कैलाश पर्वत को हिंदू धर्म में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, यहीं से गंगा नदी का उद्गम होता है, जिसे भगवान शिव अपनी जटाओं में धारण करते हैं। यह स्थान चार प्रमुख धर्मों जिसमें हिंदू, जैन, बौद्ध और बोनपा अनुयायियों के लिए समान रूप से पवित्र है। जैन धर्म में इसे आदिनाथ ऋषभदेव का निर्वाण स्थल माना जाता है, जबकि बौद्ध अनुयायी इसे ‘कंग रिनपोचे’ कहते हैं। तिब्बती बोनपाओं के अनुसार, कैलाश में जो नौमंजिला स्वस्तिक देखते हैं, वह डेमचौक और दोरजे फांगमो का निवास है। यहां के दर्शन के लिए भक्तों के लिए एक ख़ास यात्रा कराई जाती थी जिसे कैलाश मानसरोवर यात्रा कहते हैं… ये एक महत्वपूर्ण धार्मिक तीर्थ यात्रा है, जो हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए विशेष महत्व रखती है। यह यात्रा तिब्बत में स्थित मानसरोवर झील तक जाती है फिर वहीं से कैलाश पर्वत के दर्शन किये जाते हैं।
दरअसल, कैलाश पर्वत तिब्बत के पश्चिमी क्षेत्र में हिमालय श्रृंखला का हिस्सा है, जिसकी ऊंचाई लगभग 6,638 मीटर है। वहां स्थित मानसरोवर झील को लेकर ऐसी मान्यता है कि इसकी रचना ब्रह्मा जी ने की थी। यह झील तिब्बत के उच्च पठार पर 4,590 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और कैलाश पर्वत से लगभग 30 किलोमीटर दूर है। यहां की यात्रा के दौरान तीर्थयात्री कैलाश पर्वत की परिक्रमा करते हैं और मानसरोवर झील में स्नान करते हैं, जिसे पवित्र और मोक्ष प्राप्ति का माध्यम माना जाता है। ये यात्रा समुद्र तल से 17,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित लिपूलेख दर्रे से होकर यात्रा की जाती है।
वैसे तो कैलाश मानसरोवर यात्रा जून माह में शुरू होती थी, लेकिन इसकी तैयारियां जनवरी से ही आरंभ हो जाती थी। हम थी इसीलिए कह रहें क्यूंकि साल 2020 में कोविड-19 महामारी और भारत-चीन सीमा विवाद के चलते कैलाश मानसरोवर यात्रा को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया था। तब से यह यात्रा स्थगित है, जिससे श्रद्धालुओं को इस पवित्र स्थल की यात्रा करने में असुविधा हो रही है।
लंबे समय से इससे जुड़ा कोई अपडेट नहीं था लेकिन हाल ही में हाल ही में, भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने चीन के विदेश मंत्री ‘वांग यी से’ मुलाकात की, दोनों में लंबी चर्चा हुई और कई मुद्दों मे समझौता भी हुआ है।
बीजिंग में हुई इस मीटिंग में दोनो देशों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर हुए ‘डिसइंगेजमेंट एग्रीमेंट’ के नतीजों पर बातचीत की गई 2019 के बाद से ये इस तरह की पहली सीमा वार्ता थी जिसमें दोनों देशों के कोई विशेष नेता या अधिकारी शामिल थे।
बातचीत के दौरान डोभाल और वांग ने कहा कि LAC पर चार साल लंबे सैन्य गतिरोध से सबक लेना चाहिए। ताकि सीमा पर शांति और स्थिरता बनी रहे। उन्होंने उन दूसरे कारणों पर भी बात की जो इस सीमा तनाव से प्रभावित हुए थे। इसमें भारत से तिब्बत तक कैलाश मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करना, ट्रांस-बॉर्डर नदियों पर डेटा साझा करना और सीमा व्यापार शामिल है।
इसके बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा,“साल 2020 में पश्चिमी क्षेत्र में टकराव होने के बाद ये विशेष प्रतिनिधियों (SRs) की पहली बैठक थी। विशेष प्रतिनिधियों ने अक्टूबर 2024 के नवीनतम ‘डिसइंगेजमेंट एग्रीमेंट’ पर कार्रवाई के लिए सकारात्मक पुष्टि की है।”
इस बयान में पूर्वी लद्दाख के देपसांग और डेमचोक में डिसइंगेजमेंट प्रक्रिया का जिक्र किया गया। विदेश मंत्रालय के बयान में कहा गया है, “2020 की घटनाओं से सीख लेते हुए, उन्होंने सीमा पर शांति बनाए रखने और प्रभावी सीमा प्रबंधन को आगे बढ़ाने के लिए कई उपायों पर चर्चा की। ”उन्होंने LAC पर शांति और स्थिरता के महत्व पर चर्चा की ताकि बॉर्डर के मुद्दे पर कोई बाधा ना आए।
हालांकि, दोनों ही देशों की ओर से ये खुलासा नहीं किया गया कि किन 6 बिंदुओं पर दोनों का समझौता हुआ है लेकिन इस बैठक के बाद, यह उम्मीद की जा रही है कि कैलाश मानसरोवर यात्रा शीघ्र ही पुनः शुरू होगी, जिससे श्रद्धालु एक बार फिर इस पवित्र स्थल की यात्रा कर सकेंगे।
कैलाश मानसरोवर यात्रा की पुनः शुरुआत से धार्मिक और सांस्कृतिक संबंधों में सुधार की संभावना है, जो दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास और सहयोग को बढ़ावा देगा।