नोएडा / सिगरेट शब्द सुनते ही नकारात्मकता दिमाग मे आती है लेकिन नोएडा के नमन गुप्ता और उनके दोस्तों ने करीब 200 करोड़ रुपए की सिगरेट के बट रिसाइकल कर लिए। हमारे देश में हर साल करीब दस हजार करोड़ रुपए की सिगरेट पीकर लोग फेंक देते हैं, जिसका वजन 26 हजार टन से ज्यादा है। इतना ही नहीं, छोटी-सी दिखने वाली इस बट से क्या बीमारी होती है, यह देश के दस फीसद लोग भी नहीं जानते। 2018 तक देश में ऐसी कोई कंपनी नहीं थी, जो सिगरेट के कचरे के लिए काम कर रही हो। नोएडा के नमन गुप्ता ने अब इससे निजात दिलाई है। दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन के दौरान नमन ने सिगरेट वेस्ट की दिक्कत दूर करने के लिए इस पर काम शुरू किया था। सात महीने की रिसर्च के बाद उन्होंने एक ऐसा रिसाइकल तरीका बनाया है, जिससे उन टुकड़ों से खिलौने बन रहे हैं।
200 करोड़ की सिगरेट रिसाइकल
आज देश भर में दो हजार से ज्यादा कूड़ा बीनने वाले, नमन के साथ काम कर रहे हैं, जो हर महीने उन्हें हजारों टन कचरा लाकर देते हैं। नमन बताते हैं कि अब तक करीब 200 करोड़ की सिगरेट रिसाइकल कर पांच हजार करोड़ लीटर पानी को दूषित होने से बचा चुका हूं। हम इसे रिसाइकल करने के बाद कंपोस्ट, हैंड पेपर, खिलौने और कुशन फिलर बनाते हैं। कई लोगों को नमन इसके लिए प्रेरित भी कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि यदि देश में इस तरह के और भी प्रोजेक्ट लगाए जाएं, तो इस दिक्कत को अस्सी फीसद तक कम किया जा सकता है। सरकार इस मामले में कोशिश करना चाहती है, लेकिन दिलचस्पी रखने वाले नहीं मिलते। मध्य भारत, उत्तर भारत और महाराष्ट्र के इलाकों में सिगरेट ज्यादा पी जाती है। कई कंपनियां भी अब इस कचरे से निजात पाने के लिए तरीके खोज रही हैं।
यहां कचरे से खाद बनाने का काम
अलग-अलग इलाकों की नगर सरकारें यदि चाहें, तो अपने चौराहों और गलियों में इसे लेकर अलग डस्टबिन लगा सकती हैं, ताकि कचरा अलग-अलग हो और इससे होने वाले आबोहवा के नुकसान से लोगों को बचाया जा सके। सफाई के मान से सचेत रहने वाले शहर जैसे इंदौर को इसमें जोड़ा जा सकता है। यहां कचरे से खाद बनाने का काम कई बरस से हो रहा है। खाद के साथ गैस भी बनाई जाती हैं, जिससे नगर निगम की गाडिय़ां चलती हैं। कई खिलौने भी बाजार में आए हैं, जो इंदौर के ही कचरे से बने हैं।