आज से ठीक 23 साल पहले, यानी 13 दिसंबर 2001 को भारत ने एक ऐसा दिन देखा, जिसकी गूंज आज भी हर दिल और दिमाग में मौजूद है। यह दिन था जब दिल्ली के लाल किले से महज कुछ किलोमीटर दूर भारतीय संसद भवन में एक आतंकवादी हमला हुआ। यह दिन दिल्ली में ठंडी और धुंध भरी सुबह लेकर आया था। संसद का सत्र चल रहा था, और सांसद अपनी दिनचर्या में व्यस्त थे। सुबह करीब साढ़े नौ बजे, कुछ खास नहीं लग रहा था। लेकिन जैसे ही गाड़ियों का काफिला संसद भवन के सामने से गुजरने लगा, एक खौ़फनाक घटना घटने वाली थी।
11 बजकर 29 मिनट, संसद का गेट नंबर 11…तत्कालीन उपराष्ट्रपति कृष्णकांत के काफिले में तैनात सुरक्षाकर्मी अब उनके सदन के बाहर आने का इंजार कर रहे थे। ठीक उसी समय एक सफेद एंबेसडर कार उपराष्ट्रपति के काफिले की तरफ तेजी से आती हुई दिखाई देती है। इस कार की रफ्तार संसद के अंदर आने वाली कारों की तय रफ्तार से कहीं तेज थी। अभी कोई कुछ समझ ही पाता कि उस कार के पीछे लोकसभा सुरक्षाकर्मचारी जगदीश यादव कार के पीछे भागते हुए नजर आये। वह लगातार उस कार को रुकने का इशारा कर रहे थे। जगदीश यादव को कार के पीछे यूं बेतहाशा भागते देख उप राष्ट्रपति के सुरक्षा में तैनात एएसआई राव, नामक चंद और श्याम सिंह भी उस कार को रोकने के लिये उसकी तरफ भागे। इन सुरक्षाकर्मियों को अपनी ओर आते देख कार का चालक फौरन कार को गेट नंबर 1 की तरफ मोड़ देता है जहां उप राष्ट्रपति की कार खड़ी थी। तेज रफ्तार और मोड़ के चलते कार चालक कार पर से नियंत्रण खो देता है और कार सीधे उप राष्ट्रपति की कार से जा टकराती है। इस टक्कर के बाद कोई कुछ समझ पाता कि उस कार के चारों दरवाजे एक साथ खुलते हैं और गाड़ी में बैठे पांच आतंकवादी पलक झपकते ही बाहर निकलते हैं और अंधाधूंध फायरिंग शुरु कर देते हैं।
पांचों आतंकवादी AK-47 से लैस थे और उनके पीठ पर एक-एक बैग था। यह पहली बार था जब आतंकी लोकतंत्र की दहलीज पार कर अंदर आ गये थे। उनके चेहरे ढके हुए थे, और उनका उद्देश्य साफ था—भारत के लोकतंत्र के सबसे बड़े प्रतीकों को जड़ से हिला देना। जैसे ही वे संसद भवन के बाहर पहुंचे, उन्होंने सुरक्षाबलों पर गोलीबारी शुरू कर दी। इसके बाद, सुरक्षाबल भी अलर्ट हो गए और मुठभेड़ शुरू हो गई। संसद भवन गोलियों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा था। आतंकवादियों ने अपना सबसे पहला निशाना उन चार सुरक्षाकर्मियों को बनाया जो उनकी कार रोकने की कोशिश कर रहे थे।
इस मुठभेड़ में सबसे पहले दिल्ली पुलिस के जवान, दिल्ली पुलिस के एसपीजी (स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप) और अन्य सुरक्षा बलों ने मोर्चा संभाला। संसद भवन के अंदर बैठे सांसदों को लगा कि बाहर कोई पटाखे जला रहा है। अंदर किसी को भनक भी नहीं थी कि बाहर हर तरफ कोहराम मचा हुआ है। कुछ सांसद और पत्रकार अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर दौड़ रहे थे। बाहर, आतंकवादी संसद भवन के मुख्य दरवाजे पर पहुंचे थे, लेकिन सुरक्षा बलों ने उन्हें अंदर घुसने से रोक दिया।
