी, तक़दीर और इंसानी फ़ितरत के गहरे सवालों से जोड़ा। वे परंपराओं से हटकर सोचने वाले शायर थे, जो पुराने ढाँचों को तोड़कर शायरी को एक नया आयाम दे रहे थे।
पहली नज़र में ग़ालिब और गैलीलियो की दुनिया अलग लगती है—एक तारे और ग्रहों को देख रहा था, तो दूसरा ज़िंदगी और एहसासों को। मगर अगर गहराई से देखें, तो दोनों अपने-अपने क्षेत्र में विद्रोही थे। गैलीलियो ने अपनी खोजों से धर्म और परंपरागत विज्ञान की धारणाओं को चुनौती दी, और ग़ालिब ने शायरी के बंधनों को तोड़कर नई भाषा गढ़ी। दोनों को अपने समय में अस्वीकृति मिली, मगर इतिहास ने उन्हें महानता का दर्जा दिया।
ग़ालिब का एक शेर देखें…”होगा कोई ऐसा भी कि ग़ालिब को न जाने, शायर तो वो अच्छा है, पर बदनाम बहुत है।”
ग़ालिब अपने समय में आलोचना का शिकार हुए, ठीक वैसे ही जैसे गैलीलियो को चर्च ने ज़ंजीरों में जकड़ा। मगर दोनों ने अपनी राह नहीं बदली। दोनों ने अपनी-अपनी दुनिया में नई रोशनी बिखेरी, एक ने ब्रह्मांड को देखने का तरीका बदला और दूसरे ने इंसानी एहसासों को बयाँ करने का।
अंतरिक्ष की दूरबीन हो या शायरी की स्याही, सच्चाई और सौंदर्य की खोज अनंत है। कितना अद्भुत है ना! ग़ालिब और गैलीलियो दोनों ही हमें सिखाते हैं कि जो परंपराओं से परे देखता है, वही इतिहास रचता है।