हाल ही में चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे की जानकारी अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर साझा की है। आयोग के आंकड़ों के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी के लिए 2023-24 का साल चंदा संग्रह के मामले में भी बेहद सफल रहा। पार्टी को इस साल में 2,244 करोड़ रुपए का चंदा मिला, जो 2022-23 में मिले चंदे से तीन गुना अधिक है। दूसरी ओर, कांग्रेस को केवल 289 करोड़ रुपए का चंदा मिला, हालांकि यह भी 2022-23 के 79.9 करोड़ रुपए के मुकाबले वृद्धि दर्शाता है।
भारत में राजनीतिक दलों की फंडिंग हमेशा से एक विवादास्पद विषय रही है। भ्रष्टाचार, पारदर्शिता की कमी और काले धन का उपयोग इस प्रक्रिया को कठघरे में खड़ा करता रहा है।
बहरहाल, 2023-24 में बीजेपी को कांग्रेस से 776.82% अधिक चंदा मिला। जहां बीजेपी को सबसे अधिक 2,244 करोड़ रुपए का चंदा प्राप्त हुआ, वहीं कांग्रेस तीसरे स्थान पर रही। तेलंगाना राष्ट्र समिति ने इस दौरान 580 करोड़ रुपए का चंदा पाकर दूसरा स्थान हासिल किया है।
चंदे के संदर्भ में सबसे चर्चित मुद्दा रहा था जब केंद्र सरकार ने मार्च 2018 में ‘इलेक्टोरल बॉन्ड योजना’ शुरू की, जिसे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने का दावा किया गया। लेकिन, इस योजना ने जितनी उम्मीदें जगाईं, उससे कहीं ज्यादा विवाद खड़े कर दिए थे।
इलेक्टोरल बॉन्ड एक वित्तीय साधन है जिसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी इन बॉन्ड्स को खरीदकर मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों को डोनेट कर सकता है। ये बॉन्ड 1,000 रुपये, 10,000 रुपये, 1 लाख रुपये, 10 लाख रुपये और 1 करोड़ रुपये के मूल्य में उपलब्ध होते थे।
सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता और काले धन पर अंकुश लगाने के लिए की थी क्यूंकि नकद में फंडिंग से बचने के लिए यह एक डिजिटल माध्यम है। दान दाताओं की पहचान को गोपनीय रखते हुए, उन्हें बिना डर-भय के दान करने की सुविधा दी गई थी। सभी बॉन्ड केवल बैंकिंग चैनल से खरीदे और भुनाए जा सकते हैं, जिससे लेनदेन का रिकॉर्ड रहेगा।
हालांकि इलेक्टोरल बॉन्ड पर गंभीर सवाल उठे। जैसे पारदर्शिता की कमी क्यूंकि दान दाताओं और प्राप्तकर्ताओं की जानकारी जनता के लिए उपलब्ध नहीं होती थी। विपक्ष का आरोप था कि इससे सत्तारूढ़ दल को अनुचित लाभ मिलता है। क्यूंकि कंपनियों को बिना किसी सीमा के राजनीतिक दान करने की अनुमति दी गई। इसके तहत विदेशी कंपनियां भी दान कर सकती हैं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा हो सकता है।
2023 तक जारी रिपोर्ट्स के अनुसार, सत्तारूढ़ दल को इलेक्टोरल बॉन्ड्स के माध्यम से लगभग 60% से अधिक दान प्राप्त हुआ, जबकि विपक्षी दलों को सीमित फंड मिला।
इलेक्टोरल बॉन्ड एक क्रांतिकारी कदम हो सकता था यदि इसे पूरी पारदर्शिता और निष्पक्षता के साथ लागू किया जाता। लेकिन गोपनीयता, कॉर्पोरेट प्रभाव और विपक्ष के आरोप इसे संदिग्ध बना देते हैं।
फरवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द कर दिया, जिसके बाद राजनीतिक दलों के लिए फंडिंग का सबसे प्रमुख साधन सीधे नकद राशि या इलेक्टोरल ट्रस्ट के माध्यम से प्राप्त चंदा बन गया है। इस निर्णय के बाद से दलों को मिलने वाले फंड का पारंपरिक स्वरूप बदल गया है, और अधिकांश धनराशि अब प्रत्यक्ष योगदान या ट्रस्टों के जरिए हासिल की जा रही है।