महाराष्ट्र के जलगांव में 22 जनवरी 2025 की शाम लखनऊ से मुंबई जा रही पुष्पक एक्सप्रेस में सफर कर रहे यात्रियों के लिए यह एक सामान्य दिन था, जब अचानक आग लगने की अफवाह ने सबकुछ बदल दिया। घबराहट और अफरा-तफरी में लोगों ने ट्रेन से छलांग लगा दी, लेकिन यह जल्दबाजी उनके जीवन की सबसे बड़ी भूल साबित हुई।
खतरे की घंटी या अफवाह का जाल?
रेलवे सूत्रों के अनुसार, ट्रेन के पेंट्री कार में धुआं उठने की झूठी खबर सबसे पहले एक चाय बेचने वाले द्वारा फैलाई गई थी। यात्रियों ने बिना सोचे-समझे इस अफवाह को सच मान लिया और डर के मारे खुद को बचाने के लिए घातक कदम उठा लिया।
भागने की कोशिश बनी जानलेवा
चेन पुलिंग कर ट्रेन रोकने के बाद यात्री सुरक्षित स्थान की तलाश में चलती ट्रेन से कूदने लगे। दुर्भाग्यवश, उसी समय दूसरी दिशा से आ रही कर्नाटक एक्सप्रेस ने उन्हें अपनी चपेट में ले लिया, जिससे 13 लोगों की दर्दनाक मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हो गए।
रेलवे की कार्रवाई: क्या सुरक्षा में रही कोई चूक?
रेलवे प्रशासन ने त्वरित राहत अभियान शुरू किया और घटना की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए हैं। इस हादसे ने रेलवे सुरक्षा उपायों और आपातकालीन प्रबंधन व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
परिजनों का विलाप, आंखों में आंसू – आखिर कौन है जिम्मेदार?
मृतकों के परिवारों का रो-रो कर बुरा हाल है। वे इस हादसे के लिए रेलवे प्रशासन और अफवाह फैलाने वालों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। प्रशासन ने मृतकों के परिजनों को मुआवजा देने की घोषणा की, लेकिन क्या इससे उनके दर्द की भरपाई हो पाएगी?
पुष्पक एक्सप्रेस हादसा हमें यह याद दिलाता है कि किसी भी संकट के समय सूझबूझ और संयम ही सबसे बड़ा हथियार है। एक छोटी सी गलती जानलेवा हो सकती है, इसलिए जरूरी है कि हम अफवाहों से बचें और सही फैसले लें।