जोशीमठ के लिए जान देने वाले मसीहा की याद आ रही..कहानी जीडी अग्रवाल की !
पहाड़ों के बीच बसा उत्तराखंड का वह इलाका जिस पर आज विधाओं के पहाड़ टूट पड़े हैं, उसे अपने मसीहा कि याद आ रही है। इस मसीहा का नाम था जीडी अग्रवाल। अग्रवाल जाने-माने पर्यावरणविद् थे। उत्तराखंड में बन रही अलग-अलग जलविद्युत परियोजनाओं का उन्होंने विरोध किया था। उनका साफ कहना था कि गंगा और उसकी सहायक नदियों पर बन रही है जल विद्युत परियोजना को बंद किया जाए। अपनी इन्हीं मांगों को लेकर वह बार-बार अनशन पर बैठे 2018 में उन्होंने करीब 3 महीने तक अनशन रखा इसी अनशन के दौरान उनका निधन हो गया।
पर्यावरणविद् प्रोफेसर जीडी अग्रवाल ने उत्तराखंड में बन रही जलविद्युत परियोजनाओं के खिलाफ संघर्ष किया और उत्तराखंड को बचाने के लिए इन परियोजनाओं को बंद करने की मांग की थी। इसके लिए कई बार लंबे समय तक अनशन तक किए। जोशीमठ को बचाने के लिए प्रोफेसर अग्रवाल ने तपोवन-विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना, विष्णुगाड़-पीपलकोटी समेत गंगा और उसकी सहायक नदियों पर बनने रही छह जल विद्युत परियोजनाओं को बंद करने के लिए 2018 में हरिद्वार कनखल के मातृ सदन आश्रम में निर्णायक अनशन किया था। तब की भाजपा की राज्य सरकार ने उनकी मांगों पर गौर नहीं किया। 10 अक्तूबर 2018 को ऋषिकेश के एम्स अस्पताल में उन्हें गंभीर स्थिति में भर्ती किया गया। 11 अक्तूबर 2018 को उनका निधन हो गया। इस तरह उन्होंने जोशीमठ को बचाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी।
जीडी अग्रवाल ने उत्तरकाशी के अति संवेदनशील क्षेत्र में पाला-मनेरी-लोहारी-नागपाला- भैरव घाटी जल विद्युत परियोजना को बंद करने और उत्तरकाशी के इस क्षेत्र को पारिस्थितिकीय घोषित करने की मांग को लेकर 20 जुलाई 2010 से 24 अगस्त 2010 तक एक महीने तक मातृ सदन आश्रम, कनखल, हरिद्वार में अनशन किया था। उनका अनशन तब के केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने समाप्त करवाया था और वे खुद अनशन स्थल पर आए थे।
उन्होंने तब के वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी से इस संबंध में बातचीत की थी और तब की मनमोहन सिंह की सरकार ने अग्रवाल की सभी मांगों को मानते हुए पाला-मनेरी-लोहारी-नागपाला- भैरव घाटी जल विद्युत परियोजना को बंद करने के साथ उत्तरकाशी के 160 किलोमीटर तक के क्षेत्र को परिस्थितिकीय (इको सेंसिटिव जोन) घोषित किया था। परंतु जब जोशीमठ को बचाने के लिए 2018 में अग्रवाल ने अनशन किया तो न तो उनकी केंद्र सरकार ने सुनी और न राज्य सरकार ने।