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Reading: आज की तारीख – 46: चिपको आंदोलन के जनक का जन्म
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Sundеrlal Bahuguna leader of the Chipko movement 1024x614 1 - The Fourth
Fourth Special

आज की तारीख – 46: चिपको आंदोलन के जनक का जन्म

चिपको आंदोलन पर्यावरण आंदोलनों के लिए एक मॉडल बन गया और कई देशों में इसी प्रकार के आंदोलनों को प्रेरित किया।

Last updated: जनवरी 9, 2025 3:32 अपराह्न
By Rajneesh 5 महीना पहले
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4 Min Read
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भारत के पर्यावरणीय आंदोलनों में चिपको आंदोलन एक ऐसा ऐतिहासिक आंदोलन है, जिसने न केवल वनों की रक्षा की बल्कि पर्यावरण जागरूकता को भी नई दिशा दी। यह आंदोलन उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में महिलाओं के नेतृत्व में शुरू हुआ और विश्वभर में पर्यावरण संरक्षण के प्रतीक के रूप में जाना पहचाना गया।

चिपको आंदोलन की शुरुआत 1973 में उत्तराखंड के मंडल गाँव में हुई। इसका उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना था। उस समय लकड़ी माफिया और ठेकेदारों द्वारा जंगलों का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा था, जिससे न केवल पर्यावरण को नुकसान हो रहा था, बल्कि स्थानीय समुदायों की आजीविका भी खतरे में थी। इस आंदोलन का नाम ‘चिपको’ इस तथ्य से पड़ा कि ग्रामीण लोग पेड़ों को गले लगाकर उन्हें कटने से बचाने का प्रयास करते थे।

चिपको आंदोलन को सफल बनाने में पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का योगदान अमूल्य था। वह इस आंदोलन के विचारक और प्रेरणा स्रोत थे। उन्होंने वनों की महत्ता को समझाया और हिमालयी क्षेत्रों में पर्यावरण संरक्षण का संदेश फैलाया।

09 जनवरी 1927 को टिहरी गढ़वाल के सिल्यारा गांव में जन्में सुंदरलाल बहुगुणा के पर्यावरण संरक्षण के प्रति समर्पित जीवन की यह कहानी सभी को याद होगी, मगर बहुत कम लोग जानते होंगे कि कभी वह देश की आजादी के लिए भी लड़े थे और कांग्रेस के सक्रिय कार्यकर्ता थे।

सुंदरलाल बहुगुणा न केवल एक पर्यावरणविद थे, बल्कि एक विचारक और समाज सुधारक भी थे। उन्होंने गांधीवादी विचारधारा के तहत अहिंसा और सत्याग्रह को अपनाया। उनका मानना था कि प्रकृति और मनुष्य के बीच सामंजस्य स्थापित करना अनिवार्य है।

सुंदरलाल बहुगुणा ने ‘पारिस्थितिकी विकास’ की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका प्रसिद्ध नारा “धरती बचाओ, पेड़ लगाओ” जंगलों की रक्षा का प्रतीक बन गया। बहुगुणा ने पैदल यात्राएं कर हिमालय के दूरदराज के गाँवों में जागरूकता फैलाई। उन्होंने स्थानीय समुदायों को वनों के संरक्षण के लिए प्रेरित किया और बताया कि जंगल केवल लकड़ी का स्रोत नहीं हैं, बल्कि पानी, मिट्टी और हवा के संतुलन का आधार भी हैं।

उन्होंने महिलाओं की भूमिका को समझा और उन्हें आंदोलन में सक्रिय भागीदार बनाया। महिलाओं ने अपने पारंपरिक ज्ञान और साहस का उपयोग कर जंगलों की रक्षा की। उन्होंने तत्कालीन सरकार से लगातार बातचीत की और 1981 में वनों की कटाई पर 15 साल का प्रतिबंध लगाने में सफल रहे।

चिपको आंदोलन महिलाओं के साहस और समर्पण का उदाहरण है। गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने ठेकेदारों और पुलिस से मुकाबला किया और अपने जंगलों को कटने से बचाया। यह आंदोलन पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं की ताकत को दर्शाता है।

1980 में भारत सरकार ने वनों की कटाई पर प्रतिबंध लगाने के लिए वन संरक्षण कानून पारित किया गया। यह आंदोलन पर्यावरण आंदोलनों के लिए एक मॉडल बन गया और कई देशों में इसी प्रकार के आंदोलनों को प्रेरित किया। आंदोलन ने स्थानीय समुदायों को आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रेरित किया और वनों की रक्षा के महत्व को रेखांकित किया।

चिपको आंदोलन ने न केवल वनों की रक्षा की बल्कि पूरी दुनिया को यह सिखाया कि पर्यावरण संरक्षण के बिना मानव जीवन संभव नहीं है। सुंदरलाल बहुगुणा और हिमालय की महिलाओं का यह योगदान हमेशा प्रेरणा का स्रोत बना रहेगा। यह आंदोलन आज भी हमें प्रकृति से जुड़ने और पर्यावरण संरक्षण की जिम्मेदारी समझने की सीख देता है।

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TAGGED: chipko movement, environmental awareness, environmental movements, environmental protection, india, sunderlal bahuguna, thefourth, thefourthindia, tree conservation, village activism
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