आतंकी अपनी जान की बाजी लगाकर भी संसद के अंदर घुसने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन सुरक्षा बलों की वीरता के कारण वे सफल नहीं हो सके। दो आतंकी मारे जा चुके थे। दोपहर के 12 बजकर 5 मिनट तक अब सिर्फ तीन आतंकी बचे थे और उन्हें यह पता था कि वह संसद भवन से जिंदा वापस नहीं लौटेंगे इसलिये उन्होंने संसद के अंदर घुसने की एक आखिरी कोशिश की। इस कोशिश के तहत वह गोलियां बरसाते हुए संसद भवन के गेट नंबर 9 की तरफ भागे। मगर मुस्तैद जवानों ने उन्हें गेट नंबर 9 के पहले ही घेर लिया। उस समय जवानों ने भी अपने सिर पर कफन बांध लिया था और हर मुकाबले के लिये तैयार थे।
यह पूरा ऑप्रेशन 45 मिनट चला था मगर उसके बाद भी रुक-रुक कर गोलियां चलने की आवाज आ रही थी। सेना, बम निरोधक दस्ता और एनएसजी ने संसद को चारों तरफ से घेर लिया था। संसद अब भी सुरक्षित नहीं था क्योंकि जगह जगह ग्रेनेड गिरे हुए थे और वह थोड़ी थोडी देर में ब्लास्ट कर रहे थे। कुछ घंटों में बम निरोधक दस्ते ने बम को निष्क्रिय कर दिया, संसद अब पूरी तरह सुरक्षित था। इस ऑपरेशन में सभी पांच आतंकी मारे गए। वहीं, एक माली समेत हमारे आठ सुरक्षा जवान भी शहीद हो गए। हमले में करीब 15 लोग घायल भी हुए थे। आतंकियों की कार से करीब 30 किलो आरडीएक्स बरामद हुआ था। उस समय संसद में करीब 200 सांसद व मंत्री भी मौजूद थे। लेकिन किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचा।
हमला करने वाले आतंकवादी पाकिस्तान से जुड़े थे, और उनका संबंध जैश-ए-मोहम्मद नामक आतंकवादी संगठन से था। यह संगठन कश्मीर में भारत के खिलाफ हिंसा फैलाने के लिए जिम्मेदार था। यह हमला उसी कड़ी का हिस्सा था, जिसमें भारत में आतंकवादी गतिविधियां बढ़ने लगी थीं। उनकी योजना संसद भवन में घुसकर एक बड़ा आतंकी हमला करना था, लेकिन उनकी योजना असफल हो गई। संसद पर हमले के आरोप में मोहम्मद अफजल गुरु, शौकत हुसैन गुरु, शौकत की पत्नी अफसाना और दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एसआर गिलानी को गिरफ्तार किया था। दोषी पाए जाने के बाद अफजल गुरु को 9 फरवरी 2013 को फांसी की सजा दी गई। वहीं शौकत हुसैन गुरु को 10 साल जेल की सजा हुई थी। बाकी लोगों को रिहा कर दिया गया था।
भारत सरकार ने इस घटना की निंदा की और पाकिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इसे भारतीय लोकतंत्र पर हमला बताया। संसद में विशेष सत्र बुलाया गया, और आतंकवाद के खिलाफ कड़ी रणनीतियों पर विचार विमर्श हुआ। हमले के बाद, भारत ने पाकिस्तान से अपने उच्चायुक्त को वापस बुलाया और दुनिया भर में यह संदेश दिया कि आतंकवाद के खिलाफ उनकी लड़ाई लगातार जारी रहेगी। यह घटना देश में एक बड़ा सुरक्षा संकट लेकर आई, लेकिन भारत के सुरक्षा बलों की बहादुरी और दृढ़ता ने हमलावरों को नाकाम कर दिया।
आज, 23 साल बाद, संसद हमले की घटना एक गहरी याद बन चुकी है। यह हमले ने ना केवल भारतीय सुरक्षा बलों की वीरता को दिखाया, बल्कि यह भी बताया कि भारतीय लोकतंत्र पर किसी भी प्रकार का हमला न केवल एक अपराध है, बल्कि एक संदेश है, जिसे हमें मजबूत इरादों से काटना होगा। उस दिन के बाद से, भारतीय सुरक्षा तंत्र ने कई महत्वपूर्ण बदलाव किए, ताकि इस तरह के हमले फिर से न हो सकें।
आज संसद पर हुए आतंकवादी हमले की बरसी के मौके पर देश अपने वीर बलिदानों को याद कर रहा है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद हमले के बलिदानों को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की।