4 फरवरी 2025, यह वो तारीख होगी, जब प्रसिद्ध बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय को ठीक 109 वर्ष पूरे हो चुके होंगे। इसने देश को एक से बढ़कर एक रत्न दिए है, जिन्होंने अलग अलग क्षेत्रों में अपने देश का नाम दुनिया में रोशन किया। यहां एक ऐसे व्यक्ति का उल्लेख होना आवश्यक है, जो इस ज्ञान के मंदिर का शिल्पकार था। जी हां, बात हो रही है महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी की। लोग उनके नाम से तो परिचित है किंतु कही न कही आज भी उन्हें उतना सम्मानित नहीं किया जाता, जितना करना चाहिए। तो चलिए, एक नज़र डालते है उनके जीवन और देश को उनके बहुमूल्य योगदानों पर।
मालवीय जी का जन्म 25 दिसंबर 1861 को पंडित ब्रजनाथ और मूनादेवी के घर हुआ था। पिता पवित्र श्रीमद्भागवत कथा सुनाकर अपना जीवनयापन करते थे। ज़ाहिर है कि इस पवित्र ग्रंथ का उनपर भी गहरा प्रभाव पड़ा होगा। वे एक बहुत ही मेधावी छात्र थे। प्रारंभिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने BA LLB किया। वे संस्कृत के भी अच्छे जानकार थे। जुलाई 1884 में, वर्तमान प्रयागराज में एक सरकारी विद्यालय में असिस्टेंट मास्टर के रूप में उन्होंने अपने करियर की शुरुआत की।
हम यह भलीभांति जानते है कि वे एक राजनेता थे और कांग्रेस के चार बार अध्यक्ष थे, किंतु उनकी अन्य उपलब्धियां भी उल्लेखनीय है।
“सत्यमेव जयते” यह भारत को मालवीय जी की ही देन है। दिल्ली में 1918 में, उन्होंने यह घोषित किया कि मुण्डकोपनिषद का यह वाक्य भारत का राष्ट्रीय वाक्य होगा। हर की पौड़ी, हरिद्वार में पवित्र गंगा आरती की परम्परा भी उन्होंने ही शुरु की थी।
छुआछूत की समस्या का समाधान करने हेतु, उन्होंने अछूतों को मंत्रदीक्षा देना प्रारंभ किया। उनका यह कहना था कि मंत्र उनके सामाजिक, आध्यात्मिक और राजनीतिक उत्थान का एक निश्चित साधन होंगे। उन्होंने जाति के बंधनों को तोड़ने के लिए बहुत काम किया और यह भी सुनिश्चित किया कि अछूतों को मंदिरों को प्रवेश मिले। मार्च 1936 में, रथ यात्रा के पावन पर्व पर, 200 दलितों को मंत्रदीक्षा देकर कालाराम मंदिर में प्रवेश कराया और बाद में रथ यात्रा में भी शामिल हुए। श्री कृष्ण जन्मस्थान मंदिर, मथुरा एवं श्री काशी विश्वनाथ मंदिर, BHU भी उन्हीं के अथक प्रयासों का फल है।
पवित्र गंगा नदी के संरक्षण हेतु तथा भविष्य में उसपर किसी प्रकार के बांध निर्माण रोकने हेतु, 1916 मे अविरल रक्षा समझौता किया।
मालवीय जी बहुत ही कमाल के वकील भी थे। इलाहाबाद हाईकोर्ट के सबसे बुद्धिमान वकीलों में उनकी गिनती होती थी। 1922 के चौरी चौरा कांड के बाद, 170 लोगों को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी लेकिन मालवीय जी ने उनमे से 155 को बचाया और बचे 15 की सज़ा भी फांसी से बदलकर उम्रकैद कर दी गई।
अंग्रेज़ों से गुलामी के समय, मालवीय जी ने देखा कि भारतीय छात्र शिक्षा ग्रहण करने हेतु विदेश जाते है लेकिन वहां से पढ़कर आए बच्चे अपने देश, संस्कृति व सभ्यता का सम्मान नही करते। इसी कारण उनके मन में भारत में ही एक उच्चकोटी विश्वविद्यालय की स्थापना का विचार आया जो आगे चलकर बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के रूप में सफल भी हुआ। इसकी स्थापना हेतु एनी बेसेंट के साथ उन्होंने अथक परिश्रम किया। उन्होंने देशभर से चंदा एकत्रित किया और भूमि भी काशी नरेश से दान में पाई। एक प्रसिद्ध घटना है की जब वे हैदराबाद के निज़ाम के पास चंदा मांगने गए थे, तब निज़ाम ने उनपर जूती फेक दी थी। विनम्रतापूर्वक उन्होंने उस जूती को उठाया और बाद में उसे नीलाम कर मिली हुई राशि विश्वविद्यालय के निर्माण में लगा दी।
पत्रकारिता में भी उनका योगदान अतुलनीय है। उन्होंने 1919 में, एक अत्यंत प्रभावी अखबार ‘द लीडर’ की स्थापना की और 1924 से 1946 तक हिंदुस्तान टाइम्स के चेयरमैन भी रहे। उन्हीं के प्रयासों से 1936 में इसका एक हिंदी संस्करण भी प्रकाशित हो सका जिसका नाम था हिंदुस्तान दैनिक।
चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो, सामाजिक सुधार हो, पत्रकारिता हो या फिर वकालत, इस बहुआयामी व्यक्तित्व ने हर क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी। 12 नवंबर 1946 को वृद्धावस्था में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उन्हें हमारा शत शत नमन।