कभी सोचा है, अगर महिलाएँ न होतीं, तो यह दुनिया कैसी होती? माँ की ममता, बहन की शरारत, पत्नी की साझेदारी और बेटी की मुस्कान—ये सब हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं। फिर भी, इतिहास गवाह है कि इन्हीं महिलाओं को बार-बार अपने अस्तित्व को साबित करना पड़ा है। क्यों? क्या सिर्फ इसलिए कि वे महिलाएँ हैं? यही सवाल बार-बार समाज के सामने आता है और इसी सवाल का जवाब है—International Women’s Day
समाज के बनाए नियमों को तोड़ा, patriarchy की जंजीरों को काटा और दुनिया को दिखाया कि वे सिर्फ सहने के लिए नहीं बनी हैं—वे लड़ भी सकती हैं, जीत भी सकती हैं।
एक जश्न, एक संघर्ष, एक प्रेरणा
हर साल 8 मार्च को मनाया जाने वाला Women’s Day सिर्फ एक तारीख नहीं, बल्कि सदियों से चल रही संघर्ष और सफलता की कहानी है। यह उन आँसुओं, कुर्बानियों और मेहनत की कहानी है, जिसने महिलाओं को समाज में अपनी जगह बनाने के लिए मजबूती दी। आज जब महिलाएँ बराबरी की बात करती हैं, अपने हक के लिए खड़ी होती हैं, तो कई लोग इसे “toxic feminism” कहकर उनकी आवाज दबाने की कोशिश करते हैं। यह दिन सिर्फ जश्न मनाने का नहीं, बल्कि सोचने का भी है कि आज भी क्यों महिलाओं को समानता के लिए लड़ना पड़ रहा है?
कब तक “समझौता” करती रहेंगी महिलाएं?
कहते हैं, “औरत कोमल होती है, कमजोर नहीं।” लेकिन फिर भी उसे कमजोर मान लिया जाता है। घर के कामों को उसकी “जिम्मेदारी” बना दिया जाता है, जैसे यह उसका फर्ज हो, न कि उसका चुनाव। अगर वह अपने लिए कुछ करना चाहे, तो उसे “अहंकारी” कहा जाता है। अगर वह चुप रहती है, तो उसे “कमज़ोर” कहा जाता है। आखिर कब तक?
वे औरतें जिन्होंने दुनिया बदली
आज भी ऑफिस में महिलाओं को पुरुषों से कम वेतन मिलता है, उनकी काबिलियत पर शक किया जाता है और उन्हें हर कदम पर यह साबित करना पड़ता है कि वे किसी से कम नहीं। यही दोगलापन खत्म करने की जरूरत है। अगर इन महिलाओं ने हार मान ली होती, तो शायद आज भी लड़कियाँ पढ़ने का सपना नहीं देख पातीं, ऑफिस में अपनी पहचान नहीं बना पातीं और अपनी आवाज उठाने से डरतीं।
- Savitribai Phule – India’s first female teacher
जब महिलाओं की शिक्षा को पाप समझा जाता था, तब Savitribai Phule ने लड़कियों के लिए स्कूल खोला। लोग उन पर पत्थर फेंकते थे, लेकिन वे रुकी नहीं। आज हर लड़की जो स्कूल जाती है, उसकी नींव Savitribai Phule ने रखी थी।
- Rosa Parks – First Lady of Civil Rights
अमेरिका में जब काले और गोरों के बीच भेदभाव चरम पर था, तब Rosa Parks ने एक गोरे आदमी के लिए बस में अपनी सीट छोड़ने से इनकार कर दिया। यह एक छोटी घटना लग सकती है, लेकिन इसी से civil rights movement शुरू हुआ।
- Kalpana Chawla – First Indian woman to fly in space
एक लड़की जिसने हर बंदिश को तोड़कर अंतरिक्ष की ऊँचाइयों को छुआ, यह साबित कर दिया कि सपनों की कोई सीमा नहीं होती।
- Malala Yousafzai – Fought for Education
एक लड़की जिसने शिक्षा के हक के लिए अपनी जान दांव पर लगा दी, जिस पर आतंकियों ने हमला किया, लेकिन वह रुकी नहीं। आज वह लाखों लड़कियों के लिए प्रेरणा है।
- Mary Kom – came from a small place to become the world’s greatest boxer
अगर उन्होंने दुनिया की बात मानी होती, तो आज वह 6 बार की world champion नहीं होतीं।
सिर्फ एक दिन क्यों?
क्या नारी सिर्फ एक दिन सम्मान की हक़दार है? क्या 8 मार्च के बाद फिर से वही भेदभाव, वही मानसिकता, वही तकलीफें शुरू हो जाती हैं? यह सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं, बल्कि समाज की सोच को बदलने का संकल्प होना चाहिए। यह वह दिन है, जब हर महिला को यह महसूस कराना चाहिए कि वह किसी से कम नहीं है, उसे किसी से डरने की जरूरत नहीं है और वह खुद अपनी तकदीर लिख सकती है।
अगर हम सच में women’s day मनाना चाहते हैं, तो इसकी शुरुआत घर से होनी चाहिए। आज जो महिलाएँ ऑफिस जाती हैं, अपनी कंपनी चलाती हैं, नेता बनती हैं, स्पोर्ट्स में देश का नाम रोशन करती हैं, वो सब उन्हीं औरतों की वजह से संभव हुआ जिन्होंने हार नहीं मानी। Patriarchy उन्हें रोकने की कोशिश करती रही, लेकिन उनकी हिम्मत, उनके सपनों से बड़ी नहीं हो पाई।
आज हमें तय करना होगा कि हम महिलाओं की आवाज को “toxic feminism” कहकर दबाएँगे या उनके संघर्ष को सलाम करेंगे? क्योंकि जब एक महिला आगे बढ़ती है, तो वह सिर्फ खुद के लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए रास्ता बनाती है।
The Fourth महिलाओं के त्याग व योगदान को सलाम करता है। दुनिया को बेहतर बनाने के लिए आपका धन्यवाद।
Happy Women’s Day!