इतिहास का हर बड़ा बदलाव एक निर्णय से शुरू होता है, और 17 मार्च 1992 को दक्षिण अफ्रीका ने ऐसा ही एक ऐतिहासिक निर्णय लिया।
दक्षिण अफ्रीका की राजनीति और समाज के इतिहास में 17 मार्च 1992 का दिन एक निर्णायक मोड़ था। इसी दिन देश के श्वेत वोटर्स ने एक Historical Referendum में हिस्सा लिया। उसका उद्देश्य था… क्या रंगभेद (Apartheid) की नीति को समाप्त किया जाए या नहीं? यह सवाल केवल कागज पर एक निर्णय भर नहीं था, बल्कि यह उस अन्यायपूर्ण व्यवस्था को उखाड़ फेंकने की ओर पहला बड़ा कदम था जिसने दशकों तक दक्षिण अफ्रीका को विभाजित रखा था।
1948 में दक्षिण अफ्रीका में “नेशनल पार्टी” की सरकार बनी, जिसने ‘रंगभेद’ नामक नीति को सरकारी ढांचे में शामिल किया। इस नीति के तहत दक्षिण अफ्रीका की अश्वेत आबादी को अलग कर दिया गया, उनके लिए स्कूल, अस्पताल, सार्वजनिक स्थान और यहां तक कि आवासीय क्षेत्र भी अलग निर्धारित किए गए।
अश्वेतों को मतदान का अधिकार नहीं था, वे सत्ता में कोई स्थान नहीं पा सकते थे, और उन्हें श्वेत आबादी से निम्न दर्जे का नागरिक माना जाता था। वर्षों तक यह अमानवीय नीति जारी रही, लेकिन 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में इसके खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर विरोध बढ़ता गया।
1989 में एफ. डब्ल्यू. डी क्लार्क दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति बने। उन्होंने महसूस किया कि रंगभेद व्यवस्था को बनाए रखना असंभव है। इस नीति की वजह से देश पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए जा चुके थे, देश की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही थी, और अंतरराष्ट्रीय समुदाय दक्षिण अफ्रीका से दूरी बना चुका था।
डी क्लार्क ने 1990 में एक ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस पर लगे प्रतिबंध हटाए और नेल्सन मंडेला को 27 वर्षों की कैद से रिहा कर दिया। यह रंगभेद के अंत की दिशा में पहला बड़ा कदम था।
रंगभेद को पूरी तरह खत्म करने के लिए दक्षिण अफ्रीकी संसद में कई बदलाव किए जाने थे। लेकिन डी क्लार्क ने यह निर्णय लिया कि किसी भी बड़े बदलाव से पहले उन्हें देश के श्वेत समुदाय से समर्थन लेना होगा। इसके लिए उन्होंने 17 मार्च 1992 को एक जनमत संग्रह कराया, जिसमें केवल श्वेत नागरिक ही मतदान कर सकते थे।
उनके सामने जो प्रश्न था…”क्या आप राष्ट्रपति डी क्लार्क और उनकी सरकार द्वारा शुरू किए गए सुधार प्रक्रिया का समर्थन करते हैं, जिसका उद्देश्य समान अधिकारों पर आधारित एक नया संविधान तैयार करना है?”
यह मतदान केवल श्वेत नागरिकों के लिए था, क्योंकि रंगभेद व्यवस्था के कारण अश्वेत नागरिकों को वोट देने का अधिकार नहीं था।
इस ऐतिहासिक मतदान में 69 प्रतिशत श्वेत नागरिकों ने रंगभेद के खिलाफ और सुधारों के समर्थन में वोट दिया। यह एक बड़ा और महत्वपूर्ण फैसला था, क्योंकि पहली बार दक्षिण अफ्रीका के श्वेत समुदाय ने खुद इस विभाजनकारी नीति को खत्म करने के लिए मतदान किया था।
मतदान के परिणामों ने डी क्लार्क को यह अधिकार दिया कि वे रंगभेद को समाप्त करने के लिए संवैधानिक सुधार जारी रखें।
इस Historical Referendum के बाद दक्षिण अफ्रीका में कई बदलाव हुए जैसे – 1993 में अंतरिम संविधान लागू हुआ, जिसमें सभी नस्लों के लोगों को समान अधिकार दिए गए। 1994 में देश में पहली बार बहु-नस्लीय लोकतांत्रिक चुनाव हुए, जिसमें नेल्सन मंडेला दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने और देश ने समानता की ओर एक नई शुरुआत की।
17 मार्च 1992 का दिन केवल एक मतदान का दिन नहीं था, यह दक्षिण अफ्रीका के श्वेत नागरिकों की आत्मा की परीक्षा थी। उन्होंने इतिहास के सही पक्ष को चुना और एक न्यायपूर्ण समाज की नींव रखी।
इससे जुड़े संबोधन में नेल्सन मंडेला ने कहा था, “यह केवल रंगभेद के अंत की शुरुआत थी, लेकिन असली लड़ाई तब शुरू हुई जब हमें इसे समाप्त करके समानता को व्यवहार में लाना पड़ा।”
आज, यह दिन लोकतंत्र, समानता और मानवाधिकारों की जीत के रूप में याद किया जाता है। यह हमें याद दिलाता है कि जब लोग अन्याय के खिलाफ खड़े होते हैं, तो बदलाव संभव है।